28.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

सच्चे गांधीवादी थे राजेंद्र बाबू

सच्चे गांधीवादी थे राजेंद्र बाबू

मनीष सिन्हा

delhi@prabhatkhabar.in

राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिला के जीरादेई गांव में हुआ था. वे बचपन से ही मेधावी थे. चाहे शुरुआती शिक्षा हो या उच्च, सभी में उन्होंने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया. तमाम अभावों के बावजूद उन्होंने कानून में डाॅक्टरेट की उपाधि हासिल की. वकालत करने के साथ ही भारत की आजादी के लिए भी संघर्ष किया. वे कभी किसी पद के लिए लालायित नहीं रहे.

निःस्वार्थ भाव से पूरे देश में घूमते हुए सार्वजनिक जीवन में आनेवाली समस्याओं के हल के लिए तन-मन से पूरी तरह समर्पित रहे. चाहे कांग्रेस अध्यक्ष का पद हो या संविधान सभा अध्यक्ष का, या फिर देश के राष्ट्रपति का, उन्होंने कभी आगे आकर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं की. 26 जनवरी, 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिला और इसी के साथ राजेंद्र बाबू देश के प्रथम राष्ट्रपति बने. वर्ष 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गये. बतौर ‘महामहिम’ उन्होंने गैर-पक्षपात और पदधारी से मुक्ति की परंपरा स्थापित की.

पिछले छह दशकों में राजेंद्र बाबू के बारे में ज्यादा बातें नहीं हुई हैं. उनके जीवन से जुड़े अनेक ऐसे पहलू हैं, जिसके बारे में लोग या तो कम जानते हैं या जानते ही नहीं. उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में कभी भी स्वयं को प्रचारित करने, या नेता बनने की कोशिश नहीं की. वर्ष 1916 की बात है. कांग्रेस का लखनऊ सेशन चल रहा था, महात्मा गांधी भारत आ चुके थे. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी पूरे कार्यक्रम में साथ बैठे रहे, परंतु अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण राजेंद्र बाबू ने उनसे बात नहीं की.

हालांकि, अगले वर्ष चंपारण में किसानों की बदहाली की जानकारी राजेंद्र बाबू ने ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तक पहुंचायी और फिर महात्मा गांधी बिहार आये. बापू जीरादेई में राजेंद्र बाबू के घर ठहरे और वहां से चंपारण प्रस्थान किया. पूरे चंपारण आंदोलन में उन्होंने महात्मा गांधी के कंधे से कंधा मिला संघर्ष किया.

आज भी नेशनल आर्काइव्स में चंपारण पेपर्स सात वॉल्यूम में मौजूद हैं, जिसमें राजेंद्र बाबू के हाथ से लिखी सभी नील किसानों की जानकारी और व्यथा दर्ज है. वर्ष 1925 में राजेंद्र बाबू ऑल इंडिया कायस्थ काॅन्फ्रेंस के अध्यक्ष चुने गये. अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने दो महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास किये.

पहला, हिंदू विवाह में दहेज प्रथा को बंद करना व वैसे विवाहों का बहिष्कार जहां दहेज लिया जा रहा हो. दूसरा, अंतरजातीय विवाह. आगे चलकर उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह पर भी जोर दिया और समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए इस तरह की कुछ शादियां भी करवायीं. चंपारण आंदोलन के दौरान ही राजेंद्र बाबू एवं महात्मा गांधी के संबंध बहुत मजबूत हो गये थे.

इसकी झलक चंपारण आंदोलन के तीन दशक बाद, 15 अगस्त की रात्रि देश को किये उनके संबोधन में सुनने को मिलती है. यहां वे कहते हैं, ‘वे हमारी संस्कृति और जीवन के उस मर्म के प्रतीक हैं, जिसने हमें इतिहास की उन आफतों और मुसीबतों के बीच जिंदा रखा है. निराशा और मुसीबत के अंधेरे कुएं से उन्होंने हमें खींचकर बाहर निकाला और हममें एक ऐसी जिंदगी फूंकी जिससे हमारे भीतर अपने जन्मसिद्ध अधिकार ‘स्वराज’ के लिए दावा पेश करने की हिम्मत और ताकत आयी.

उन्होंने हमारे हाथों में सत्य और अहिंसा का अचूक अस्त्र दिया, जिसके जरिये बिना हथियार उठाये ही हमने स्वराज का अनमोल रत्न हासिल किया.’ राजेंद्र बाबू के बारे में बापू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘राजेंद्र बाबू सबसे बेहतर साथी हैं, जिनके साथ मैंने काम किया. उनके स्नेह ने मुझे उन पर इतना निर्भर कर दिया है कि अब उनके बिना मैं एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता.’ राजेंद्र बाबू संविधान सभा के भाषण में कहते हैं, ‘हिंदुस्तान में जो अल्पसंख्यक हैं, उनको हम आश्वासन देना चाहते हैं कि उनके साथ ठीक और इंसाफ का बर्ताव होगा और उनके व दूसरों के बीच कोई फर्क नहीं किया जायेगा.

उनकी धर्म और संस्कृति सुरक्षित रहेगी. उनसे आशा की जायेगी कि जिस देश में वे रहते हैं, उसकी तरफ और उसके विधान की तरफ वे वफादार बने रहें.’ राजेंद्र बाबू ने विश्व शांति के लिए भारत के कुछ दायित्व निर्धारित किये थे. उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि युद्धकाल में फंसे हुए देशों से दूरी बनाकर या फिर उनके साथ और ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले हथियार बनाने की प्रतिस्पर्धा में लगकर भारत अपना दायित्व पूरा नहीं कर सकता. हमारा बस एक लक्ष्य होना चाहिए, जहां हम सभी की आजादी और जनमानस के बीच शांति के लिए योगदान देते रहें.

राजेंद्र बाबू ने महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये सर्वोदय आंदोलन में भी हिस्सा लिया था. इस बारे में बापू कहते हैं, ‘अगर सभी प्रांत के नेताओं ने उसी तरह साथ दिया जैसा चरखा और खादी को प्रचारित करने के लिए देशरत्न राजेंद्र बाबू ने दिया है, तो मैं वादा करता हूं कि हमें बहुत जल्द स्वराज प्राप्त हो जायेगा. लोगों का एक-दूसरे पर भरोसा, कौम का देश पर भरोसा और सभी का सार्वभौमिक विकास, सरकार को कैसा होना चाहिए, जनता का मातृभूमि के प्रति दायित्व, विकास की बेहतर राह कौन-सी हो और हम विश्व को क्या संदेश दें जैसे अनेक मुद्दों और विषयों पर राजेंद्र बाबू ने सूत्र दिये हैं और अपने विचार रखे हैं.

आज जरूरत है उन सूत्रों और विचारों को अपने जीवन में उतारने और उन पर अमल करने की. ताकि हम सब मिलकर एक समतामूलक समाज का निर्माण कर सकें.

posted by : sameer oraon

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें