11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गुपकार के इरादे पर सवाल की गुंजाइश

गुपकार के इरादे पर सवाल की गुंजाइश

प्रभु चावला, एडिटोरियल डायरेक्टर

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

prabhuchawla@

newindianexpress.com

महानगर का गुपकार रोड कश्मीर का लुटियन दिल्ली है. सत्ता की ओर जाते इस दो किलोमीटर लंबे रास्ते के ढलान और मोड़ एक अशांत जगह में शांतिपूर्ण सपने की तरह हैं तथा इसके दोनों ओर छोटे-बड़े लगभग 150 घर व कार्यालय हैं. यह डल झील पर बने ललित होटल से शुरू होता है तथा अब्दुल्ला परिवार के आवास पर खत्म होता है. यह मार्ग जम्मू-कश्मीर का सबसे प्रभावशाली पता है, जहां कश्मीर के संभ्रांत, वरिष्ठ सैन्य व राज्य सरकार के अधिकारी, केंद्रीय गुप्तचर ब्यूरो व रॉ के अधिकारी तथा कुछ वरिष्ठ राजनेताओं का वास है.

इस सड़क पर अब्दुल्ला परिवार के तीन बड़े बंगले हैं. सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और माकपा नेता युसुफ तारिगामी को भी एक-एक बंगला दिया है. अचरज की बात नहीं है कि पूर्व पत्रकार खालिद जहांगीर को भी केसरिया खेमे में आने के बाद इसी सड़क पर एक आवास दिया गया. जहांगीर भाजपा के उम्मीदवार के रूप में फारूक अब्दुल्ला से लड़े थे और उन्हें लगभग चार हजार वोट ही मिले थे.

भाजपा ने इसके बाशिंदों को एक अलग ही नाम दे दिया है- गुपकार गिरोह. इसका कारण यह है कि चार अगस्त, 2019 को फारूक अब्दुल्ला ने हिरासत से छूटने के बाद अपने निवास पर क्षेत्रीय पार्टियों की एक बैठक बुलायी थी, जिसमें गुपकार घोषणा के लिए पीपुल्स अलायंस का गठन हुआ था. यह घोषणा एक संयुक्त संकल्प है, जिसमें किसी भी कीमत पर अनुच्छेद 370 को बचाने की बात कही गयी है. इस पर नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस, पीडीपी, माकपा, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस तथा अवामी नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं ने दस्तखत किया था.

इसके एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली एनडीए सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35ए को हटा दिया था तथा फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत 500 स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था. पंद्रह महीनों के बाद स्थानीय पार्टियों और भाजपा के बीच एक राजनीतिक युद्ध शुरू हो गया है. यह लड़ाई राज्य के लोगों को आतंकियों से बचाने, युवाओं को रोजगार दिलाने, उद्यमियों के लिए समुचित व्यावसायिक माहौल उपलब्ध कराने, पर्यटन को बढ़ावा देने और कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी के लिए नहीं है.

यह लड़ाई केवल अनुच्छेद 370 के बारे में है, जो मातृभूमि के साथ कश्मीर के पूर्ण एका के बीच दीवार था तथा इसने सात दशकों तक भारत की विकास यात्रा में समान अवसर हासिल करने से कश्मीरियों को वंचित रखा था. घाटी आज भी आतंकियों के लिए आसान निशाना है. अब किसी भी तरह से सत्ता हथियाने के लिए एक नया गठबंधन उभर रहा है. यदि गुपकार अलायंस को कूट नाम दें, तो यह कुचक्र 370 कहा जा सकता है, जो पाखंड का नया अगुवा है. सभी अवसरवादियों की तरह, जिनमें विसंगति एक मुख्य प्रवृत्ति होती है, नेशनल कांफ्रेंस से लेकर पीडीपी तक विरोधाभासी रवैया दिखा रहे हैं.

अनुच्छेद 370 हटाने के अपने मुख्य संकल्प से डिगे बिना भाजपा ने एक भरोसेमंद और लचीले सहयोगी के रूप में महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनाया था. अब वे इस कुचक्र के उपाध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय ध्वज को फहराने से इनकार कर रही हैं. उन्होंने अपने उद्गार में कहा कि उन्होंने एक उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत में विलय किया था और वे आज के भारत के साथ सहज नहीं महसूस कर रही हैं. उनके गुपकार अलायंस के सहयोगी फारूक अब्दुल्ला अलगाववादी विचारों के वादक हैं, जो बार-बार तिरस्कार के एक ही रिकॉर्ड को बजाते रहते हैं.

उनका कहना है कि यह समूह भारत का शत्रु नहीं है- ‘मैं आपको बताना चाहता हूं कि गुपकार अलायंस को राष्ट्र-विरोधी बताना भाजपा का झूठा प्रचार है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह भाजपा-विरोधी है, पर यह राष्ट्र-विरोधी नहीं है. नेशनल कांफ्रेंस पहले स्वेच्छा से एनडीए का हिस्सा रह चुका है.

जब जब अवसरवाद का मौका आया है, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी अपने दुश्मनों और एक-दूसरे के साथ खड़े हो जाते हैं. अब उन्हें लगता है कि विभाजित रहने से न केवल सत्ता, बल्कि वे अपनी प्रासंगिकता भी खो देंगे. अभी इस अलायंस में सभी साथ है, पर मलाई बांटने को लेकर जल्दी ही वे एक-दूसरे के विरोध में खड़े हो जायेंगे. भाजपा का एकमात्र गुण है, उसका अनुच्छेद 370 पर वैचारिक निरंतरता. इसने अतीत में घाटी के अधिकतर दलों के साथ अपवित्र गठबंधन बनाया है.

श्रीनगर की गद्दी हथियाने के चक्कर में इसने महबूबा मुफ्ती को नेता भी बनाया और सीढ़ी भी. मुफ्ती से अलग होने के बाद इसने पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन को आगे बढ़ाया. वे अब गुपकार अलायंस के सक्रिय सदस्य हैं. अमित शाह ट्विटर पर गरज रहे हैं कि गुपकार गिरोह वैश्विक हो रहा है और वह जम्मू-कश्मीर में विदेशी शक्तियों का हस्तक्षेप चाहता है.

क्षुब्ध उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया कि गृह मंत्री के इस हमले के पीछे की बेचैनी को वे समझते हैं. उन्हें बताया गया था कि अलायंस चुनाव का बहिष्कार करेगा तथा इससे भाजपा और राजा की नयी पार्टी को खुला मैदान मिल जायेगा. वे ऐसा नहीं होने देंगे. कांग्रेस ने इस अलायंस का हिस्सा होने से साफ इनकार किया है. इससे साफ है कि ऐसा रवैया सिर्फ दिखावे के लिए है, किसी विचारधारात्मक प्रतिबद्धता से प्रेरित नहीं.

उदाहरण के लिए, भाजपा के विरोधी उस पर अवसरवाद का आरोप लगाते हैं. कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भाजपा के पुराने गठबंधनों की याद दिलायी है. कारगिल के नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्ववाली लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास काउंसिल में भाजपा भी हिस्सेदार है. यह शाब्दिक युद्ध जिला विकास काउंसिल की 280 सीटों के लिए होनेवाले आगामी चुनाव से भी संबंधित है.

अनधिकृत सूत्रों के मुताबिक, भाजपा का अनुमान था कि पंचायत चुनाव की तरह इस चुनाव में भी स्थानीय दल भाग नहीं लेंगे. लेकिन फारूक अब्दुल्ला ने अपने सहयोगियों को इस चुनाव को अनुच्छेद 370 पर जनमत संग्रह बनाने तथा इसी एजेंडे पर कांग्रेस के साथ लड़ने पर राजी कर लिया. भाजपा ने राष्ट्रवाद बनाम शेष का अपना पुराना प्रभावी मंत्र फिर से अपनाया है.

गुपकार अलायंस को गिरोह तथा आतंक व गरीबी समर्थक बताकर वह फिर जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं में ध्रुवीकरण कर रही है. भाजपा ने भ्रष्टाचार बढ़ाने और आतंकवाद को अनदेखा करने के तंत्र को सफलतापूर्वक ध्वस्त किया है, लेकिन इसे अभी भी युवाओं का भरोसा हासिल करना है, जो रोजगार के अभाव में बंदूक थाम रहे हैं. कश्मीर को आत्मनिर्भर बनाने की जगह घाटी के राजनेता अपने वंश और मिलावटी विचार को किसी तरह आगे बढ़ाने की जुगत लगा रहे हैं.

posted by : sameer oraon

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें