31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

लेटेस्ट वीडियो

मनोज कुमार : टूट गयी जिंदगी की लड़ी

Manoj Kumar : मनोज कुमार से पिछले करीब 50 वर्षों से एक अद्भुत नाता बन गया था. इस दौरान मुंबई में उनके घर पर या उनके दिल्ली आगमन पर तो उनसे मुलाकात होती रही. कभी सोचा न था कि जिस मनपसंद सितारे की ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘शोर’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्में देखकर मैं बड़ा हुआ, उनसे एक आत्मीय रिश्ता बन जाएगा.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Manoj Kumar : ऐसा दो-तीन बार हुआ, जब मनोज कुमार गंभीर रूप से अस्वस्थ हुए. उन्हें अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा. लेकिन हर बार वह जिंदगी की जंग जीतकर सकुशल घर लौट आये, तो खुशी हुई. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. विगत चार अप्रैल को मनोज कुमार की जिंदगी की लड़ी टूट गयी. मनोज कुमार का निधन भारतीय सिनेमा के स्वर्णकाल के एक ऐसे फिल्मकार का जाना है, जिसने अपनी फिल्मों से राष्ट्रभक्ति की अलख जगाकर देश में एक नये युग का सूत्रपात तो किया ही, अपनी फिल्मों से विश्वभर में भारतीय संस्कृति का जयगान भी किया. उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 2016 में दादासाहब फाल्के से सम्मानित किया गया.


मनोज कुमार से पिछले करीब 50 वर्षों से एक अद्भुत नाता बन गया था. इस दौरान मुंबई में उनके घर पर या उनके दिल्ली आगमन पर तो उनसे मुलाकात होती रही. कभी सोचा न था कि जिस मनपसंद सितारे की ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘शोर’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्में देखकर मैं बड़ा हुआ, उनसे एक आत्मीय रिश्ता बन जाएगा. मनोज कुमार ने लगभग 50 फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘हिमालय की गोद में’, ‘नील कमल’, ‘वो कौन थी’, ‘शहीद’, ‘गुमनाम’, ‘पहचान’, ‘बेईमान’, ‘पत्थर के सनम’, ‘दो बदन’, ‘यादगार’, ‘संन्यासी’, ‘दस नंबरी’, ‘अमानत’ और ‘शिरडी के साईं बाबा’ अहम हैं.

अविभाजित भारत के एबटाबाद में 24 जुलाई, 1937 को जन्मे मनोज कुमार अब जब अपनी जन्मस्थली की चर्चा करते थे, तो कहते, ‘वही एबटाबाद, जहां लादेन को अमेरिका ने मारा था’. विभाजन के पश्चात मनोज कुमार परिवार सहित दिल्ली आ गये थे, जहां वह पहले किंग्ज्वे कैंप के शरणार्थी कैंप और फिर विजय नगर में रहने लगे थे. दिल्ली आने पर मनोज कुमार को अपने स्कूल के दिनों से फिल्मों का शौक हो गया था. दिल्ली के हिंदू कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद वह वहां नाटक भी करने लगे थे. एक दिन इनके एक रिश्तेदार फिल्मकार लेखराज भाकड़ी दिल्ली आये, तो 19 साल के मनोज का आकर्षक व्यक्तित्व और फिल्मों का शौक देख उन्होंने इनसे कहा, ‘यदि संघर्ष कर सकते हो, तो बॉम्बे आ जाओ.’

मनोज कुमार का मूल नाम हरीकृष्ण गोस्वामी था. घर में उनके पिता उन्हें प्यार से गुल्लू पुकारते थे. गुल्लू ने 1949 में प्रदर्शित फिल्म ‘शबनम’ देखी, तो नायक दिलीप कुमार के किरदार का नाम मनोज उन्हें इतना पसंद आया कि वह मनोज कुमार बन गये. मुंबई पहुंचने पर फिल्मकार भाकड़ी ने मनोज को सबसे पहले 1957 में अपनी फिल्म ‘फैशन’ और फिर कुछ अन्य फिल्मों में छोटी भूमिकाएं दीं. लेकिन वह नायक बने 1960 में आयी फिल्म ‘कांच की गुड़िया’ से, हालांकि उन्हें लोकप्रियता ‘हरियाली और रास्ता’ (1961) फिल्म से मिली. उनके जीवन में सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब उन्होंने बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म ‘उपकार’ बनायी. वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी के नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर बनी ‘उपकार’ (1967) ने इतिहास रच दिया. इस फिल्म में उनका नाम भारत कुमार था, जो बाद में मनोज कुमार का पर्याय बन गया. कुछ लोग उन्हें पंडित जी भी कहा करते थे.

मनोज कुमार होम्योपैथी के भी पक्के डॉक्टर थे, इसलिए उनके आदर्श दिलीप कुमार सहित और भी बहुत से लोग उन्हें डॉक्टर साहब कहा करते थे. मनोज कुमार ने दिलीप कुमार को हमेशा अपना अपना गुरु माना. दोनों ने फिल्म ’आदमी’ में तो साथ काम किया ही, मनोज के निर्देशन में ‘क्रांति’ में भी दिलीप कुमार प्रमुख भूमिका में थे. जब मनोज कुमार ने ‘पूरब और पश्चिम’ के लिए सायरा बानो को अनुबंधित किया, तब सायरा इतनी बीमार हो गयीं कि उन्हें इलाज़ के लिए विदेश ले जाना पड़ा. यह देख अन्य फिल्मकारों ने सायरा की जगह किसी और को नायिका ले लिया. लेकिन मनोज कुमार ने सायरा बानो का तब तक इंतजार किया, जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुईं.


मनोज कुमार के निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ (1970) प्रदर्शित हुई, तो भारत की महानता के साथ हमारी संस्कृति की पताका विश्वभर में चमक उठी. इस फिल्म में ‘भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं’ जैसे अमर गीत तो थे ही, फिल्म में महेंद्र कपूर के स्वर में ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती भी थी. इस आरती से दर्शक इतने प्रभावित हुए कि अनेक लोगों के घर में नियमित आरती होने लगी. मनोज कुमार को कुछ ऐसे भारतीय डॉक्टर मिले, जो अमेरिका जाकर प्लास्टिक सर्जन के रूप में अच्छा-खासा नाम कमा चुके थे. पर ‘पूरब और पश्चिम’ देखने के बाद पश्चिमी संस्कृति से उनका ऐसा मोहभंग हुआ कि वे भारत लौट आये. देशभक्ति पर फिल्में और भी कई निर्माताओं ने बनायीं, पर जो प्रतिष्ठा मनोज कुमार को मिली, वह किसी और को नहीं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel