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व्यक्तित्व गढ़ने की पाठशाला का नाम है परिवार

International Family Day : दुनियाभर में परिवार का अस्तित्व खतरे में है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. यकीनन यह कथन आपको असत्य प्रतीत होगा क्योंकि हमें अपने चारों ओर परिवारों का जमघट दिखाई देता है. ऐसे परिवार जहां पति-पत्नी और बच्चे एक साथ रह रहे हैं, पर क्या वाकई यही भारतीय परिवार का वास्तविक स्वरूप है?

International Family Day : परिवार एक शब्द मात्र नहीं अपितु संपूर्ण सभ्यताओं और समाज के विकास की नींव है. यह वह पाठशाला है जहां व्यक्तित्व गढ़े जाते हैं. यह वह जगह है जहां आपका मूल्यांकन आपकी सफलता और असफलता से नहीं होता. यह वह जगह है जहां बाहरी दुनिया की तमाम नाकामियों और हताशा के बाद सुकून का आलिंगन मिलता है और ढाढस भी. परंतु क्या हम इस परिवार से दूर नहीं होते जा रहे, यह ‘प्रश्न’ है या ‘कथन’, यह निश्चित तो आपको ही करना होगा. क्योंकि अगर यह प्रश्न है, तो इसका उत्तर आपसे बेहतर किसी के पास नहीं है. अगर यह कथन है, तो इसकी सहमति या असहमति का निर्णय भी आप ही कर सकते हैं.


दुनियाभर में परिवार का अस्तित्व खतरे में है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. यकीनन यह कथन आपको असत्य प्रतीत होगा क्योंकि हमें अपने चारों ओर परिवारों का जमघट दिखाई देता है. ऐसे परिवार जहां पति-पत्नी और बच्चे एक साथ रह रहे हैं, पर क्या वाकई यही भारतीय परिवार का वास्तविक स्वरूप है? नहीं, एकल परिवार भारत की संस्कृति की पहचान नहीं है. माता-पिता, चाचा-चाचा ऐसे रिश्तों के ताने-बाने में गुथा परिवार एक सुदृढ़ भारतीय परिवार की छवि थी, परंतु यह सब कुछ बदल कैसे गया. एकल परिवार की परिपाटी ने क्यों और कैसे वर्चस्व पा लिया? इस प्रश्न का उत्तर त्वरित रूप से यही होगा कि ‘नौकरी, शहर और छोटे घर, कहां बड़े परिवारों की गुंजाइश बचती है… एकल परिवार तो अब विवशता है, इसमें किसी का दोष नहीं.’ पर क्या यह अधूरा सत्य नहीं है?

क्या यह सत्य नहीं कि दायित्वों का भय हमें झूठे आवरण ओढ़ने पर विवश करता है? क्या यह सच नहीं कि धन और सुविधाओं को साझा करने की अनिच्छा हमें एकल परिवार की ओर उकसाती है? विश्वास कीजिए, हमें इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है? इस सत्य का आभास अभी नहीं, तो आने वाले कुछ वर्षों में अवश्य होगा. जिस व्यस्तता और विवशता की हम दुहाई देकर माता-पिता के साथ रहने से हिचकते हैं, वह विवशता नहीं विलासिता की चाह है. स्वयं द्वारा अर्जित धन केवल अपनी आवश्यकताओं और अपने बच्चों की अनगिनत आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए व्यय करने की सोच, हर रिश्ते से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करती है.

अंतहीन सुखों की चाह, बच्चों को बेहतर से बेहतर भौतिक सुविधाएं देने की आकांक्षा के बीच हम एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण कर रहे हैं जिनके लिए रिश्तों के कोई मायने शेष नहीं बचेंगे. और इसमें उनका कतई दोष नहीं होगा क्योंकि हमने स्वयं उनके हाथों में परिवार के विकल्प के रूप में लैपटॉप, टीवी और वीडियो गेम्स की वह छद्म और मायावी दुनिया थमा दी है जो उन्हें वास्तविक रिश्तों से स्वत: ही दूर करती चली जा रही है. ‘ममता’, ‘स्नेह’, बड़ों का ‘आलिंगन’, चचेरे भाई-बहनों का साथ और साझा करने की संस्कृति ही एक संपूर्ण व्यक्तित्व बनाती है. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसमें मानवता, साहस, सामंजस्य, सहनशीलता, त्याग, दायित्व निर्वहन का भाव पल्लवित होता है. इन भावों का पोषण परिवार से प्राप्त होता है.


एक स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण परिवार बच्चों में भावनात्मक संतुलन, सहयोग की भावना, शैक्षिक उत्कृष्टता और सामाजिक कौशल विकसित करने में मदद करता है. इससे न केवल बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है, बल्कि वे जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी तैयार होते हैं. इंडियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन से यह साबित हुआ है कि एक मजबूत पारिवारिक जीवन व्यक्ति की जीवन संतुष्टि का महत्वपूर्ण आधार होता है. हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा एक अध्ययन किया गया था, जिसका उद्देश्य सफल बच्चों की परवरिश के गहन रहस्यों को उजागर करना था. इस महत्वपूर्ण अनुसंधान में 268 पुरुष हार्वर्ड छात्रों के जीवन की गहन पड़ताल की गयी, जिससे उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत, सफलताओं और असफलताओं का सूक्ष्म विश्लेषण संभव हो सका.

इस अध्ययन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और स्पष्ट निष्कर्ष यह था कि एक सफल और संतुष्ट जीवन के लिए प्रेमपूर्ण परिवार और स्वस्थ संबंधों का होना नितांत आवश्यक है. दुखद, परंतु सत्य है कि धीरे-धीरे परिवारों से प्रेम विलुप्त-सा होता जा रहा है और इसका सबसे बड़ा कारण ‘अहं’ है जो हमारे किरदार को इतना बड़ा बना देता है कि उसके आगे हमें रिश्ते छोटे नजर आने लगते हैं. हम बाहर की दुनिया में सामंजस्य स्थापित करने की न केवल कोशिश करते हैं बल्कि कई बार चुभने वाली बातों की अवहेलना तक कर देते हैं. परंतु बात जब परिवार की आती है तो हम कोई समझौता करने के लिए तैयार नहीं होते. परिवार संजोने और संवारने के लिए है, ना कि ‘टेकन फॉर ग्रांटेड ‘लेने के लिए. हमारी सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हमें लगता है कि हमारा रास्ता ही सबसे सही है और बाकी सब गलत. यह सोच ही परिवार तोड़ती है. ‘कुछ सहकर और बहुत कुछ नजरअंदाज करके ही जीवन को आसान बनाया जा सकता है. हर पल इस बात को याद रखकर कि अगर परिवार है तो हम हैं.

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