14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शिक्षा नीति से जुड़े अहम सवाल

स्कूली शिक्षा की जड़ें मजबूत हों और प्रत्येक स्कूल स्नातक के पास अच्छी आजीविका लिए पर्याप्त क्षमता और कौशल हो.

डॉ सुदर्शन अयंगर, गांधीवादी अर्थशास्त्री

editor@thebillionpress.org

नयी शिक्षा नीति 34 साल बाद शिक्षा में व्यापक सुधारों के दावे के साथ घोषित की गयी. इसमें मूल आधारों सुलभता, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही पर केंद्रित किया गया है. कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मसौदे को ही जारी किया गया. अभी मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से औपचारिक तौर पर पूर्ण नीति दस्तावेज का आना बाकी है. फिर भी, इस घोषणा का स्वागत करने की जरूरत है. एनइपी की तीन उत्कृष्ट विशेषताएं हैं, पहली, कक्षा एक से पांचवीं तक के बच्चों की शिक्षा को मान्यता और आठवीं तक मातृभाषा और स्थानीय भाषा में शिक्षा, दूसरी, छठी कक्षा से व्यावसायिक शिक्षा को मान्यता एवं शुरुआत और तीसरी, पुरानी व्यवस्था, जिसे 10+2 व्यवस्था कहा जाता है, उससे विज्ञान, कॉमर्स और मानविकी वर्ग की समाप्ति.

पुरानी व्यवस्था में दसवीं और बारहवीं को अहम पड़ाव माना जाता था. इसकी जगह पर 5+3+3+4 की व्यवस्था लागू होगी. तीसरी व्यवस्था के तहत उच्च माध्यमिक छात्रों को अपनी पसंद, इच्छा और अभिक्षमता के आधार पर उच्च शिक्षा चुनने की स्वतंत्रता होगी. अच्छे स्कोर और ग्रेड वाले छात्रों को परिजनों के दबाव में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए बाध्य होने के बजाय अब मानविकी, सामाजिक और शुद्ध विज्ञान चुनने का विकल्प होगा.

गांधी जी के नेतृत्व में 1937 में मारवाड़ी विद्यालय वर्धा में शिक्षा पर हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में यह संस्तुति की गयी कि शिक्षा व कौशल निर्माण के लिए मातृभाषा सीखने का एक अहम माध्यम है. इसे बुनियादी यानी नयी तालीम कहा गया. देश को यह जानने में 83 वर्ष लग गये कि बच्चा अपनी मातृभाषा में बेहतर तरीके से सीख सकता है.

व्यावसायिक शिक्षा स्वरोजगार और रोजगार के क्षेत्र में संभावनाओं को बेहतर बनाती है. इसके लिए शिक्षण विधा को एनसीइआरटी द्वारा विकसित किया जाना बाकी है. उम्मीद है कि गांधीजी और जॉन डेवी के सीखने के सिद्धांत को नये पाठ्यक्रम के शिक्षण में जगह मिलेगी. भाषा ज्ञान और कंप्यूटेशनल स्किल को 10 वर्ष की आयु तक सीखने की जरूरत है. एनसीइआरटी को देश में जारी दर्जनों वैज्ञानिक और नवोन्मेषी शोधों के अनुभवों से सीखने की आवश्यकता है. हमें उम्मीद है कि एनसीइआरटी यह सुनिश्चित करेगा कि असर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ग्रामीण) 2019) के निराशाजनक निष्कर्ष में बदलाव आयेगा.

वर्ष 2019 की नवीनतम असर रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत में कक्षा पांचवीं के केवल 50 प्रतिशत छात्र ही दूसरी कक्षा के टेक्स्ट को पढ़ पाने में सक्षम हैं और केवल 28 प्रतिशत बच्चे ही भाग के सवालों को हल कर सकते हैं. देश में एनइपी के तहत स्कूली शिक्षा की संरचना और वित्त व्यवस्था के बारे में घोषणाओं और नीति दस्तावेज से कुछ स्पष्ट नहीं है. सार्वभौम प्राथमिक शिक्षा कोई नयी घोषणा नहीं है. सबके लिए पहुंच का वादा तो है, लेकिन इसकी संरचना अस्पष्ट है.

स्कूली शिक्षा में जिन देशों का प्रदर्शन बेहतर है, वहां स्कूल शिक्षा का वित्तपोषण सरकार करती है. यह व्यवस्था सरकार द्वारा संचालित नजदीकी स्कूल में बच्चे का प्रवेश सुनिश्चित करती है. फीस वसूली करनेवाले निजी स्कूलों की व्यवस्था उन लोगों तक सीमित की जानी चाहिए, जिनके पास बच्चों की शिक्षा पर निवेश करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं. देश के प्रत्येक बच्चे को यह अधिकार मिले कि उसे अपने निवास के सबसे नजदीकी स्कूल में दाखिला मिले. स्कूली शिक्षा अनिवार्य तथा मुफ्त होने के साथ नजदीक में सुलभ होनी चाहिए. एनइपी इस मुद्दे पर स्पष्ट नहीं है. यह चुप्पी व्यावसायिक और लाभ कमानेवाले लालची संस्थानों को बढ़ावा दे सकती है.

इस संदर्भ में राममनोहर लोहिया को याद किया जा सकता है- ‘रानी हो या मेहतरानी, सबके लिए एक समान शिक्षा हो.’ जब तक देश लोहिया के इस बात पर अमल नहीं करेगा, तब तक सतत विकास लक्ष्य अधूरा ही रहेगा. वंचितों के लिए लैंगिक समावेशी निधि और विशेष शिक्षा केवल काल्पनिक ही रह जायेगी. मौजूदा प्रयासों से न्यायसाम्य तय नहीं किया जा सकता है. संस्कृत को स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक एकमात्र वैकल्पिक भाषा के तौर पर शामिल किये जाने के प्रावधान पर गांधी जी दुखित होते. देश में बड़ी आबादी सदियों से हिंदी-हिंदुस्तानी को समझती और बोलती रही है. उर्दू भाषा को नजरअंदाज किया गया.

क्या हमें याद दिलाया जाना चाहिए कि उर्दू हिंदुस्तान में विकसित हुई भाषा है न कि पर्सियन या फारसी? नजरअंदाज करने से यह खत्म हो जायेगी. देश का प्रबुद्ध मुस्लिम तबका मदरसा को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने की वकालत करता है. वैकल्पिक विषय के तौर पर केवल संस्कृत को सुझाने से मुख्यधारा से मदरसा को जोड़ने के प्रयासों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. उर्दू को मान्यता देने और शामिल करने से एक अच्छी शुरुआत होगी. भारतीय अनुवाद एवं व्याख्या संस्थान का विचार स्वागतयोग्य है. देश में विविध भाषाओं और ज्ञान से परस्पर सीखने के मौके को अब तक हमने गंवाया है.

मुक्त आदान-प्रदान शायद ही संभव रहा. एक भाषा से दूसरे तक, इसे बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने की औपचारिक संरचना नहीं रही है. भाषाविदों और विद्वानों को राजनीतीकरण से दूर रखना चाहिए. एनइपी 2020 में उच्च शिक्षा की वार्ता के लिए अतिरिक्त जगह की आवश्यकता है. हालांकि, कुछ अहम बातें की जा सकती हैं. उच्च शिक्षा में प्रशासनिक संरचना स्पष्ट नहीं है. वर्ष 2035 तक सकल नामांकन अनुपात को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने का मतलब है कि स्कूली शिक्षा की जड़ें मजबूत हों और प्रत्येक स्कूल स्नातक के पास अच्छी आजीविका के लिए पर्याप्त क्षमता और कौशल हो.

उच्च शिक्षा में उन्हें मौका मिले, जिनके पास योग्यता, इच्छा और क्षमता हो. सरकार को सतर्क रहना होगा, ताकि उच्च शिक्षा अमीर व कुलीन वर्ग तक ही सीमित न हो. गरीबों और योग्य छात्रों को भी इसमें समावेशित किया जाये. घोषित नीति के मुख्य बिंदु इस तरह की व्यवस्था की ओर इशारा करते हैं. लेकिन, हमें विस्तृत विवरण के आने का इंतजार करना चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें