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कोरोना का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

कोरोना काल के बाद हमें बहु-आयामी बनना होगा, जिसमें एक लचीले एवं अनुकूलित समाज के लिए शारीरिक स्वास्थ्य एवं प्रतिरक्षा, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अनुकूल और एक जन-आधारित मानसिक स्वास्थ्य निवारक कार्यक्रम तैयार करना होगा.

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, मानव संसाधन विकास मंत्री भारत सरकार

delhi@prabhatkhabar.in

कोविड-19 महामारी ने हमारी सामान्य दिनचर्या को प्रभावित कर कई तरह की चुनौतियां पैदा की हैं. छात्रों सहित हर आयु वर्ग के लोगों और पेशेवरों में तनाव व चिंताएं बढ़ायी हैं. मानसिक स्वास्थ्य का समाज की बेहतरी और उत्पादकता से पारस्परिक संबंध है. दुनियाभर में मानसिक और व्यवहार संबंधी विकारों की कुल बीमारियों में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जो विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (डीएएलवाइ) यानी खराब स्वास्थ्य, विकलांगता या जल्दी मौत के कारण बर्बाद हुए साल में समझी जा सकती है. यह विडंबना है कि डब्लूएचओ द्वारा हाल में जुटाये गये आंकड़े बताते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए देशों में उपलब्ध संसाधनों और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बढ़े बोझ के बीच एक बड़ा अंतर है.

डब्लूएचओ के अनुसार, स्वास्थ्य और बेहतर स्वास्थ्य इक्विटी के निर्धारकों पर सकारात्मक प्रभाव के लिए चिकित्सा सेवा क्षेत्र और आर्थिक, पर्यावरण व सामाजिक क्षेत्रों में स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाली नीतियों की आवश्यकता है. साथ ही बहुत सारी चीजें हैं, जो हम मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल और दूसरों की मदद के लिए कर सकते हैं. मैं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक राहत पैकेज के तहत विद्यार्थियों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों के मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए पहल की घोषणा की.

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए ‘महामारी का मानसिक-सामाजिक प्रभाव और उससे कैसे निबटें’ शीर्षक से कोरोना अध्ययन श्रृंखला की अवधारणा पर काम किया, जिससे कोरोना के बाद सभी उम्र समूह के पाठकों की जरूरतों के हिसाब से प्रासंगिक अध्ययन सामग्री उपलब्ध हो सकें. ये पुस्तकें तमाम टेलीफोन कॉल्स और प्रख्यात मनोवैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न उम्र समूहों में कराये गये ऑनलाइन सर्वेक्षण और शोध पर आधारित हैं, जिसे सात पुस्तिकाओं में प्रकाशित किया गया.

यह अद्भुत काम साझा करने लायक है. प्रकाशनों से कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं- सामाजिक दूरी का भविष्य : बच्चों, किशोरों, युवाओं के लिए नयी बुनियाद. इसमें इस बात का जिक्र है कि विद्यार्थियों ने कैसे चिंता, तनाव, अनिश्चितता और घबराहट का सामना किया और कैसे वे पढ़ाई और जीने के नये तरीकों से तालमेल बिठा रहे थे.

समानांतर रूप से कैसे वे तकनीक से परिचित होने के क्रम में सीखने, अपने कौशल, हुनर को मांझने के लिए उनका दोहन करने का प्रयास करते हैं. ‘कोरोना से संघर्ष में घिरना : कामकाजी लोगों के लिए एक नजरिया’- यह बोध कराता है कि कोविड-19 महामारी की हताश करने वाली स्थिति ने काम करने वाले पेशेवरों के लिए सामाजिक-आर्थिक और व्यक्तिगत चुनौतियों का एक समूह विकसित किया है.

यह दुख की बात है कि मेरे प्यारे देश में बहनों एवं माताओं को इस महामारी के दौरान घरेलू हिंसा एवं मादक द्रव्यों के सेवन के बढ़ते रूपों का सामना करना पड़ रहा है. इस तरह के मामलों से निबटने के लिए उनके पास सहायता प्रणाली की भी कमी है. ‘घर में नये मोर्चों की स्थिति : महिलाओं, माताओं और माता-पिता के लिए एक दृष्टिकोण’- यह महिलाओं के दुर्व्यवहार की स्थिति को दर्शाता है. हालांकि इन चुनौतीपूर्ण हालात का डर हम पर हावी होने की कोशिश करता है, लेकिन हमें खुद को बेहतर महसूस कराने के लिए अपना काम मिल कर करने की आवश्यकता है.

‘मानसिक तनाव के कई अर्थों एवं रंगों के साथ शरद ऋतु में कमजोर : बुजुर्गों का समझना’, यह सुझाव देता है कि बुजुर्गों को एक पारिवारिक परामर्शदाता की भूमिका देने की आवश्यकता है, क्योंकि उनके पास वर्तमान पीढ़ी का मार्गदर्शन करने के लिए व्यापक व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभव एवं ज्ञान है. दिव्यांगों की चिंताओं को समझना और अलगाव तथा लचीलापन में उल्लेख है कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चे धीरे-धीरे सुस्त, उबाऊ और अलग-थलग महसूस करने लगे हैं. उन्होंने संक्रमित होने पर चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने में समान पहुंच और प्राथमिकताओं को लेकर चिंताओं का सामना किया.

इस दौरान देश ने कोरोना योद्धाओं का असाधारण समर्थन देखा है, चाहे वह डॉक्टर हों, नर्सें हों या अन्य मेडिकल स्टाफ हों. एक तरफ, उन पर दूसरों के जीवन को बचाने का दबाव है और दूसरी तरफ, उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता से भी जूझना पड़ता है. हम ऐसे दर्द और तनाव में अपने योद्धाओं को कैसे छोड़ सकते हैं? ‘कोरोना वारियर्स होने की परख : चिकित्सा और आवश्यक सेवा प्रदाताओं के लिए एक दृष्टिकोण’ उन्हें बेहतर मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद करने के लिए स्व-प्रशासनिक चिकित्सीय साधन प्रदान करता है. आगे चल कर, यही भय, भेदभाव और सामाजिक लांछन, कोरोना प्रभावित परिवारों को समझने में उकसाती है.

मैं अध्ययन समूह के सुझावों से दृढ़ता से सहमत हूं कि कोरोना काल के बाद, हमें राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के मानसिक स्वास्थ्य निवारक घटक को मजबूत करने की आवश्यकता है. साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य के अभिन्न अंग के रूप में समुदाय आधारित मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन और स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य प्रोत्साहन नीतियों पर जोर दिये जाने की जरूरत है. कोरोना काल के बाद हमें बहु-आयामी बनना होगा, जिसमें एक लचीले एवं अनुकूलित समाज के लिए शारीरिक स्वास्थ्य एवं प्रतिरक्षा, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अनुकूल और एक जन-आधारित मानसिक स्वास्थ्य निवारक कार्यक्रम तैयार करना होगा.

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