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ट्रंप टैरिफ : भारत के लिए चमकने का अवसर

Trump tariffs : ग्रामीण भारत में, जहां 2024 में उपभोग की वृद्धि दर शहरों की 6.2 प्रतिशत की तुलना में 4.5 फीसदी रही, सीधे नकद हस्तांतरण आवश्यक हैं. दो लाख करोड़ रुपये की पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को विस्तार देते हुए 10 करोड़ ग्रामीण परिवारों को मासिक पांच हजार रुपये मुहैया कराने से ग्रामीण मांग में 10 फीसदी हो सकती है, जिससे जीडीपी में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि संभव है.

Tariff War : सत्ता का अंतर्विरोध यह है कि यह उनके हाथ जला डालता है, जो जनमत को कठोर तलवार समझने की गलतफहमी पाल लेते हैं. जब डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता अपने जनमत को भरोसे के बजाय डंडे की तरह इस्तेमाल करते हैं, ‘अमेरिका फर्स्ट’ के भ्रामक नारे को गति देने के लिए दूसरे देशों पर भारी टैरिफ थोप देते हैं, तब वे प्रतिद्वंद्वियों से ज्यादा अपना नुकसान करते हैं. ट्रंप के टैरिफ भारत के आर्थिक हृदय पर वज्रपात की तरह हैं. इससे फार्मास्यूटिकल्स (12.2 अरब डॉलर), परिधान (आठ अरब डॉलर), इलेक्ट्रॉनिक्स तथा ऑटोमोबाइल्स क्षेत्र को 50 फीसदी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा, जिससे जीडीपी में 0.50 फीसदी से ज्यादा की कमी आने की आशंका है.


इस तूफान में मांग बढ़ाकर, निवेश आकर्षित कर और प्रतिद्वंद्वी चीन की मैन्युफैक्चरिंग शक्ति को चुनौती देकर भारत के लिए अपनी नियति बदलने का अवसर भी है. इसके लिए हमारे आर्थिक मॉडल में बदलाव जरूरी है, जिसमें आपूर्ति पर जोर है, पर जो मांग बढ़ाने में सफल नहीं हो पायी. मांग बढ़ाने के लिए 15 लाख से अधिक सालाना कमाने वाले मध्यवर्ग को 30 से 40 फीसदी के आयकर के बोझ से अविलंब राहत देनी होगी. नीति आयोग के 2024 के आकलन के मुताबिक, सालाना 15 लाख से अधिक कमाने वालों पर आयकर घटाकर 15 फीसदी करने से इन लोगों को कुछ बचत होगी, जिससे अर्थव्यवस्था को करीब 50 अरब डॉलर उपभोग के लिए उपलब्ध होंगे.

ग्रामीण भारत में, जहां 2024 में उपभोग की वृद्धि दर शहरों की 6.2 प्रतिशत की तुलना में 4.5 फीसदी रही, सीधे नकद हस्तांतरण आवश्यक हैं. दो लाख करोड़ रुपये की पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को विस्तार देते हुए 10 करोड़ ग्रामीण परिवारों को मासिक पांच हजार रुपये मुहैया कराने से ग्रामीण मांग में 10 फीसदी हो सकती है, जिससे जीडीपी में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि संभव है. रोजगार वृद्धि पर ध्यान देना जरूरी है. रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे, साफ-सफाई, जल संरक्षण और सड़क परिवहन में 100 फीसदी सीधे विदेशी निवेश की इजाजत देने और इनमें तकनीक हस्तांतरण को अनिवार्य बनाने से रोजगार का परिदृश्य बदल सकता है. सालाना आठ फीसदी की दर से बढ़ने वाला देश का 81 अरब डॉलर का रक्षा बाजार ही 2030 तक 12 लाख रोजगार दे सकता है.

सड़क परिवहन क्षेत्र को, जो भारत की 3.5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, एक लाख किलोमीटर लंबे हाइवे के निर्माण के लिए 500 अरब डॉलर चाहिए. भूमि अधिग्रहण और 20 साल की टैक्स छूट वाले सरकारी नियम को सुव्यवस्थित करने से एफडीआइ में 30 फीसदी वृद्धि हो सकती है. टेक्नोलॉजी भारत का गोपनीय हथियार है. ट्रंप का एच-1बी वीजा प्रतिबंध 54 लाख रोजगार देने वाले 250 अरब डॉलर के आइटी सेक्टर को खतरे में डालने वाला है. हमारी सरकार को चाहिए कि वह टीसीएस और इनफोसिस जैसी फर्मों को एआइ, ब्लॉकचेन और 6जी जैसी तकनीक में महारत हासिल करने के लिए मदद दे. नैसकॉम की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्च एंड डेवलपमेंट में एक अरब के निवेश से 10,000 और 10 अरब के निवेश से 1,00,000 रोजगार सृजन 2028 तक संभव है.


अमेरिकी ट्रेजरी बांड्स में रखे 240 अरब डॉलर की धनराशि को 1.3 ट्रिलियन की नेशनल इन्फ्रास्ट्पक्चर पाइपलाइन में निवेश करना लाभप्रद होगा, जिसमें आठ फीसदी का रिटर्न है. भारत के दो ट्रिलियन डॉलर के डिजिटल बाजार से एमेजॉन और गूगल ने अरबों कमाये हैं. अब इन्हें भारत में चीन जैसे नियमों के तहत लाया जाना चाहिए. इन कंपनियों को यहां रिसर्च एंड डेवलमेंट सेंटर खोलने चाहिए और 50 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को देना चाहिए, अन्यथा यहां से बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए. इससे 2030 तक पांच लाख नौकरियां निकल सकती हैं. अमेरिकी रेटिंग एजेंसी के वर्चस्व से भी छुटकारा पाने का समय है. ऐसी एक व्यवस्था बननी चाहिए, जो वॉल स्ट्रीट की पसंद-नापसंद से चालित न हो. मूडी’ज, स्टैंडर्ड एंड पूअर्स और फिच जैसी एजेंसियां हमेशा भारत की क्षमता को कमतर करके आंकती हैं, जबकि भारत से कम विकास दर वाले चीन को ए1 ग्रेड देती हैं.

इस अमेरिकी कार्टेल को चुनौती देने के लिए ब्रिक्स समर्थित एक रेटिंग एजेंसी लॉन्च करने की जरूरत है. जैसा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024 में कहा भी था, ‘न्यूयॉर्क यह बताने वाला कौन होता है कि हम कौन हैं?’ मैकिंजे, इवाइ और पीडब्ल्यूसी जैसी कंसल्टेंसियां देश की 70 फीसदी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अयोग्य हैं. हमें एक नेशनल पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट का गठन कर चाहिए, जिनमें आइआइटी और आइआइएम ग्रेजुएट्स रखे जाएं. जमीन के दस्तावेजों को ब्लॉकचेन तकनीक से डिजिटाइज्ड करने से, तेलंगाना ने जिसका रास्ता दिखाया है, विवादों में सालाना खर्च होने वाले पांच अरब डॉलर बच सकते हैं. जीएसटी व कंपनी एक्ट्स उल्लंघन के छोटे मामलों को अपराध के दायरे से निकालने से सालाना 15 अरब डॉलर की पूंजी बच सकती है, जिससे लघु व्यापार को गति दी जा सकती है.

कोई कानून सिर्फ ट्रंप द्वारा और ट्रंप के लिए नहीं हो सकता. भारत पर 50 फीसदी का टैरिफ और डॉलर की जगह वैकल्पिक मुद्रा अपनाने पर ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लागू करने की धमकी बताती है कि अमेरिका को बहुध्रुवीय विश्व के उभार का डर है. भारत को चाहिए कि वह विश्व व्यापार को पुनर्परिभाषित करने के लिए ब्रिक्स का नेतृत्व करे, डॉलर को परे हटाये और अमेरिका के आर्थिक राष्ट्रवाद को पटरी से उतारे.


ब्रिक्स देशों के साथ भारत के 250 अरब डॉलर का व्यापार 2024 में 15 फीसदी की दर से बढ़ा. पर उच्च टैरिफ इस क्षेत्र की संभावनाओं में बड़ी बाधा है. सीआइआइ के मुताबिक, ब्रिक्स देशों के बीच पांच फीसदी के औसत टैरिफ के साथ मुक्त व्यापार समझौता लागू हो, तो 2030 तक निर्यात और 60 अरब डॉलर बढ़ सकता है. वर्ष 2026 में ब्रिक्स ट्रेड समिट की मेजबानी भारत को इस क्षेत्र में वैश्विक शक्ति बना सकती है. यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और आसियान ( 2024 में 50 अरब डॉलर का निर्यात) के साथ व्यापार समझौतों से भारत के विश्वगुरु बनने का सपना साकार हो सकता है. जैसा कि आरपीजी समूह के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने कहा, ‘ट्रंप का अराजक रवैया भारत के लिए चमकने का अवसर है’. ट्रंप की टैरिफ तानाशाही ने भारत को विजयी होने का अवसर दिया है. टैक्स घटाकर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बंदिशें हटाकर और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति कर भारत एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बन सकता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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