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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से कायाकल्प

प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत को एआइ का ग्लोबल हब बनाना चाहते है़ं यानी, हम उनका निर्माण और विकास पूरी दुनिया के लिए करेंगे़

बालेंदु शर्मा दाधीच, तकनीकी मामलों के जानकार

balendudadhich@gmail.com

हाल ही में दिल्ली में एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) पर आधारित एक वैश्विक सम्मेलन हुआ, जिसने एआइ के बारे में वैश्विक विमर्श की बड़ी पहल की़ दर्जनों सत्रों, चर्चाओं, व्याख्यानों और बहसों में विज्ञान और तकनीक की अंतरराष्ट्रीय वैचारिक धारा को प्रभावित करने वाले मुद्दे उठे़ किंतु केंद्र में रहा भारत, उसकी क्षमताएं,= नेतृत्वकारी स्थिति तथा महत्वाकांक्षाएं, विशेषकर यह प्रश्न कि क्या भारत दुनिया में पैदा हो रहे इस अद्भुत अवसर का लाभ उठाकर सामाजिक-आर्थिक तरक्की की नयी ऊंचाई हासिल कर सकता है़

भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा नीति आयोग की ओर से आयोजित रेज 2020 (रिस्पांसिबल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर सोशल एंपावरमेंट) में सैकड़ों विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और लगभग 50 हजार लोगों ने प्रतिभागिता की़ इससे सम्मेलन के महत्व और प्रभाव का अनुमान लग जाता है़ तकनीक की दुनिया में एआइ एक नया क्षेत्र उभरा है, जो अपने साथ आर्थिक तरक्की की बड़ी संभावनाएं लेकर आया है़ यह मौका उतना ही बड़ा हो सकता है जितना कंप्यूटर और इंटरनेट के आगमन का मौका था़ दुनिया इस अवसर का फायदा उठाने में लगी है़ अमेरिका, चीन और यूरोप रात-दिन इस क्षेत्र में बढ़त बनाने में जुटे हुए है़ं वहां अनुसंधान और कौशल विकास पर बहुत बड़ी राशि खर्च की जा रही है़

भारत में भी इसका लाभ उठाने पर सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में मंथन शुरू हो गया है़ कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर राष्ट्रीय रणनीति, जो नीति आयोग की पहल है, के दस्तावेज में अनुमान लगाया गया है कि एआइ भारत की अर्थव्यवस्था में 2035 तक लगभग एक ट्रिलियन डॉलर (957 अरब डॉलर) का योगदान देने की क्षमता रखती है, जो उस समय के जीडीपी का 1.3 प्रतिशत हो सकता है़ यह एक बड़ा आंकड़ा है़ विगत कुछ वर्षों से हमारी जीडीपी छह से सात फीसदी के बीच चल रही है़ यदि इसमें 1.3 प्रतिशत और जुड़ जाये तो वह चीन के श्रेष्ठ वर्षों की श्रेणी में आ सकती है़

यह मात्र संयोग नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेज 2020 में, अपने उद्घाटन भाषण में भारत को एआइ का ग्लोबल हब बनाने की आकांक्षा जाहिर की है़ उन्होंने सरकारी सेवाओं, कृषि और अगली पीढ़ी की शहरी आधारभूत संरचनाओं जैसे कुछ क्षेत्रों का खास तौर पर उल्लेख किया है़ भारत की आर्थिक प्रगति में इन सभी क्षेत्रों की बड़ी प्रतिभागिता रहने वाली है़ स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा, विनिर्माण, जन-सेवाएं आदि तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जिनका कायाकल्प एआइ की मदद से होना अवश्यंभावी है़ अमेरिका इस दौड़ में आगे है़ चीन का भी नाम एआइ के संभावित ग्लोबल लीडर के रूप में लिया जाने लगा है़ प्रश्न उठता है कि क्या भारत आगे निकलकर सबको चकित कर सकता है?

एआइ का अर्थ मशीनों (या प्रौद्योगिकी) के भीतर इंसानों जैसी सीखने, विश्लेषण करने, सोचने-समझने, समस्याओं का समाधान करने, निर्णय लेने जैसी क्षमताएं पैदा हो जाने से है़ अभी ये क्षमताएं केवल मनुष्य के पास है़ं लेकिन अब प्रौद्योगिकी ने इतनी तरक्की कर ली है कि बेजान मशीनों के भीतर भी इनसे मिलती-जुलती क्षमताएं पैदा हो गयी है़ं जब मशीनें इंसान जैसी क्षमताएं पा जाएं तो खुशी भी होती है और डर भी लगता है़

खुशी यह कि हमारे पास ऐसी मशीनें होंगी जो अनगिनत इंसानों के बराबर काम कर डालेंगी और वह भी बेहतर गुणवत्ता के साथ़ डर यह कि फिर इंसान का क्या होगा? वह क्या करेगा, खायेगा-कमायेगा कैसे? हमारा देश तो कामगारों और किसानों का देश है़ अगर इसी तरह कामगार बेरोजगार होते रहे तो बेरोजगारों की इतनी बड़ी फौज खड़ी हो जायेगी कि देश की अर्थव्यवस्था वैसे ही डूब जायेगी़ फिर हम क्यों इसे इतना बड़ा अवसर मानकर चल रहे हैं?

यह डर अनुचित नहीं है, लेकिन हमें हमारे योजनाकारों के वास्तविक मंतव्य को समझने की आवश्यकता है़ प्रधानमंत्री ने कहा है कि हम भारत को एआइ का ग्लोबल हब बनाना चाहते है़ं इसका अर्थ हुआ कि हम अपने यहां ऐसी मशीनों, तकनीकों, सेवाओं और उत्पादों का ‘प्रयोग’ करने मात्र तक ही सीमित नहीं रहेंगे़ हम उनका निर्माण और विकास पूरी दुनिया के लिए करेंगे़ अपेक्षा है कि हम उपभोक्ता या प्रयोक्ता मात्र नहीं होंगे, बल्कि प्रदाता होंगे़ सिर्फ ग्राहक नहीं, विक्रेता होंगे़

हम इनोवेटर (नवोन्मेषकर्ता) और अन्वेषक होंगे़ तब दुनिया भर से कंपनियां और सरकारें भारत आयेंगी और हमारी अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी़ यदि हम पूरी प्रतिबद्धता से जुट जाएं तो एआइ और उससे संबंधित सेवाओं में उतनी ही मजबूती हासिल कर सकते हैं, जितनी चीन ने मैन्युफैक्चरिंग में की है़ जैसे हर सस्ते उत्पाद के निर्माण के लिए दुनिया भर की कंपनियां चीन जाती हैं, वैसे ही एआइ से जुड़े हर काम के लिए वे भारत आने की सोचेंगी़ चीन की तरह भारत में भी श्रम सस्ता है, लेकिन चीन के विपरीत भारत बेहतर गुणवत्ता के लिए भी जाना जाता है़

आज चीन जिस तरह छोटी से लेकर बड़ी चीजों का निर्माण कर रहा है, उसी तरह यदि हम एआइ के क्षेत्र में दबदबा बना लें, तो क्या हमारा आर्थिक कायाकल्प नहीं हो जायेगा? आर्थिक कायाकल्प की स्थिति में हम दूसरे क्षेत्रों में अनगिनत अवसर पैदा करते हैं और बेरोजगारी की समस्या का हल खोजने के विकल्प तैयार होने लगते है़ं अगले 50 वर्षों तक तकनीकी क्षेत्र में मांग जारी रहने वाली है और इसमें भारतीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की कमी नहीं होगी, यदि हम अपने पत्ते सही ढंग से खेलते हैं तो़ यहां भारत लाभ की स्थिति में है़ दुनिया में स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित) विषयों में ग्रेजुएट पैदा करने वाले देशों में हम अग्रणी है़ं

कुशल पेशेवरों की उपलब्धता, डेटा की प्रचुरता, कनेक्टिविटी की सुगमता, युवाओं की बड़ी संख्या, सरकार की प्रतिबद्धता, बदलती नियामकीय व्यवस्थाएं, एकाधिक भाषाओं में प्रवीणता और भारत के प्रति दुनिया के भरोसे के कारण हम वाकई छलांग लगाने की स्थिति में है़ं अनेक देशों ने ऐसे अवसरों का लाभ उठाकर अपना कायाकल्प किया है़ जापान ने इलेक्ट्रॉनिक्स क्रांति और चीन ने मैन्युफैक्चरिंग क्रांति का लाभ उठाया है़ हालांकि चुनौतियों की भी कमी नहीं है़ लेकिन सरकार, निजी क्षेत्र के बड़े संस्थान और नागरिक एकजुट हो जाएं तो क्या नहीं कर सकते़

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Posted by : Pritish Sahay

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