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कश्मीर में पिछले साल जुलाई में हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद से शुरू हुए हिंसा और तनाव का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. शनिवार को इसी आतंकी समूह के सरगना सबजार अहमद भट्ट और एक अन्य आतंकी की मुठभेड़ में मौत के बाद घाटी में उग्र प्रदर्शन हो रहे […]

कश्मीर में पिछले साल जुलाई में हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद से शुरू हुए हिंसा और तनाव का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. शनिवार को इसी आतंकी समूह के सरगना सबजार अहमद भट्ट और एक अन्य आतंकी की मुठभेड़ में मौत के बाद घाटी में उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं. इसी बीच नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ की कोशिश की खबर है.
सुरक्षाकर्मियों ने छह घुसपैठियों को मार गिराया है. पाकिस्तान घाटी में अस्थिरता और अलगाववाद भड़काने की अपनी नीति के तहत प्रशिक्षित आतंकियों को कश्मीर भेजता रहा है. इस साल घुसपैठ, सुरक्षाबलों पर हमले और युद्धविराम के उल्लंघन के अनेक मामले सामने आये हैं. ऐसे में अलगाववादियों के उकसावे और दबाव में आकर उग्र प्रदर्शन कर रहे लोगों पर काबू पाना पुलिस, अर्द्धसैनिक बलों और सेना के लिए बड़ी चुनौती है.
राज्य पुलिस ने एक बार फिर अपनी इस रणनीति पर प्रतिबद्धता व्यक्त की है कि आतंकी सरगनाओं के विरुद्ध उसकी कार्रवाई जारी रहेगी. उधर, अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी पाकिस्तानी हरकतों पर अंकुश लगाने के लिए आमादा हैं, लेकिन इन जरूरी रणनीतिक कार्रवाइयों के साथ कश्मीर के विभिन्न संगठनों और आम नागरिकों के साथ केंद्र और राज्य सरकारों को संवाद स्थापित करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए.
हालांकि सरकार ने बार-बार कहा है कि वह घाटी में अमन बहाल करने के लिए बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन इस संबंध में ठोस पहलकदमी नहीं दिखायी दे रही है. यह एक तथ्य है कि जब तक आम कश्मीरियों को सरकार भरोसे में नहीं लेगी, अलगाववाद और आतंकवाद को पैर पसारने का मौका मिलता रहेगा. पाकिस्तानी मंसूबों को परास्त करने के लिए राजनीतिक पहल जरूरी है.
बीते दिनों श्रीनगर उपचुनाव में बेहद मामूली मतदान होना इस बात का संकेत है कि कश्मीर के तबके में अविश्वास का माहौल है और एक हिस्सा ऐसा है, जो अलगावादियों एवं आतंकियों के डर के साये में है, जिसे सुरक्षा और सुकून नहीं दिया जा सका है. इन चुनौतियों का हल सिर्फ ताकत के बल पर नहीं निकाला जा सकता है. हिंसा और प्रतिहिंसा ने घाटी को विषाक्त कर दिया है.
इस भयावह क्रम को तोड़ने की जरूरत है. कश्मीर के ताजा प्रदर्शनों के विरुद्ध सुरक्षाबलों को बेहद संवेदनशीलता बरतनी होगी, अन्यथा असंतोष उत्तरोत्तर सघन होता जायेगा, जिसका बेजा फायदा पाकिस्तान और घाटी के अलगाववादी एवं चरमपंथी उठाते रहते हैं. उम्मीद है कि घाटी के भीतर तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को चौकस रखते हुए विभिन्न पक्षों के साथ बातचीत का सिलसिला जल्दी शुरू होगी.
Prabhat Khabar Digital Desk
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