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मवेशी अर्थव्यवस्था पर असर

रिचर्ड महापात्रा मैनेजिंग एडिटर, डाउनटूअर्थ richard@cseindia.org पशु मंडियों से मवेशियों की खरीद-फरोख्त के बाद मांस के लिए उन्हें काटे जाने को लेकर केंद्र सरकार ने नये नियम बनाये हैं. मद्रास हाइकोर्ट ने सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसके बाद इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गयी है. नियम-कानून होने चाहिए, लेकिन […]

रिचर्ड महापात्रा

मैनेजिंग एडिटर, डाउनटूअर्थ

richard@cseindia.org

पशु मंडियों से मवेशियों की खरीद-फरोख्त के बाद मांस के लिए उन्हें काटे जाने को लेकर केंद्र सरकार ने नये नियम बनाये हैं. मद्रास हाइकोर्ट ने सरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसके बाद इस मुद्दे पर बहस शुरू हो गयी है. नियम-कानून होने चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि नये कानून से मवेशी अर्थव्यवस्था (लाइवस्टॉक इकोनॉमी) पर क्या असर पड़ेगा? इसे समझना होगा, क्योंकि यह सच है कि हम में से बहुत से लोग नॉनवेजिटेरियन भी हैं.

हमारी कृषि व्यवस्था के तीन हिस्से हैं. अनाज, पशुधन और मछलीपालन. बीते दशक में भारत के कृषि क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है. वह बदलाव यह है कि लाइवस्टॉक ग्रोथ (पशु वृद्धि) आज अनाज से ज्यादा हो गया है. वर्तमान में लाइवस्टॉक इकोनॉमी तीन लाख चालीस हजार करोड़ रुपये की है, जो अनाज के मुकाबले बहुत ज्यादा है. इसका अर्थ यह हुआ कि लाइवस्टॉक इकोनॉमी आज सबसे बड़ी इकोनॉमी है, जिसमें देश के 67 प्रतिशत छोटे-मझोले किसान, गरीब-भूमिहीन, खेतिहर मजदूर आदि शामिल हैं, जो इस अर्थव्यवस्था को चलाते हैं.

ये लोग मूलत: ग्रामीण क्षेत्रों के लोग हैं, जिनके पास एक-दो बकरी, एक गाय, एक भैंस या कोई और पालतू पशु होते हैं. लाइवस्टॉक इकोनॉमी आज सबसे गरीब भारतीयों की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लाइवस्टॉक इकोनॉमी की वृद्धि दर अनाज के मुकाबले ज्यादा है और इसकी रोजगार दर भी ज्यादा है.

पहले पशुओं का इस्तेमाल बैलगाड़ी और खेत जोतने में होता था, लेकिन अब इसकी जगह मशीनों ने ले ली है. गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में होता था, लेकिन अब उनकी जगह फर्टिलाइजर्स ने ले ली है. फिर भी पशुओं की पैदावार बढ़ रही है. एक आंकड़े के मुताबिक, नर पशुओं के मुकाबले मादा पशुओं की पैदावार ज्यादा हुई है, जिसके चलते पशुधन बढ़ा है. मिडिल क्लास के उभार ने नॉनवेज उपभोग को बढ़ावा दिया है. विडंबना है कि आज सबसे ज्यादा मिडिल क्लास ही इस बात की चिंता कर रहा है कि पशु हत्या हाे रही है.

भारत में पशुपालन एक पारंपरिक अर्थव्यवस्था की तरह है. ग्रामीण भारत में पशुपालन एक इंटरेस्ट (ब्याज) या पीएफ (भविष्यनिधि) जैसा है. मसलन, किसी के पास एक बकरी है, तो अगले एक-दो साल में उसके पास दो बकरियां होंगी. इस बढ़ी संख्या को किसान एक इंटरेस्ट की तरह देखता है कि अगर बाढ़-सूखा पड़ा, फसल बरबाद हुई, तो वह अपने पशुओं को बेच कर उससे कुछ गुजारा करेगा. गाय-भैंस जैसे बड़े जानवर पालनेवाले भी ऐसा ही सोचते हैं. पशुपालन उनके लिए इंश्योरेंस पॉलिसी का काम करता है. गाय-भैंस जब तक दूध देती हैं, तब तक तो ठीक है, लेकिन जब वे दूध देना बंद कर देती हैं, तो फिर उनका कोई उपयोग नहीं बचता.

अब किसान अगर उसे बेचे नहीं, तो क्या करे? पहले व्यापारी अनुत्पादक पशुओं को खरीद लेते थे, लेकिन अब संभव नहीं है. अभी का बड़ा मुद्दा यही है, जिसके लिए कहा जा रहा है कि अनुत्पादक पशुओं की मार्केट में खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती. सवाल है कि अनुत्पादक पशु का किसान क्या करे? जहां एक अनुत्पादक गाय को पालने में रोजाना 85 रुपये का खर्च आता है, वहां किसान अपने लिए भोजन खरीदे या पशु के लिए चारा. इसलिए किसान पशुपालन छोड़ रहे हैं. आगे चल कर इसका असर यह होगा कि एक बड़े तबके के लाइफ इंश्योरेंस का ताना-बाना टूट जायेगा, जिससे गरीबी और भी बढ़ेगी.

अनुत्पादक पशुओं के मार्केट में बेचने-खरीदने पर प्रतिबंध के बाद लाइवस्टॉक इकोनॉमी का मूलभूत सिद्धांत ही खत्म हो जायेगा. मसलन, सरकार ने कहा है कि बेचने-खरीदने के लिए कई दस्तावेज देने होंगे. लेकिन, एक पशुपालक के लिए यह मुश्किल है कि वह इन दस्तावेजों को दे पाये. मतलब साफ है- ऐसा नियम बना दो कि वह अपने व्यवहार में प्रतिबंध की तरह हो.

जाहिर है, किसान अगर अनुत्पादक पशु बेच नहीं पायेगा, तो उसे सड़क पर छोड़ देगा. उसके बाद एक और समस्या आयेगी- आखिर सरकार के पास अनुत्पादक पशुओं को पालने की क्या व्यवस्था है? जब सरकार के पास अनाज के भंडारण की भी उचित क्षमता नहीं है, जो लालन-पालन की मांग नहीं करता, तो फिर अनुत्पादक पशुओं के रख-रखाव की क्या व्यवस्था है सरकार के पास? देश में चारा की भी भारी कमी है और इस वक्त देश में 51 लाख छुट्टे पालतू पशु हैं, जिन्हें संभालने की कोई व्यवस्था नहीं है.

कुल मिला कर मवेशियों के खरीद-फरोख्त पर नियंत्रण से गरीब-किसानों की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर संकट आयेगा और पशुधन पर आश्रित 20-30 प्रतिशत किसानों-गरीबों की जीविका पर असर पड़ेगा. इतने बड़ी इकोनॉमी के लिए जो एक बढ़िया सा इनफॉर्मल मार्केट चल रहा था, वह ध्वस्त हो जायेगा. हालांकि, सरकार कह रही है कि ऐसा काउ शेल्टर होना चाहिए, वैसा पालन होना चाहिए. यहां डर इस बात का है कि सरकार कहीं इसका भी निजीकरण न करना चाहती हो, जैसा अनाज भंडारण के लिए किया है. ऐसा हुआ तो इसका सीधा फायदा बड़े पूंजीपति ही उठायेंगे, क्योंकि निवेश वही करेंगे. तब पशुपालक नुकसान उठायेगा.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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