–डॉ ख्याति ‘रेवा’ पुरोहित, स्वतंत्र पत्रकार, अध्यापिका–
‘भारत मेरा देश है
सभी भारतीय मेरे भाई-बहन हैं.
मैं अपने देश से प्यार करती हूं और इसकी समृद्ध एवं विविधतापूर्ण विरासत पर मुझे गर्व है.
मैं सदैव इसके योग्य बनने का प्रयास करूंगी.
मैं अपने माता-पिता, शिक्षकों और बड़ों के प्रति आदर रखूंगी और प्रत्येक व्यक्ति के साथ शिष्टता रखूंगी.
मैं अपने देश और देशवासियों के प्रति अपनी निष्ठा की प्रतिज्ञा करती हूं.
उनके कल्याण और समृद्धि में ही मेरा सुख निहित है.’
Happy Independence Day : प्रजातांत्रिक भारत के प्रति निष्ठा का यह प्रतिज्ञापत्र स्कूल में प्रतिदिन पढ़ा जाता था, इसलिए इस पत्र का प्रत्येक शब्द शरीर में प्रवाहित रक्त के कण-कण में समा गया है और इसी कारण भारत भूमि के प्रति गौरव के साथ गर्व की भावना स्वतः विकसित हुई है. प्रत्येक नागरिक के हृदय में स्थापित यह भावना उसे अपने राष्ट्र के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए तत्पर बनाती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि यह भावना दोनों ओर विकसित हो, तब तो सोने पे सुहागा हो जाए.
भारत एक बहुक्षेत्रीय,बहुजातीय, बहुभाषी राष्ट्र है. विभिन्न क्षेत्रों, जातियों और भाषाओं के अस्तित्व के बावजूद, भारत में ‘एक नागरिकता’ का सिद्धांत सर्वस्वीकृत है. अतः सभी नागरिकों के मूलभूत अधिकार भी समान हैं, इसमें कोई भेदभाव नहीं है. इस प्रकार, प्रत्येक भारतीय के हृदय में भारत बसा हुआ है, और उसी प्रकार भारत के संविधान रूपी हृदय में भी प्रत्येक नागरिक का विचार किया गया है. जैसे एक राष्ट्र अपने नागरिकों को प्राथमिकता देता है, उसी प्रकार प्रत्येक नागरिक के लिए राष्ट्र के हितों को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए. राष्ट्रहित के लिए यह आवश्यक है कि नागरिक अपने अधिकारों के समान ही अपने कर्तव्यों के प्रति भी उतना ही सजग रहे.
एक नागरिक का दायित्व है- संविधान का उचित पालन करना, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना, भारत में सद्भाव और शांति बनाए रखने वाला आचरण करना, देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना, भाईचारे की भावना बनाए रखना, भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना रखना, साथ ही प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान न पहुंचाना, स्वयं शिक्षित बनना और दूसरों को भी शिक्षित बनाना और जरूरतमंदों की सहायता करना.
लेकिन दुख तब होता है जब स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के बाद राष्ट्रध्वज सड़कों पर गिरे हुए मिलते हैं, जब राष्ट्रगान का अपमान होता है, जब सांप्रदायिक दंगे भड़क उठते हैं, जब बहु-धार्मिक देश में लोगों को कहीं भी थूकने से रोकने के लिए भगवान की तस्वीरें लगानी पड़ती हैं, जब कोई अपना आक्रोश निकालने के लिए या केवल विकृत आनंद के लिए सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है. वास्तव में दुःख तब होता है जब अपने आंगन को साफ रखने के लिए किसी और के आंगन में या सार्वजनिक सड़क पर कचरा फेंका जाता है. दुःख होता है जब पानी की बर्बादी होती है, फूल-पौधे बेवजह उखाड़े जाते हैं, यातायात नियमों का पालन न करने से गंभीर दुर्घटनाएं होती हैं, लोग असहिष्णु हो जाते हैं और छोटे-छोटे विवादों में एक-दूसरे पर चाकू से वार करते हैं और बहन-बेटियों की इज्जत लूटी जाती है.
तब एक सवाल मन पर हावी हो जाता है कि क्या राष्ट्र द्वारा हमें मिलनेवाले नागरिक अधिकारों का बदला इस तरह से दिया जाना चाहिए? घर को साफ रखने के लिए हम कूड़ा-कचरा घर के बाहर फेंक देते हैं, लेकिन क्या हमारे घर के बाहर या किसी दूसरे के घर के सामने फेंका गया कूड़ा हमारे क्षेत्र, राष्ट्र में गंदगी नहीं बढ़ाएगा? जैसा कि हम सभी जानते हैं, परस्पर अनुकूल होकर रहना संस्कृति है और प्रतिकूल होना विकृति. एक नागरिक होने के नाते हमें स्वयं निर्णय लेना होगा कि हम प्रकृति के अनुकूल रहना चाहते हैं या विकृति के. समाज में हमें तरह-तरह के उदाहरण मिलते हैं, किससे प्रेरणा लेनी है और किसकी उपेक्षा करनी है, इसका निर्णय आत्म-समझ पर निर्भर रहता है.
एक ओर बिल्ली है जो अपने बच्चों को जन्म देने के बाद भूख लगने पर उन नये जन्मे बच्चों को ही निवाला बना लेती है, तो दूसरी ओर मादा लंगूर है जो अपने मृत बच्चे को भी दिनों तक छाती से चिपकाए रहती है. ये दोनों उदाहरण हमारे सामने हैं, किसका अनुसरण करना है और किसका नहीं, यह निर्णय स्वयं का होता है. यह निर्णय ही नागरिक को प्रकृति और विकृति के बीच के अंतर की समझ के साथ उचित जीवन की ओर ले जाता है. और प्रत्येक नागरिक का उचित जीवन, आदर्श जीवनशैली ही राष्ट्र की रक्षा करती है. आइए इसे समझें,
राष्ट्र की रक्षा राज्यों की एकता से होती है, प्रत्येक समाज राज्यों की रक्षा करता है. इसी प्रकार, प्रत्येक परिवार समाज की और प्रत्येक मनुष्य परिवार की रक्षा करता है. यह एक चक्र है जो एक-दूसरे के साथ सहयोगात्मक रूप से जुड़कर विकास की ओर अग्रसर होता है. यदि हम इसे परिवार के संदर्भ में समझें, तो परिवार के प्रत्येक सदस्य का स्वभाव भिन्न होता है, फिर भी सभी से यही अपेक्षा होती है कि वे एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहें, सहयोग की भावना बनाए रखें और सभी के हितों को केंद्र में रखकर निर्णय लें, तभी परिवार में सुख-शांति स्थापित होगी. लेकिन परिवार का हर सदस्य अपने अलग स्वभाव और प्रकृति के कारण अलग-अलग दिशाओं में सोचेगा, और अपनी ही बात मनवाने के लिए तर्क-वितर्क करेगा, घर में तोड़फोड़ करेगा या हररोज लड़ता रहेगा, तो उनके बीच मतभेद के साथ-साथ मनभेद भी बढ़ेगा.
परिणामस्वरूप परिवार टूट जाएगा, इसलिए, परिवार के हर सदस्य को थोड़ा बड़ा मन रखते हुए, परिवार के साथ सुख-शांति से रहने का निर्णय लेगा चाहिए और सामुदायिक जीवन अपनाना चाहिए. प्रत्येक मनुष्य समुदाय में रहने का अभ्यस्त होता है, यदि व्यक्ति अपनी प्रकृति और विकृति के बीच का अंतर समझकर, अपने श्रेष्ठ गुणों और कर्मों के अनुसार विकास साधता है, तो वह विकास का पूर्ण फल राष्ट्र को अर्पित करता है. उसी तरह एक राष्ट्र चाहता है कि उसके नागरिक सुख रूपी विकास की ओर अग्रसर हों. अतः प्रत्येक व्यक्ति के सुख और विकासयुक्त, सहयोगात्मक आदर्श जीवनशैली ही उसे परिवार-केंद्रित, समाज-केंद्रित, राष्ट्र-समर्पित, जिम्मेदार और कर्तव्यशील नागरिक बनाती है.

