Punjab Floods : देश की भूख मिटाने वाला पंजाब इन दिनों बीते कई दशकों की सबसे भयावह बाढ़ से जूझ रहा है. गांव के गांव बह गये हैं. खेतों में बालू ने घर बना लिया है. पंजाब के ये हालात पानी उतरने के बाद भी नहीं सुधरने वाले. बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद पांच नदियों के इस राज्य की दिक्कतें और बढ़ेंगी. सारा देश पंजाब के साथ खड़ा है और मदद के लिए हाथ बढ़ा रहा है. खेती और पशुधन से संपन्न पंजाब में नदियों-नालों में आये उफान के कारण तीन लाख एकड़ से ज्यादा फसली जमीन को हानि पहुंची है. सबसे अधिक असर धान, मक्का, सब्जियों और अन्य खरीफ फसलों पर हुआ है. सीमा से लगे गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, जालंधर, फाजिल्का, कपूरथला और आसपास के गांवों में घर, सड़क और दुकानें पानी में डूब गयी हैं. अब तक 29 लोगों की मौत हुई है और 2.56 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
पंजाब का समाज बहुत जीवट वाला है, लेकिन आज वहां हुई तबाही को देखते हुए बड़ी मात्रा में मदद जरूरी है. कई हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका ऐसा है, जहां अगले कई महीनों तक पानी व उसके साथ आयी रेत व गाद जमा रहेगी. पानी में फंसे लोगों के लिए भोजन जरूरी है और उसकी व्यवस्था स्थानीय सरकार व कई जन संगठन कर रहे हैं. लेकिन वहां पीने के लिए साफ पानी की बहुत कमी है और राज्य के सभी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद पड़े हैं. गंदा पानी पीने से हैजा फैलने का खतरा है. वहां लाखों बोतल पेयजल की रोज की मांग के साथ बगैर बिजली वाले फिल्टर, बड़े आरओ, बैटरी, इन्वर्टर व आम लोगों के लिए मोमबत्तियां व माचिस की सख्त जरूरत है, क्योंकि बिजली की आपूर्ति सामान्य करने में बहुत से अड़ंगे हैं. पानी भरे क्षेत्रों में महामारी को रोकने के लिए फिनाइल, क्लोरीन पाउडर, मच्छर मारने के स्प्रे आदि चाहिए .
वर्षा खत्म होने पर गलियों-मोहल्लों में भरे पानी को निकालना, कीचड़ हटाना, मरे जानवरों व इंसानों का निस्तारण और सफाई सबसे बड़ा काम होगा. जब तक गंदगी, मलबा और पानी हटेगा नहीं, तब तक जीवन को फिर से पटरी पर लाना मुश्किल है. बाढ़ प्रभावितों में हजारों लोग ऐसे हैं, जो मधुमेह, ब्लड प्रेशर, थायराइड जैसी ऐसी बीमारियों से पीड़ित हैं, जिन्हें नियमित दवाई लेनी पड़ती है और बाढ़ उनकी सारी दवा बहा कर ले गयी है. अपना सब कुछ लुटने के दर्द और राहत शिविरों की सीमित व्यवस्था के चलते मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की संख्या भी बढ़ रही है. उनकी नियमित दवाएं, पानी की बोतलें, डेटॉल, फिनाइल, क्लोरीन की गोलियां, पेट में संक्रमण और बुखार की दवाएं, ग्लूकोज पाउडर, औरतों के लिए सेनेटरी नैपकिन आदि तत्काल जरूरत की चीजें हैं.
पंजाब के दूरस्थ अंचलों में नवनिर्माण के लिए सीमेंट, लोहा जैसी निर्माण सामग्री भेजना भी आवश्यक है. फिलहाल तो राज्य के गांवों से ढाई लाख लोग अपने घर से पूरी तरह विस्थापित हुए हैं. वहां के बाजार बह गये हैं, वाहन नष्ट हो गये हैं. ऐसे में जान-माल के नुकसान के बीमा दावों का तत्काल निपटारा एक बड़ी राहत होगी. चूंकि राज्य सरकार का बिखरा-लुटा-पिटा अमला अभी खुद को संभालने में लगा है, ऐसे में नुकसान के आकलन, दावे पेश करने, बीमा कंपनियों पर तत्काल भुगतान के लिए दबाव बनाने आदि के लिए बहुत से पढ़े-लिखे लोगों की वहां जरूरत है. ऐसे लोगों की भी जरूरत है, जो दूरदराज में हुए माल-असबाब के नुकसान की सूचना और सही मूल्यांकन सरकार तक पहुंचा सकें और यह सुनिश्चित करें कि केंद्र या राज्य सरकार की किन योजनाओं का लाभ बाढ़ प्रभावितों को मिल सकता है.
पानी उतरने पर जीवन को फिर से पटरी पर लाना भी गंभीर समस्या होगी, क्योंकि सरकारी राहत का पैसा बैंक खाते में जायेगा और उसी खाते में जायेगा, जिनके पास आधार कार्ड है. जिनका घर व सामान बाढ़ में बह गया, उनके पास आधार तो होने से रहा. ऐसे में लोगों को उनकी पहचान के कागजात उपलब्ध कराने के लिए ऐसे लोगों को आगे आना होगा, जो बाढ़ प्रभावितों के डुप्लीकेट आधार आदि कंप्यूटर से निकाल कर उन तक पहुंचा सकें. जब हालात कुछ सुधरेंगे, तब स्कूल व शिक्षा की याद आयेगी और तभी पता चलेगा कि सैलाब में स्कूल, किताबें, बच्चों के बस्ते सब बह गये हैं. जाहिर है, कम से कम दो लाख बच्चों को बस्तों, कॉपी-किताबों, पेंसिल, पुस्तकों की जरूरत पड़ेगी. व
हां की पाठ्यपुस्तकों को फिर से छपवाना पड़ेगा, ब्लैकबोर्ड व फर्नीचर बनवाने पड़ेंगे. जाहिर है, संस्थागत या निजी तौर पर बच्चों के लिए काम करने की जरूरत है. उनके पौष्टिक आहार के लिए बिस्किट और सूखे मेवे जैसी चीजों की मांग भी है. हमारे यहां आज तक कोई दिशानिर्देश बनाये ही नहीं गये कि आपदा की स्थिति में किस तरह की तात्कालिक तथा दीर्घकालिक सहयोग की जरूरत होती है. यह कोई दान या मदद नहीं है, हम एक मुल्क का नागरिक होने का अपना फर्ज अदा करने के लिए अपने संकटग्रस्त देशवासियों के साथ खड़े होते हैं. ऐसे में, यदि हम जरूरत के मुताबिक पंजाब के बाढ़ पीड़ितों के साथ खड़े हों, तो यह सार्थक होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

