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आत्मनिर्भरता की बुनियाद

प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को कोविड-19 के संकट से चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. कहा गया कि वित्त मंत्रालय के पिछले पैकेज और भारतीय रिजर्व बैंक की घोषणाओं को जोड़ दें, तो कुल पैकेज 20 लाख करोड़ रुपये का होगा, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 10 फीसदी के बराबर होगा.

डॉ जयंतीलाल भंडारी

अर्थशास्त्री

article@jlbhandari.com

प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को कोविड-19 के संकट से चरमराती अर्थव्यवस्था के लिए बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. कहा गया कि वित्त मंत्रालय के पिछले पैकेज और भारतीय रिजर्व बैंक की घोषणाओं को जोड़ दें, तो कुल पैकेज 20 लाख करोड़ रुपये का होगा, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 10 फीसदी के बराबर होगा.

नये आर्थिक पैकेज में ग्रामीण भारत, कुटीर उद्योगों, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों, किसानों और मध्यम वर्ग सहित सभी वर्गों पर खास ध्यान केंद्रित किया गया है. इसमें आत्मनिर्भरता के पांच स्तंभों को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया है. इनमें छलांग लगाती अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, तकनीक केंद्रित व्यवस्थाओं पर चलता तंत्र, आबादी और मांग एवं आपूर्ति चक्र को मजबूत बनाना शामिल है. इन दिनों प्रकाशित हो रही वैश्विक रिपोर्टों में भी यह बात सामने आ रही है कि कोविड-19 का भारत की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सबसे कम असर होगा.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने कहा है कि कोरोना वायरस की चुनौतियों के कारण भारत की विकास दर में तेज गिरावट आयेगी, लेकिन प्रचुर खाद्यान्न भंडार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत के लिए सहारा होंगे और इससे भारत कोविड-19 के बाद तेजी से आगे बढ़ सकेगा. एशियाई विकास बैंक ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत के पास कृषि और खाद्यान्न जैसे मजबूत आर्थिक बुनियादी घटक हैं, जिनकी ताकत से भारत अगले वित्त वर्ष 2021-22 में जोरदार आर्थिक वृद्धि कर सकेगा.

वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी में भी भारत अन्य देशों की तुलना में कम प्रभावित हुआ था. इसका प्रमुख कारण देश के ग्रामीण बाजार की शक्ति भी माना गया था. अब कोविड-19 के बीच एक बार फिर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अहमियत दिख रही है. महामारी को रोकने के लिए जहां शहरी भारत लॉकडाउन में रहा है, वहीं ग्रामीण भारत के अधिकांश क्षेत्र को इससे बाहर लाया गया. इस समय ग्रामीण भारत अर्थव्यवस्था की गाड़ी को खींचता हुआ दिखायी दे रहा है.

देश की जीडीपी में कृषि का योगदान करीब 17 फीसदी है. लेकिन, देश के 60 फीसदी लोग खेती पर आश्रित हैं और वे बहुत कुछ आत्मनिर्भर जीवन जीते हैं. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है और शेष 50 फीसदी में ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत छोटे-मझोले उद्योग और सेवा क्षेत्र का योगदान है. भारत का सबसे मजबूत पक्ष यह है कि 135 करोड़ लोगों की भोजन संबंधी चिंता नहीं है. अप्रैल, 2020 के अंत तक करीब 10 करोड़ टन खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार था. इससे करीब डेढ़ वर्ष तक देश की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.

कृषि मंत्रालय के फसल वर्ष 2019-20 के दूसरे अग्रिम अनुमान के आंकड़े सुकून भरा संकेत दे रहे हैं कि देश में खाद्यान्न उत्पादन 29.19 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है. कृषि और उससे संबंधित क्षेत्रों के 3.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की बात कही गयी है. आगामी फसल वर्ष 2020-21 में खाद्यान्नों का उत्पादन लक्ष्य 29.83 करोड़ टन रखा गया है. सरकार ने किसानों को उनकी उपज मंडियों के अलावा सीधे भी बेचने की इजाजत दी है. ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, पशुपालन और डेयरी उत्पादन को विशेष अहमियत दी गयी है. रोजगार के सबसे बड़े स्रोत मनरेगा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है.

अधिक लोगों को रोजगार मिल सके, इसके लिए मौजूदा सिंचाई और जल संरक्षण योजनाओं को भी मनरेगा से जोड़ दिया गया है. ग्रामीण क्षेत्र में गतिविधियों को शुरू किये जाने से उर्वरक, बीज, कृषि रसायन जैसे कृषि क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों और ट्रैक्टर निर्माताओं को बड़ा फायदा मिल रहा हैं. अब ग्रामीण भारत सर्विस सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को गतिशील करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दिखायी दे रहा है. अच्छे मूल्यों पर फसल खरीदे जाने के साथ-साथ किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ायेंगे. जो मजदूर वापस अपने गांव आये हैं, वे तीन-चार महीनों तक गांव में ही कृषि कार्य करेंगे. इससे खाने-पीने और रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की मांग बढ़ेगी. लोगों के जनधन खाते में नकद पैसा डालने जैसे प्रयासों से ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ेगी और इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा.

कोविड-19 में कृषि सुधारों का भी एक अवसर छिपा हुआ दिख रहा है. खेती करने के परंपरागत तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव आया है. किसानों द्वारा खेत तैयार करने, बुआई और फसल कटाई के काम में मशीनों का अधिक प्रयोग, सरकार द्वारा गोदामों एवं शीतगृहों को बाजार का दर्जा दिया जाना, निजी मंडियों को खोलने की अनुमति, कृषक उत्पादक संगठनों को मंडी की सीमा के बाहर लेन-देन की अनुमति, कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण, फसल विविधीकरण जैसे जो कृषि सुधार दिखायी दे रहे हैं, यदि वे कोविड-19 के बाद भी बने रहेंगे, तो देश का कृषि क्षेत्र लाभप्रद दिखायी देगा.

रबी की फसल की मार्केटिंग के लिए मौजूदा मंडी खरीद प्रणाली से आगे बढ़कर सभी मार्केटिंग चैनल खोलने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, ताकि सीधे किसान से खरीद भी हो सके. गांवों में मनरेगा को पूरी तरह कारगर ढंग से लागू किया जाये. मजदूरी के लंबित भुगतान एवं काम मांगने पर काम दिलाने जैसी समस्याओं का भी समाधान निकाला जाये. ग्राम पंचायतों एवं सामुदायिक संगठनों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई के संदेश प्रसारित किये जायें, ताकि शारीरिक दूरी के नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके. किसानों के समक्ष खरीफ सीजन से पहले जरूरी सामान खरीदने के लिए नकदी का संकट नहीं आये, साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के उद्यमों को सरल ऋण की सुविधा सुनिश्चित हो. व्यापक आर्थिक पैकेज न केवल अर्थव्यवस्था को बचायेगा, वरन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देकर आत्मनिर्भरता को बढ़ायेगा. कोविड-19 की चुनौतियों के बीच नये आर्थिक पैकेज भारत में ग्रामीण एवं कुटीर उद्योग, बेहतर कृषि, प्रचुर खाद्यान्न उत्पादन, पशुपालन, डेयरी उत्पादन तथा खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योगों को प्रोत्साहन देगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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