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टिड्डियों का प्रकोप

हमारे समय की बड़ी आपदाओं की तरह टिड्डियों के इस भयावह प्रकोप का संबंध भी जलवायु परिवर्तन से है, जिसकी वजह से बेमौसम की बरसात का लंबा सिलसिला चला है.

हमारे समय की बड़ी आपदाओं की तरह टिड्डियों के इस भयावह प्रकोप का संबंध भी जलवायु परिवर्तन से है, जिसकी वजह से बेमौसम की बरसात का लंबा सिलसिला चला है.

उत्तर भारत के कई हिस्सों में टिड्डियों के बड़े-बड़े दल खेतों को अपना शिकार बना रहे हैं. हालांकि राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में यह समस्या कई महीनों से थी, पर अब ये झुंड राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अंदर तक घुस आये हैं तथा जल्दी ही इनके दिल्ली पहुंचने की आशंका भी है. किसानों को चेतावनी दी गयी है तथा ड्रोनों व ट्रैक्टरों से कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है. ऐसा पहली दफा देखा जा रहा है कि टिड्डी दल जयपुर और राजस्थान-हरियाणा सीमा तक आ पहुंचे है. अब तक पाकिस्तान से लगी सीमा के आसपास के इलाकों में ही इनके हमले होते थे.

अगर हवा की दिशा और गति अनुकूल रहे, तो टिड्डी दल एक दिन में 150 किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं और अगर उनका आकार एक वर्ग किलोमीटर रहा, तो एक दिन में वे 35 हजार लोगों के भोजन के बराबर अनाज खा सकते हैं. स्वाभाविक रूप से इस आक्रामकता का असर खेती की ऊपज पर होता है. जनवरी में राजस्थान और गुजरात में टिड्डियों ने तीन लाख हेक्टेयर में लगी फसल को बर्बाद किया है. हमारे समय की बड़ी आपदाओं की तरह टिड्डियों के इस भयावह प्रकोप का संबंध भी जलवायु परिवर्तन से है, जिसकी वजह से बेमौसम की बरसात का लंबा सिलसिला चला है. मौजूदा हमलों के अलावा भी ऐसा अनुमान है कि गर्मी के मौसम में मॉनसून की बारिश से भारत-पाकिस्तान सीमा पर पसरे रेगिस्तान में ये फिर से पनप सकते हैं. उल्लेखनीय है कि मौसम के साथ-साथ चक्रवातीय पैटर्न भी बदल रहे हैं और इसके प्रभाव का विस्तार पूर्वी अफ्रीका से लेकर पश्चिमी और दक्षिणी एशिया तक है.

ऐसे में आगामी कई महीनों तक इनके हमलों का सामना करना पड़ सकता है. मौसम में बदलाव ने पूरी दुनिया में बाढ़, सूखा, भारी बरसात, कमजोर मॉनसून जैसी आपदाओं की बारंबारता बढ़ा दी है. दक्षिण एशिया पर इसका सबसे अधिक असर देखा जा रहा है. इस कारण हमारे किसानों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है. इसके साथ भूजल का संकुचन और प्रदूषण में बढ़ोतरी भी चिंताजनक हैं. इस स्थिति में ग्रामीण भारत के संकट के समाधान में लगातार बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं. टिड्डियों को काबू में करने के प्रयासों का परिणाम भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं है. जलवायु परिवर्तन वैश्विक समस्या है, सो उसके समाधान के प्रयास भी समूची दुनिया को मिलकर करना होगा, जो कि नहीं हो रहा है. हमारे देश में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं, परंतु चुनौती की गंभीरता के हिसाब से वे नाकाफी भी हैं तथा उनके नतीजे बहुत जल्दी सामने भी नहीं आ सकते हैं. ऐसे में जहां एक ओर टिड्डियों को रोकने के तात्कालिक उपाय जरूरी हैं, वहीं एक दीर्घकालिक रणनीति की भी दरकार है. इस दिशा में सरकारों को पहल करना चाहिए.

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