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गौरवपूर्ण आर्थिक यात्रा

कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला हमारा देश जब आज से 75 वर्ष पहले स्वतंत्र हुआ, तो वह औपनिवेशिक शासन के दमन व शोषण से जर्जर और निर्धन हो चुका था. उस समय भारत का सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) मात्र 2.7 लाख करोड़ रुपये था. अमृत महोत्सव के इस वर्ष में यह आंकड़ा 236 लाख करोड़ रुपये से अधिक है.

कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला हमारा देश जब आज से 75 वर्ष पहले स्वतंत्र हुआ, तो वह औपनिवेशिक शासन के दमन व शोषण से जर्जर और निर्धन हो चुका था. उस समय भारत का सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) मात्र 2.7 लाख करोड़ रुपये था. अमृत महोत्सव के इस वर्ष में यह आंकड़ा 236 लाख करोड़ रुपये से अधिक है. आज हम न केवल शीर्षस्थ वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं, बल्कि तमाम बाधाओं के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि की गति सर्वाधिक है.

वर्ष 1950 में हमारी प्रति व्यक्ति आय 265 रुपये थी, जो आज 1.30 लाख रुपये के आसपास है. यह बढ़ोतरी 500 गुना से भी अधिक है. विदेशी मुद्रा भंडार 1.82 अरब डॉलर से बढ़ कर 573 अरब डॉलर हो चुका है. सिंचाई सुविधाओं के अभाव, सूखे व बाढ़ जैसी समस्याओं के कारण हमें कभी खाद्यान्न का आयात करना पड़ता है, लेकिन दशकों के प्रयास से भारत इस मामले में आत्मनिर्भर होने के साथ दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों की सूची में भी है.

आर्थिक प्रगति के स्तर का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हमारी जीडीपी में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत हो चुकी है. विभिन्न कारणों से स्वतंत्रता के पहले डेढ़ दशकों में हमारा निर्यात बहुत कम भी था और उसमें कोई वृद्धि नहीं हो रही थी. धीरे-धीरे होते औद्योगिक विकास और उद्यमिता के विस्तार ने विकास यात्रा को एक बड़ा आधार दिया और तीन दशक पहले उदारीकरण के लागू होने के बाद से हमारा निर्यात निरंतर बढ़ता जा रहा है. बीते वित्त वर्ष में कुल निर्यात लगभग सवा चार सौ अरब डॉलर रहा था. दुनिया के अग्रणी देश- अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, हांगकांग, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया आदि- हमारे उल्लेखनीय व्यापारिक साझेदार हैं. आज हम दवाओं के सबसे बड़े निर्माता हैं, जिस कारण भारत को ‘दुनिया का दवाखाना’ भी कहा जाता है.

विभिन्न रोगों के टीकों की 50 प्रतिशत से अधिक आपूर्ति भारत से ही होती है. सीमेंट, इस्पात और कोयले के उत्पादन में हम दुनिया में दूसरे पायदान पर हैं तथा बिजली उत्पादन में तीसरे स्थान पर आ चुके हैं. हमारी शानदार आर्थिक प्रगति का एक संकेतक यह भी है कि 1951 में जहां तीन लाख वाहनों का पंजीकरण हुआ था, वहीं यह संख्या 2019 में 2.90 करोड़ हो गयी. बीते दस वर्षों में वाहन पंजीकरण में लगभग 9.91 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है. गरीबी उन्मूलन, आवास उपलब्धता, रोजगार, कौशलयुक्त शिक्षा, तकनीक, वित्तीय प्रबंधन आदि मामलों में हमारा विकास विश्व के समक्ष एक आदर्श है.

साढ़े सात दशकों की इस प्रगति पर हमें गौरवान्वित होना चाहिए तथा नीति निर्धारकों, श्रमिकों, किसानों, कारोबारियों, प्रबंधकों, उद्यमियों, तकनीकी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों आदि के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए. लेकिन हमें इन्हीं उपलब्धियों के साथ संतुष्ट नहीं होना है. हमें यह संकल्प भी लेना है कि आगामी वर्षों में हम गंभीर आर्थिक विषमता और निर्धनता को पूरी तरह समाप्त करेंगे.

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