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मिथिला की खुशबू

नरेंद्र झा फिल्म अभिनेता क्षेत्रीय भाषाओं के सिनेमा का दौर पहले से ही आ चुका है. ‘सैराट’ इसका बेहतरीन उदाहरण है. भाषायी सिनेमा के निर्देशक कंटेंट, स्टाइल और पहुंच, हर तरीके से हिंदी फिल्मों के निर्देशकों को चुनौती दे रहे हैं. एसएस राजमौली तेलुगू फिल्मों के बादशाह माने जाते हैं, लेकिन बाहुबली बना कर उन्होंने […]

नरेंद्र झा

फिल्म अभिनेता

क्षेत्रीय भाषाओं के सिनेमा का दौर पहले से ही आ चुका है. ‘सैराट’ इसका बेहतरीन उदाहरण है. भाषायी सिनेमा के निर्देशक कंटेंट, स्टाइल और पहुंच, हर तरीके से हिंदी फिल्मों के निर्देशकों को चुनौती दे रहे हैं. एसएस राजमौली तेलुगू फिल्मों के बादशाह माने जाते हैं, लेकिन बाहुबली बना कर उन्होंने मुख्यधारा के सिनेमा में अपने हुनर का झंडा गाड़ दिया.

बंगाली फिल्मों के निर्देशक, जिनकी फिल्म बेगम जान अभी थिएटर में चल रही है, स्वयं में एक मिसाल हैं. अब वह वक्त चला गया, जब क्षेत्रीय फिल्मों को छोटा समझा जाता था. इन्हें अच्छे प्रोड्यूसर और डायरेक्टर नहीं मिलते थे. प्रियंका चोपड़ा ने एक मराठी फिल्म प्रोड्यूस की, जिसे इस बार नेशनल अवॉर्ड मिला.

हाल ही में बोधिसत्व फिल्म फेस्टिवल पटना में आयोजित किया गया. इसमें श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार एक मलयालम फिल्म को मिला. इच्छा है कि केरल में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में मैथिली फिल्म को श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिले. नितिन नीरा चंद्रा ने मैथिली में ‘मिथिला मखान’ फिल्म बनायी, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया. सीधी सी बात है कि जिसने मैथिली भाषा को चुना, उस भाषा ने भी उसे सम्मान दिलवाया. नये-पुराने निर्देशकों से यह गुजारिश है कि वे मैथिली में फिल्म बनायें. इस सोच के साथ बनायें कि एक ऐसा प्रोडक्ट बना रहे हैं, जिसकी तुलना प्रोडक्शन वैल्यू से लेकर एक्टर और कंटेंट की तुलना देश में बन रही श्रेष्ठ फिल्मों से होगी.

थिंक बिग, लेकिन साथ में थिंक स्मार्ट. वितरक से शुरू में ही एग्रीमेंट हो जाना चाहिए, ताकि फिल्म को सही तरीके से रिलीज किया जा सके. फिल्म के कंटेंट की गुणवत्ता और उसकी काॅमर्शियल कामयाबी में एक संतुलन होना चाहिए.

यदि अच्छी स्क्रिप्ट आती है, तो मैं खुशी से उसमें काम करूंगा. लेकिन, घिसे-पिटे स्क्रिप्ट को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए. यदि ऐसी फिल्म बनती है, तो लोगों के बीच मैथिली फिल्म का एक गलत उदाहरण जायेगा और उस छाप को मिटाने में काफी वक्त लगेगा.

माता जानकीजी और विद्यापतिजी के अलावा आजकल की जिंदगी पर फिल्म बनाने की जरूरत है. मिथिला समाज या उस क्षेत्र के आम जीवन की छोटी-छोटी बातों को दर्शाया जाना चाहिए.

हमको कौन-सी चीजें पीछे खींच रही हैं? हमारी मजबूती क्या है? ऐसा अनोखा है मिथिला प्रदेश कि उसकी गली-गली में कहानियां हैं. मैं निवेशकों, लेखकों और निर्देशकों को आमंत्रित करता हूं मिथिला में, कृपया हमारा आतिथ्य स्वीकार कीजिये. राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर एक ऐसा माहौल तैयार हो, जिससे मिथिला की खुशबू पूरी दुनिया में फैल सके.

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