वैश्विक वित्त के क्षेत्र में भारतीय स्त्रियों ने सोने को शाश्वत सौंदर्य के साम्राज्य में बदल दिया है, जो बहुत बड़ी उपलब्धि है. कोटक महिंद्रा बैंक के दिग्गज उदय कोटक ने महिलाओं को सबसे स्मार्ट फंड मैनेजर बताया है. उनका यह दावा मंदिरों के घंटियों की तरह पवित्र है. विगत 22 अप्रैल को उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, ‘सोने का यह प्रदर्शन यह बताता है कि भारतीय महिलाएं दुनिया में सबसे स्मार्ट फंड मैनेजर हैं. बैंकों में पैसे डालने वाली और भारी घाटे वाली फंडिंग करने वाली सरकारों, केंद्रीय बैंकों व अर्थशास्त्रियों को भारत से सबक सीखना चाहिए. यह देश उस धातु का आयात करता है, जिसका मोल हमेशा बना रहता है!’
आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने इसे दूसरी तरह से अभिव्यक्त किया, ‘दस साल पहले मैंने एक कार आठ लाख रुपये में खरीदी थी. जबकि मेरी पत्नी ने आठ लाख रुपये का सोना खरीदा था. आज उस कार का मूल्य 1.5 लाख रुपये है. और उस सोने का मोल? उसकी कीमत 32 लाख रुपये है. मैंने पत्नी से कहा, सोना हम बेच देते हैं, चलो, कहीं छुट्टियां मनाकर आते हैं. उसने कहा, छुट्टियां हम पांच दिन मनायेंगे. जबकि सोना पांच पीढ़ियों तक टिका रहेगा.’ इसका संदेश क्या है? यही कि पत्नियां ज्यादा स्मार्ट होती हैं.
भारत में सोना एक पवित्र कथा, एक ईश्वरीय शक्ति है, जिसे स्त्रियां कवियों द्वारा शुद्धता के बखान तथा गुरुओं के महात्म्य वर्णन के आधार पर धारण करती हैं. सोने के आलोचक रहे उदय कोटक ने कभी इसे गैर उत्पादक संपत्ति बताया था, और 2019 में देश के चालू खाते के घाटे के लिए सोने के आयात को जिम्मेदार ठहराया था. पर वहां से सोने का उत्थान जैसे मिथकीय फीनिक्स पक्षी की तरह हुआ. अकेले 2025 में इसकी कीमत में हुई 25 प्रतिशत वृद्धि ने इसके आलोचकों को खामोश कर दिया है. एक विरासती संपत्ति ऐसी वित्तीय ताकत में रूपांतरित हो गयी है, जिसके आगे शेयर और बान्ड कमतर नजर आते हैं. यह सिर्फ निवेश का नहीं, कीमियागीरी का भी परिणाम है, और इसे उन स्त्रियों ने अंजाम दिया है, जिनके सोने में अगाध भरोसे ने इसे एक सांस्कृतिक धरोहर से आर्थिक उपलब्धि में बदल दिया है.
सोने की पवित्रता को समझने के लिए भारत की आत्मा में प्रवेश करना होगा, जहां यह वस्तु से अधिक एक अनिवार्यता है, चाहे वह एक वधु की कलाई की चूड़ी हो, गद्दे के नीचे रखा हुआ सोने का सिक्का हो, या जीवन के उथल-पुथल के लिए बचाकर रखा गया कवच हो. दिल्ली के एक सांस्कृतिक इतिहासकार कहते हैं, ‘सोना सिर्फ संपत्ति नहीं, यह वंशावलियों की नब्ज और भारत के ताने-बाने से बुनी गयी सुरक्षा की खामोश प्रतिज्ञा है.’ पश्चिम के विपरीत, भारतीय महिलाओं के लिए सोना ताबीज और खजाना, दोनों है. यह मूल्यवृद्धि और मुद्रा के उतार-चढ़ाव के बीच बांध है.
सामाजिक रूप से सोना पीढ़ियों को बांधकर रखता है, तो आर्थिक रूप से देश की 40 प्रतिशत जीडीपी का आधार है. महिलाओं के बढ़ते इस्तेमाल के कारण देश के कुल परिवारों के पास 24,000 से 25,000 टन सोना है, जो दुनिया के कुल स्वर्णाभूषण का 11 फीसदी है, और जिसका मूल्य 24-25 ट्रिलियन है. भारत का यह अकूत स्वर्ण भंडार अमेरिका ( 8,000 टन), जर्मनी (3,300 टन), इटली (2,450 टन), फ्रांस (2,400 टन) और रूस (1,900 टन) के कुल स्वर्ण भंडार से भी अधिक है. पश्चिमी देशों में औसतन 2,000-3,000 टन सोना है, जो ज्यादातर सिक्के और छड़ों के रूप में ही है. जबकि यूरोप का सोना उनके केंद्रीय बैंकों में है. यह फर्क दरअसल सांस्कृतिक अंतर के बारे में बताता है. भारत में सोना समृद्धि और सुरक्षा का जीवंत प्रतीक है. पश्चिम में संपत्ति शेयर और बान्ड्स के जरिये संचालित होती है. भारतीय महिलाओं ने अपने अंतर्ज्ञान की मेधा से ऐसी परंपरा सृजित की है, जिसने वैश्विक बाजार के मशीनी गुणा-भाग को पीछे छोड़ दिया है.
घरेलू स्तर पर सोने की भूमिका उसे बचाकर रखने से सट्टेबाजी के साधन के रूप में बदल गयी है. वर्ष 2025 की एक वित्तीय रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक दशक में सोने के भंडार में चार गुना वृद्धि हुई है, और यह मुद्रास्फीति को लगातार बेअसर कर रहा है. वर्ष 2015 में 10 ग्राम सोने की कीमत 25,000 रुपये थी, जो 2025 में बढ़कर 98,420 रुपये हो गयी. यानी एक दशक में सोने के दाम में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसने बंबई शेयर बाजार को पीछे छोड़ दिया, जहां इस अवधि में शेयरों के भाव में 200 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई, यानी 2015 में जिन शेयरों के भाव 28,000 रुपये थे, वे 2025 में बढ़कर 80,000 रुपये हो गये.
सालाना 15 प्रतिशत का रिटर्न देने वाला सोना अब घर में छिपाकर रखने वाली संपत्ति नहीं, बल्कि एक धूमकेतु है, जिसके गतिपथ को महिलाओं की दूरदृष्टि रफ्तार देती है. गांवों में सोना सूखे के विरुद्ध एक किसान की पत्नी का ढाल है. शहरी भारत में एक कार्यकारी अधिकारी के लिए यह बाजार के उतार-चढ़ावों के बीच बचाव का काम करता है. स्मार्टफोन के स्वाइप पर हाजिर हो जाने वाले डिजिटल गोल्ड में पूर्वजों के ज्ञान और आधुनिक नवाचार का सम्मिश्रण है. गोल्ड एक्सचेंज से लेकर ट्रेडेड फंड और सोवेरन बान्ड्स तक महिलाओं ने वित्तीय मोर्चों को मथ दिया है, उनकी मेधा ने भारत के आर्थिक भूदृश्य को इस चतुराई से आकार दिया है कि इससे अर्थव्यवस्था के दिग्गज तक हतप्रभ हैं.
हालांकि सोने की चमक का दूसरा पक्ष है. दहेज प्रथा अब विलुप्ति की ओर है, फिर भी शादीशुदा महिलाओं से दहेज में सोना देने की अपेक्षा रहती है, जो एक बोझ ही है. खनन के पर्यावरणीय पक्ष और इसे तैयार करने की नैतिक दुविधा की भी अनदेखी नहीं की जा सकती. पर अपनी प्रगतिशील सोच से भारतीय महिलाएं बेहद स्पष्टता से इन चुनौतियों का मुकाबला करती हैं. भारतीय नारियां सच्ची कीमियागर हैं, जिन्होंने धरती के अंदर पाये जाने वाले एक खनिज को लचीलेपन और दूरदर्शिता की परंपरा में रूपांतरित कर दिया है. वे सोने का पीछा नहीं करतीं, सोना उनका पीछा करता है. इन भारतीय नारियों के हाथों में सोना महज एक संपत्ति नहीं रहता, बल्कि बुद्धि, परंपरा और क्रांति में बदल जाता है. बड़ा खजाना दरअसल इस धातु में नहीं, बल्कि महिलाओं की दूरदर्शिता में है. उनका नजरिया एक ऐसी करेंसी है, जिसकी प्रतिद्वंद्विता दुनिया का कोई बाजार नहीं कर सकता. ये नारियां अब नयी सामाजिक उद्यमी हैं, जो जानती हैं कि कैसे बचना और फलना-फूलना है, तथा बाजार की शक्तियों से अलग हटकर कैसे ज्यादा समृद्धि लानी है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)