Pakistan foreign policy : शर्म अल शेख में गाजा शांति वार्ता के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को ट्रंप की जिस तरह चापलूसी करते हुए देखा गया, वह हैरान करने वाला है. शरीफ ने कहा, “आज का दिन समकालीन इतिहास के सबसे महान दिनों में से एक है, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में अथक प्रयासों से शांति हासिल की गयी है, जो वास्तव में शांति के व्यक्ति हैं और जिन्होंने इस दुनिया को शांति और समृद्धि के साथ रहने की जगह बनाने के लिए इन महीनों में दिन-रात काम किया है.
मैं कहूंगा कि ट्रंप ने पहले भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने और फिर अपनी अद्भुत टीम के साथ युद्धविराम हासिल करने में जो उत्कृष्ट और असाधारण योगदान दिया है, उसके लिए पाकिस्तान ने राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था. और आज फिर मैं इस महान राष्ट्रपति को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करना चाहूंगा, क्योंकि मुझे वास्तव में लगता है कि वह शांति पुरस्कार के लिए सबसे सच्चे और सबसे अद्भुत उम्मीदवार हैं. उन्होंने न केवल दक्षिण एशिया में शांति लायी है, लाखों लोगों, उनके जीवन को बचाया है, और आज यहां शर्म अल शेख में, गाजा में शांति हासिल की है और मिडिल ईस्ट में लाखों लोगों की जान बचायी है.” शहबाज शरीफ ने डोनाल्ड ट्रंप की ऐसी प्रशंसा की कि हमेशा अपनी तारीफ सुनने को इच्छुक अमेरिकी राष्ट्रपति फूले नहीं समा रहे थे.
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने का श्रेय शहबाज शरीफ पहले ही ट्रंप को दे चुके थे. एक बार फिर शर्म अल शेख में उन्होंने युद्धविराम कराने का झूठा श्रेय ट्रंप को दिया. शहबाज शरीफ ने ट्रंप की इतनी तारीफ की कि बगल में मौजूद इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी मुंह पर हाथ रखकर यह सब सुन रही थीं और उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे. झूठी बातें करना और झूठा आचरण पाकिस्तान का चरित्र ही है. वास्तविकता यह भी है कि ट्रंप की चापलूसी करने का पाकिस्तान को फायदा मिला है और आगे भी मिलता रहेगा. जहां तक भारत की बात है, तो यह एक लोकतांत्रिक देश है, जो संसदीय परंपरा और पारदर्शिता का पालन करता है. वह इस तरह का आचरण नहीं कर सकता. हालांकि यह बात भी भूलनी नहीं चाहिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने जंग खत्म करने के लिए दुनिया में जहां-जहां कोशिश की है, भारत ने उसकी प्रशंसा की है. गाजा में शांति बहाली की पहल पर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को बधाई दी थी. लेकिन शहबाज शरीफ लगातार अमेरिकी राष्ट्रपति की जैसी चापलूसी करते आ रहे हैं, वह हास्यास्पद ही ज्यादा है.
शरीफ का यह आचरण तब और हैरान करने वाला है, जब पाक-अफगान सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच भिड़ंत पिछले कुछ समय से जारी है. वैसे तो दोनों देशों के बीच तनाव पिछले काफी समय से है. दरअसल, तालिबान का यह कहना है कि उन्होंने अपने यहां अस्थिरता फैलाने वाले सभी तत्वों को खत्म कर दिया है, लेकिन पाकिस्तान अपनी जमीन पर आइएस-खुरासान के आतंकवादियों को शरण दिये हुए है, जो अफगानिस्तान समेत पूरी दुनिया के लिए खतरा हैं. तालिबान ने मांग की है कि पाकिस्तान इन आंतकियों को उनके हवाले करे. लेकिन पाकिस्तान इस पर चुप्पी साधे हुए है. पिछले कुछ समय से यह आपसी तनाव सतह पर दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन इसी महीने पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के कुछ इलाकों पर हवाई हमले किये. तालिबान ने पाकिस्तान के उन हमलों को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए पाकिस्तान की सैन्य चौकियों को निशाना बनाकर करारा जवाब दिया था. उसके बाद फिर से खैबर पख्तूनख्वा के कुर्रम जिले में सीमा पर दोनों के बीच लड़ाई जैसे हालात बन गये हैं और दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने का दावा किया है.
स्थिति इतनी तनावपूर्ण बनी हुई है कि पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ को यह कहना पड़ा है कि दोनों देशों के बीच लड़ाई कभी भी शुरू हो सकती है. हालांकि सैन्य शक्ति के लिहाज से पाकिस्तान बहुत मजबूत है. लेकिन सीमा पर तालिबान की छोटी टीमें तेज हमले करने में सक्षम हैं. फिर पाकिस्तान द्वारा हमले की शुरुआत किये जाने से अफगानिस्तान में उसके प्रति गुस्सा है और अफगानी सेना व तालिबान लड़ाकों के समर्थन में काबुल समेत कई शहरों में युवा और कबीलाई नेता इकट्ठा हुए हैं.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच दुश्मनी नयी नहीं है. तालिबान का गठन चूंकि पाकिस्तान, अमेरिका और सऊदी अरब ने मिलकर तत्कालीन सोवियत संघ को पराजित करने के लिए किया था, इस कारण पाकिस्तान चाहता रहा है कि तालिबान उसके अंकुश में रहे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनके कारण दोनों के बीच का तनाव बीच-बीच में भड़क उठता है. पहले तो तालिबान उस डुरंड लाइन को ही नहीं मानता, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान को अलग करती है. आपसी तनाव का दूसरा कारण आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी है, जो पाकिस्तान को निशाना बनाते हैं. इस आतंकी समूह में ज्यादातर पाकिस्तानी हैं, लेकिन उसे शरण और शह अफगानिस्तान से मिलती रही है. दोनों देशों में मौजूदा तनाव के बीच टीटीपी के दोनों गुटों ने पाकिस्तान के खिलाफ हाथ मिला लिया है.
पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच तनाव का एक कारण भारत भी है. पाकिस्तान की मंशा अफगानिस्तान को अपना उपनिवेश बनाकर रखने की है.
दूसरी ओर, भारत ने हमेशा अफगानिस्तान की मदद की है. पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान में भारत की पैठ न हो. लेकिन अफगानिस्तान जानता है कि उसके यहां जमीनी मदद अगर किसी देश ने की है, तो वह भारत है. पिछले कुछ समय से भारत और अफगानिस्तान के बीच संबंध बेहतर हुए हैं, जो पाकिस्तान को नागवार गुजर रहा है. यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान पर हवाई हमला तब किया, जब तालिबान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी भारत दौरे पर थे. मुत्ताकी ने पाकिस्तान को सीधे चेतावनी देते हुए कहा कि अफगानिस्तान पर ताकत कभी काम नहीं आती, और अगर पाकिस्तान को यह बात समझ में न आ रही हो, तो उसे अमेरिका, रूस और नाटो से पूछ लेना चाहिए. जाहिर है, भारत की धरती से तालिबान के मंत्री द्वारा दी गयी चेतावनी पाकिस्तान के लिए शर्मनाक है. लेकिन इस सबसे बेअसर पाक प्रधानमंत्री ने जिस तरह शर्म अल शेख में ट्रंप की चापलूसी की है, वह एक बार फिर उसके अवसरवादी चरित्र के बारे में ही बताता है, जिसकी न तो कोई नीति है, न ही सिद्धांत.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

