कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय पर संसद की स्थायी समिति द्वारा पेश यह रिपोर्ट चिंताजनक है, जिसमें कहा गया है कि अधिकारियों के लंबे समय तक एक ही पद पर बने रहने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है, लिहाजा नीति के अनुसार, तत्काल सभी तबादले किये जाने चाहिए. रिपोर्ट में यह सुनिश्चित किये जाने की जरूरत बतायी गयी है कि किसी मंत्रालय में कोई भी अधिकारी निर्धारित समयसीमा से अधिक न रहे. विगत 27 मार्च को संसद में पेश अपनी 145वीं रिपोर्ट में समिति ने कहा कि सभी अधिकारियों के लिए एक रोटेशन नीति रही है, लेकिन इसे पूरी तरह लागू नहीं किया जा रहा. ऐसे भी अधिकारी हैं, जो अनुकूल मंत्रालयों या स्थानों पर आठ-नौ साल से अधिक समय से तैनात हैं और संगठनों के प्रमुखों को चार-पांच बार बदले जाने के बावजूद वे अपने पदों पर बने हुए हैं. वित्त मंत्रालय में ऐसे विभाग हैं, जो आर्थिक और गैर आर्थिक के रूप में विभाजित हैं. मगर ऐसे भी उदाहरण सामने आये हैं, जहां अधिकारियों ने अपनी पोस्टिंग में इस तरह चतुराई दिखायी है कि उनका पूरा कैरियर एक ही मंत्रालय में रहा है. इस तरह की खामियों को बिना किसी देरी के दूर किया जाना चाहिए. समिति की यह टिप्पणी केंद्रीय सचिवालय सेवाओं और केंद्रीय सचिवालय आशुलिपिक सेवाओं के कामकाज की समीक्षा करते हुए आयी है.
नौकरशाही को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त करने की सिफारिशें लंबे समय से की जाती रही हैं. लेकिन इसके उलट हर राजनीतिक दल सत्ता संभालने के बाद अपने करीबी और भरोसेमंद अधिकारियों को जिम्मेदार पदों पर बहाल करता है और उन्हें लंबे समय तक वहां बनाये रखने का प्रयास करता है. इसका नतीजा यह है कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है. हालांकि इस संदर्भ में यह भी याद किया जाना चाहिए कि लगभग डेढ़ दशक पहले जब अधिकारियों की थोड़े-थोड़े समय पर तबादलों की बढ़ती प्रवृत्ति पर उंगलियां उठनी शुरू हुई थी, तब प्रशासनिक आयोग ने यह सिफारिश की थी कि किसी भी अधिकारी का स्थानांतरण तीन साल से कम समय में न किया जाये, जिससे कि वे एक जगह रहकर कुछ बेहतर काम कर सकें. लेकिन अब इससे उल्टी प्रवृत्ति विकसित हो रही है, तो यह भी उतनी ही चिंता का विषय है. चिंता की बात यह भी है कि संसदीय समिति ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने से संबंधित यह रिपोर्ट तब पेश की है, जब मौजूदा सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार अभियान चला रही है.