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राज्यसभा की बदलती तस्वीर

इस चुनाव का असर राष्ट्रपति के चुनाव तथा भाजपा एवं उसके मित्रों व शत्रुओं के राजनीतिक भविष्य की रूपरेखा में होगा.

ब्रिटिश संसद के उच्च सदन में कुलीन लोगों को जगह मिलती है. इसका अनुसरण करते हुए भारतीय संसद के उच्च सदन राज्यसभा में राजनीतिक कुलीनों का वास होता है. बिना मेहनत के सुस्ती से सत्ता पाना उनका विशेषाधिकार है, क्योंकि जिन्हें जनता नहीं चुनती, वे नेताओं के लिए चयन योग्य हो जाते हैं. राज्यसभा की 57 सीटों के लिए चुनाव प्रक्रिया चल रही है, जिसमें बुजुर्गों के साथ युवा भी मैदान में हैं.

चूंकि 90 फीसदी से ज्यादा राज्यसभा सांसदों को बोलने के लिए शायद ही कुछ मिनट मिलते हैं, तो इनकी मौजूदगी शोर करने और पार्टी के निर्देश के अनुसार मत डालने के लिए होती है, लेकिन उन्हें विभिन्न लाभ मिलते हैं, जिन पर प्रति सदस्य हर माह करदाताओं के 10 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं. इन दिनों नये व पुराने चेहरों में से सदस्य चुनने का चलन है.

भाजपा ने एक दर्जन मौजूदा सांसदों पर नये लोगों को तरजीह दी है. कांग्रेस का दांव पुराने लोगों पर है, जो अनुभवी हैं. भाजपा का तीन मुस्लिम चेहरों को किनारे करना यह इंगित करता है कि उसे अल्पसंख्यक वोटों की उम्मीद नहीं रही या इसकी उसे परवाह नहीं है. स्पष्ट रूप से भाजपा महिलाओं, आदिवासियों, अति पिछड़े समुदायों आदि को प्रतिनिधित्व देकर व्यापक सोशल इंजीनियरिंग के अभियान पर है और कुछ हद तक राज्य स्तर पर नये नेता भी बना रही है.

प्रधानमंत्री मोदी बाहरी लोगों की अपेक्षा स्थानीय नेताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं. भाजपा के 16 में से छह उम्मीदवार महिलाएं हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (जो जन्म से तमिल हैं और उनकी शादी आंध्र प्रदेश में हुई है) केवल ऐसी प्रत्याशी हैं, जिन्हें कर्नाटक से तीसरी बार उम्मीदवार बनाया गया है. मुख्तार अब्बास नकवी को तीन बार लगातार सांसद रहने के बाद टिकट नहीं मिला है. पहले चुनाव हारे हुए नेताओं को उच्च सदन का उपहार दिया जाता था.

अब भाजपा में 75 साल की आयु सीमा को लचीला किया गया है. राजस्थान के घनश्याम तिवारी 72 साल के हैं और सेवानिवृत्त होते समय 78 साल के हो जायेंगे. भाजपा सूत्रों के अनुसार, उन्हें पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के रूप में आगे किया गया है. इतना ही नहीं, वसुंधरा राजे उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं. दूसरे दलों को तोड़ने की रणनीति पर चलते हुए भाजपा ने राजस्थान, महाराष्ट्र और हरियाणा में अतिरिक्त उम्मीदवार भी उतारे हैं, जो गणमान्य हैं और उनके पास संसाधन हैं.

बहरहाल, इस चुनाव के बाद राज्यसभा में केसरिया खेमे का स्वरूप बदल जायेगा. सत्ता प्रतिष्ठान की पुनर्संरचना के लक्ष्य को पाने के लिए आवश्यक संवैधानिक संशोधन पारित करने के लिए मोदी को उच्च सदन में एक सेना की आवश्यकता है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस मोदी की इस योजना को भांप गयी है और वह अपने विश्वस्त लोगों को सदन में ला रही है.

भले ही उनके समर्थक इसे ठोस रणनीति कहें, पर सोनिया गांधी का लक्ष्य पार्टी के सांगठनिक और विधायी इकाइयों पर पूर्ण नियंत्रण का है. भले ही उसका भौगोलिक आधार सिकुड़ रहा हो, वे सत्ता पक्ष के शोर के बरक्स अपने खेमे में हल्ला करनेवाले लोग जुटाना चाहती हैं. उनके सलाहकार मानते हैं कि सदन के ज्यादातर कांग्रेसी या तो बहुत नरम हैं या सत्ताधारी दल से डरते हैं. और, उनमें से कुछ जुगाड़ू हैं और सरकार उनका लाभ उठाती है.

सोनिया की पसंद से यह भी इंगित होता है कि राहुल के लिए चुनौती बन सकनेवाले वह किसी भी नेता को परे रखना चाहती हैं. राजस्थान में तीन जीतने लायक सीटों के लिए बाहरी लोगों को उम्मीदवार बना कर उन्होंने बड़ा दांव खेला है. पार्टी के लोग अचंभित हैं कि वे यह सब उस राज्य में कर रही हैं, जहां अगले साल चुनाव है. दो साल से गहलोत सरकार पर भाजपा की तलवार लटक रही है.

स्थानीय नेताओं को चुनने और पार्टी को एकजुट करने की बजाय गांधी परिवार ने विश्वासपात्र और संसाधन संपन्न लोगों का समर्थन किया है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश, जहां पार्टी शून्य हो चुकी है, के कांग्रेसी नेता प्रमोद तिवारी को तीसरी सीट दी गयी है. वे दशकों तक पार्टी विधायक दल के नेता रहे हैं और अपनी विधायक सीट कभी नहीं हारे हैं. इनके जैसे नेताओं को उनकी नेटवर्किंग क्षमता और संकट के समय समर्थन के लिए लाया गया है.

गांधी परिवार बीते कुछ साल से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और सबसे प्रभावशाली कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को अनदेखा कर रहा था और रणदीप सूरजेवाला पर भरोसा कर रहा था, पर अब उनकी आंख खुली है और हुड्डा को राज्य में खुली छूट दे दी गयी है. दलित नेता कुमारी शैलजा को पार्टी अध्यक्ष पद और राज्यसभा से हटा कर उनकी जगह विश्वासपात्र अजय माकन को लाया गया है, जो हुड्डा को भी स्वीकार्य हैं.

माकन एक मेहनती कार्यकर्ता हैं. महाराष्ट्र से दलित नेता मुकुल वासनिक गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों से जुड़े हैं. नये-पुराने नेताओं में सामंजस्य के लिए पार्टी मुख्यालय में उनकी आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश के एक मुस्लिम नेता इमरान प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र की अकेली सीट से उम्मीदवार बनाया गया है. तिवारी और प्रतापगढ़ी एक ही जिले से आते हैं.

तिवारी ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो प्रतापगढ़ी पार्टी के सबसे आक्रामक मुस्लिम आवाजों में है और उकसाऊ भाषण देने के विशेषज्ञ हैं. छत्तीसगढ़ में गांधी परिवार ने बिहार के चर्चित नेता पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन को चुना है. कांग्रेस इनके संसाधन और बाहुबल का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ में करना चाहती है. पी चिदंबरम, जयराम रमेश, विवेक तन्खा और राजीव शुक्ला का चयन गांधी परिवार की ओर से पार्टी के भीतर और बाहर की रणनीतियां बनाने के इरादे से किया गया है.

आम आदमी पार्टी भी संसाधन संपन्न और नये चेहरों पर दांव लगा रही है. इसके आधे सदस्य कारोबार से जुड़े हैं या दूसरे दलों से आये हैं. कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने विश्वासपात्रों को ही चुना है. ओडिशा के नवीन पटनायक और तमिलनाडु के एमके स्टालिन ने बाहरी धनिकों को टिकट देने के दबाव को परे रखा है.

पीछे देखें, तो राज्यसभा उनके लिए रही है, जो चुनाव नहीं जीत सकते. डॉ मनमोहन सिंह ऊपरी सदन के जरिये प्रधानमंत्री बने. वंशवाद का भी मौका रहा है. आरएलडी के जयंत चौधरी राज्यसभा पहुंचे हैं. अब यह स्पष्ट है कि इस चुनाव का असर राष्ट्रपति के चुनाव तथा भाजपा एवं उसके मित्रों व शत्रुओं के राजनीतिक भविष्य की रूपरेखा में होगा. साल 2024 के चुनाव का रास्ता भी इससे परिभाषित होगा.

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