Retail inflation : राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उथल-पुथल के बीच महंगाई के मोर्चे पर देश को सचमुच बड़ी राहत मिली है, क्योंकि पहले खुदरा महंगाई घटकर छह साल के निम्न स्तर पर आ गयी, फिर उसके अगले दिन थोक मुद्रास्फीति भी कम होकर तेरह महीने के निम्न स्तर पर पहुंच गयी. आंकड़े बताते हैं कि थोक महंगाई अप्रैल में घटकर 0.85 प्रतिशत रह गयी है, जबकि मार्च में यह 2.05 फीसदी दर्ज की गयी थी. खाद्य पदार्थों, विनिर्मित उत्पादों तथा ईंधन की कीमत में कमी के चलते अप्रैल में थोक महंगाई घटकर एक फीसदी के नीचे आ गयी, जो पिछले तेरह महीने का सबसे निम्न स्तर है.
थोक महंगाई का मतलब उस कीमत से है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलती है. थोक महंगाई की तरह खुदरा महंगाई भी अप्रैल में घटकर 3.16 फीसदी रह गयी, जो छह साल का निम्नतम स्तर है. अप्रैल लगातार तीसरा महीना रहा, जब खुदरा महंगाई दर चार फीसदी के नीचे रही. मार्च में भी खुदरा महंगाई पांच महीने के निम्नतम स्तर यानी 3.34 प्रतिशत के स्तर पर पहुंची थी. खुदरा महंगाई की दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है. आंकड़े यह भी बताते हैं कि अप्रैल में ग्रामीण महंगाई दर में शहरी क्षेत्रों की खुदरा महंगाई दर की तुलना में अपेक्षाकृत ज्यादा गिरावट देखने को मिली और यह मार्च के 3.25 फीसदी से गिरकर अप्रैल में 2.92 प्रतिशत रह गयी.
जाहिर है कि खुदरा मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के संतोषजनक दायरे में बनी हुई है. केंद्रीय बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई दर को अधिकतम चार प्रतिशत पर बनाये रखने का लक्ष्य तय किया है. रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति तैयार करते समय प्रमुख रूप से खुदरा महंगाई को ध्यान में रखता है, जो अप्रैल, 2019 के बाद सबसे नीचे है. महंगाई दर में कमी आने से रिजर्व बैंक के लिए जून की मौद्रिक नीति समीक्षा में फिर से ब्याज दर में कटौती की गुंजाइश बन गयी है, जिससे कि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके.
गौरतलब है कि केंद्रीय बैंक ने अप्रैल में रेपो दर में 0.25 फीसदी की कटौती करके इसे छह फीसदी कर दिया था. थोक और खुदरा मुद्रास्फीति में आयी गिरावट आम आदमी के लिए तो राहत भरी है ही, यह अर्थव्यवस्था के लिए आश्वस्त करने वाली बात है, क्योंकि महंगाई दर कम रहने से ब्याज दर में कमी आयेगी, जिससे व्यापार और उद्योग क्षेत्र के पास निवेश करने के लिए ज्यादा पैसा आयेगा.