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राजनीति को राष्ट्रसेवा मानते थे पं दीनदयाल उपाध्याय, पढ़ें आदर्श तिवारी का आलेख

Pandit Deendayal Upadhyay : दीनदयाल जी राजनीति को राष्ट्रसेवा का लक्ष्य मानकर चलते थे. उनका लक्ष्य मानव कल्याण से राष्ट्र कल्याण का था, जिसमें भेदभाव या ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं था. राजनीति में शुचिता और सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा अटल थी.

Pandit Deendayal Upadhyay : पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीयता और भारत के मूल्यों पर गहन चिंतन के आधार पर एकात्म मानवदर्शन जैसा मूल्यवान वैचारिक दर्शन प्रतिपादित किया, जो भारतीय राजनीति और समाज के लिए दिशा-निर्देशक सिद्ध हुआ. उन्होंने राजनीति को तपस्वी के समान जिया और देश की चुनौतियों को न केवल रेखांकित किया, अपितु उनके समाधान के लिए दीर्घकालिक मार्ग भी सुझाये. बीती सदी के छठे दशक में उनके द्वारा प्रस्तावित नीतियां व विचार चाहे वह स्वदेशी हो, आर्थिक क्षेत्र हो, कृषि, कुटीर उद्योगों का सशक्तीकरण हो, या विकेंद्रीकरण की अवधारणा हो, आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. एकात्म मानववाद वह समग्र दर्शन है, जिसका व्यावहारिक लक्ष्य अंत्योदय है. वह मानते थे कि हमारी समस्त व्यवस्थाएं मानव-केंद्रित होनी चाहिए. उनका आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दर्शन भारतीयता के मूल्यों से प्रेरित था. आत्मनिर्भरता पर बल देते हुए उन्होंने विदेशी सहायता पर निर्भरता को राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए हानिकारक माना.


उनका विश्वास था कि गांवों और किसानों की समृद्धि से ही देश का सर्वांगीण विकास संभव है. उनकी आर्थिक दृष्टि थी कि उत्पादक वस्तुएं बड़े उद्योगों द्वारा और उपभोग की वस्तुएं छोटे उद्योगों द्वारा तैयार की जानी चाहिए. वह आर्थिक विकेंद्रीकरण के प्रबल समर्थक थे, क्योंकि बिना विकेंद्रीकरण के गांव और जनपद विकास के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकते. अंत्योदय की उनकी अवधारणा समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के विकास पर केंद्रित थी. यह सुखद है कि दीनदयाल जी के विचारों को आदर्श मानने वाली पार्टी ने आज सत्ता में होते हुए उनके अंत्योदय और आत्मनिर्भर भारत के सिद्धांत को शासन की मुख्य धुरी बना लिया है. पिछले एक दशक में आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भारत ने कई असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं. रक्षा क्षेत्र में जो राष्ट्र कभी विदेशी शक्तियों पर आश्रित था, आज वह स्वदेशी युद्धपोत, तेजस जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और ब्रह्मोस जैसी मारक मिसाइलें बना रहा है. डिजिटल क्रांति भी आत्मनिर्भर भारत की बड़ी सफलताओं में से एक है.

आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत, दवा और मेडिकल उपकरणों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना ने घरेलू निर्माताओं को बड़े पैमाने पर निवेश के लिए प्रोत्साहित किया है. ग्रामीण क्षेत्रों को भी सशक्त करने के प्रयास तेज हुए हैं. कृषि को तकनीकी नवाचार से जोड़ने की कोशिश ने किसानों को नयी दिशा दी है. ड्रोन तकनीक और जैविक खेती जैसे प्रयोगों ने उत्पादन बढ़ाया और बाजार से किसानों के जुड़ाव को सुनिश्चित किया.


राजनीतिक और संगठन के कार्यों में भी दीनदयाल जी की अनुशासित और शुचिता भरी कार्यशैली ने अपनी अमिट छाप छोड़ी. जनसंघ का अध्यक्ष बनने के उपरांत कालीकट अधिवेशन (1967) में अपने पहले अध्यक्षीय भाषण में दीनदयाल जी ने कृषि, अर्थव्यवस्था, कश्मीर, भाषा समस्या जैसे सभी विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये, पर भाषण के अंत में जनसंघ के लक्ष्य को केंद्र में रखते हुए उन्होंने कहा था कि ‘हमने किसी संप्रदाय या वर्ग की सेवा का नहीं, संपूर्ण राष्ट्र की सेवा का व्रत लिया है. सभी देशवासी हमारे बांधव हैं. जब तक हम इन सभी बंधुओं को भारतमाता के सच्चे सपूत होने का गौरव प्रदान नहीं करा देंगे, हम चुप नहीं बैठेंगे’.


दीनदयाल जी राजनीति को राष्ट्रसेवा का लक्ष्य मानकर चलते थे. उनका लक्ष्य मानव कल्याण से राष्ट्र कल्याण का था, जिसमें भेदभाव या ऊंच-नीच का कोई स्थान नहीं था. राजनीति में शुचिता और सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा अटल थी. वह भौतिक साधनों को मानव सुख का साधन मानते थे, साध्य नहीं. एकात्म मानववाद के दर्शन में वह शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के समग्र विकास की बात करते थे, जो मानव को आत्मिक सुख प्रदान करता है.


चार फरवरी, 1968 को बरेली में दिया गया उनका अंतिम भाषण उनकी राष्ट्रसेवा की भावना को दर्शाता है. उन्होंने कहा था कि ‘राष्ट्र के गौरव में ही हमारा गौरव है. परंतु आदमी जब इस सामूहिक भाव को भूलकर अलग-अलग व्यक्तिगत धरातल पर सोचता है, तो उससे नुकसान होता है. जब हम सामूहिक रूप से अपना-अपना काम करके राष्ट्र की चिंता करेंगे, तो सबकी व्यवस्था हो जायेगी. यह मूल बात है कि हम सामूहिक रूप से विचार करें, समाज के रूप में विचार करें, व्यक्ति के नाते से नहीं. आगे उन्होंने कहा था कि सदैव समाज का विचार करके काम करना चाहिए. दीनदयाल जी सही मायने में राष्ट्र साधक थे. उन्होंने अपने विचारों और राष्ट्रसेवा के व्रत के लिए स्वयं को खपा दिया, सर्वकल्याण के मंत्र को अपना सर्वोच्च ध्येय माना. उनका जीवन किसी एक दल के लिए नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में कार्यरत हर कार्यकर्ता के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

आदर्श तिवारी
आदर्श तिवारी
स्वतंत्र पत्रकार

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