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गांवों से शहरों को पलायन की चुनौती

पहले हमारी 20 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती थी, जबकि 80 फीसदी आबादी गांवों में थी. अब शहरी आबादी 30 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 70 फीसदी लोग रह रहे हैं. जो तथ्य सामने हैं, उनके अनुसार गुजरात जैसे विकसित राज्य में 48 प्रतिशत शहरीकरण हो चुका है और 2035 तक यह 60 प्रतिशत को पार कर जायेगा.

इस देश में शहर और गांव को लेकर बहस पुरानी है. हाल में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास राज्यमंत्री कौशल किशोर ने शहरीकरण को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया है. उन्होंने कहा कि भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण से अगले कुछ दशकों में देश की लगभग आधी आबादी शहरों में रहने लगेगी. पहले हमारी 20 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती थी, जबकि 80 फीसदी आबादी गांवों में रहती थी. अब शहरी आबादी 30 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 70 फीसदी लोग रह रहे हैं. उनका कहना था कि अब हम ऐसी प्रवृत्ति देख रहे हैं, जिसमें लोग जिस शहर में काम करते हैं, वहीं मकान खरीदना चाहते हैं. कौशल किशोर ने कहा कि शहरीकरण की तेज रफ्तार को देखते हुए हमें अगले कुछ दशकों में शहरी और ग्रामीण आबादी का अनुपात 50:50 होने की उम्मीद है. इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहरी लोगों के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं. हम सब जानते हैं कि गांवों से हजारों लोग शहर आकर अपने लिए बेहतर जीवन की तलाश करते हैं. वे शहरों में अच्छी आमदनी की उम्मीद करते हैं. ऐसे लोगों को सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. जो तथ्य सामने हैं, उनके अनुसार गुजरात जैसे विकसित राज्य में 48 प्रतिशत शहरीकरण हो चुका है और 2035 तक यह 60 प्रतिशत को पार कर जायेगा. बाकी राज्य भी बहुत पीछे नहीं हैं. सभी राज्यों में, चाहे बिहार हो, झारखंड हो अथवा पश्चिम बंगाल, शहरीकरण की रफ्तार तेज है.

केंद्र सरकार ने भविष्य में लोगों के शहरों की ओर जाने को ध्यान में रखते हुए कई योजनाएं शुरू की हैं. हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 2047 तक विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने में सैंकड़ों छोटे शहरों की अहम भूमिका है और उनकी सरकार ऐसे शहरों में बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बना रही है. उस समय देश आजादी की 100वीं वर्षगांठ मनायेगा. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद लंबे समय तक जो विकास हुआ, उसका दायरा देश के कुछ बड़े शहरों तक ही सीमित था, लेकिन आज हम टियर-2 और टियर-3 शहरों के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अमृत मिशन और स्मार्ट सिटी मिशन जैसी पहल छोटे शहरों में बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बना रही हैं. ऐसा अनुमान है कि अगले एक दशक में शहरी आबादी 60 करोड़ तक पहुंच जायेगी. हम सब जानते हैं कि भारतीय शहरों की स्थिति खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और घटिया सार्वजनिक सेवाओं की वजह से चिंताजनक होती जा रही है. दरअसल वर्तमान कार्यप्रणाली में शहर के विकास और सुविधाओं के लिए योजना तैयार करते समय भविष्य में आबादी का ख्याल नहीं रखा जाता है. योजना के पूरा होते-होते उसमें विस्तार करने की जरूरत पड़ने लगती है. केंद्र सरकार ने शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए निवेश का ऐलान 2014 में लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान किया था. स्मार्ट सिटी योजना 2015 में लॉन्च हुई. विपक्ष सरकार की स्मार्ट सिटी योजना को प्रचार का एक जरिया बताता है. उसका कहना है कि इसके नतीजे जमीन पर नहीं दिखाई दे रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि स्मार्ट सिटी मिशन दुनिया में कहीं भी सबसे तेजी से लागू की गयी योजनाओं में से एक है.0

हमारे शहरों की एक बड़ी चुनौती प्रदूषण को लेकर है. अनेक रिपोर्टों में इस चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा किया गया है. बावजूद इसके हम इस ओर आंख मूंदे हैं. बढ़ते प्रदूषण पर कोई सार्थक पहल नहीं होती, जबकि यह मुद्दा हमारे-आपके जीवन से जुड़ा हुआ है. अगले साल आम चुनाव हैं, लेकिन उनमें भी यह कोई मुद्दा नहीं है और न ही पर्यावरण संरक्षण किसी पार्टी के घोषणापत्र में स्थान पाता है. अपने देश में स्वच्छता और प्रदूषण का परिदृश्य वर्षों से निराशाजनक रहा है. इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नहीं है, लेकिन अब समय आ गया है कि जब हम इस विषय में संजीदा हों. एक बात स्पष्ट है कि यह काम केवल केंद्र अथवा राज्य सरकार के बूते का नहीं है. इसमें जनभागीदारी जरूरी है. सरकारें शहरों के प्रदूषण नियंत्रित करने की जिम्मेदारी अकेले नहीं निभा सकती हैं. केवल नगर निगमों के सहारे यह काम नहीं छोड़ा जा सकता है. अब जबकि शहरों में आबादी तेजी से बढ़ने जा रही है, हमारे शहरों की जन सुविधाओं पर और दबाव बढ़ेगा. हमारी जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, उसके अनुपात में सरकारी प्रयास हमेशा नाकाफी रहने वाले हैं. हमें शहरी प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान करना होगा, तभी परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.

स्वच्छता और सफाई के काम को करने में सांस्कृतिक बाधाएं भी आड़े आती हैं. देश में ज्यादातर धार्मिक स्थलों के आसपास अक्सर बहुत गंदगी दिखाई देती है. इन जगहों पर चढ़ाये गये फूलों के ढेर लगे होते हैं. कुछेक मंदिरों में स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से फूलों के निस्तारण और उन्हें जैविक खाद बनाने का प्रशंसनीय कार्य प्रारंभ किया है. अन्य धर्म स्थलों को भी ऐसे उपाय अपनाने चाहिए. होता यह है कि हम लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करके सुंदर मकान तो बना लेते हैं, लेकिन नाली पर ध्यान नहीं देते और गंदा पानी सड़क पर बहता रहता है. यही स्थिति कूड़े की है. हम रास्ता चलते कूड़ा सड़क पर फेंक देते हैं. साफ-सफाई में नगर निगम की भी अहम भूमिका होती है, लेकिन पार्षद चुनने में भी हम अपना वोट पार्टी और जाति के आधार पर देते हैं. तर्क दिया जाता है कि बिहार के शहरों के प्रदूषण की एक बड़ी वजह जनसंख्या घनत्व है, लेकिन दुनिया के कई ऐसे शहर हैं, जो उच्च जन-घनत्व के बावजूद प्रदूषण से मुक्त हैं. सिंगापुर दुनिया का आठवां सबसे अधिक जन-घनत्व वाला शहर है, लेकिन अपने बेहतरीन रखरखाव के कारण यह दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर है. विदेशी शहरों को तो छोड़े, अपने देश में ही देखें और उत्तर व दक्षिण भारत के शहरों की तुलना करें. बिहार के शहरों के मुकाबले हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई जैसे शहर आबादी के लिहाज से बड़े हैं, लेकिन योजनाबद्ध तरीके से विकास के कारण इन शहरों को प्रदूषण की समस्या से जूझना नहीं पड़ रहा है. और, यदि कभी आपको कभी झारखंड के किसी संताली गांव को देखने का अवसर मिले, तो आप पायेंगे कि वे किसी भी शहर से ज्यादा साफ-सुथरे हैं. यह सरकारी प्रयासों से नहीं होता, बल्कि जन चेतना से संभव हो पाता है. लोगों में जब तक साफ-सफाई और प्रदूषण के प्रति चेतना नहीं जगेगी, तब तक कोई उपाय कारगर साबित नहीं होगा.

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