अंकिता अग्रवाल
शोधार्थी
साल 2009 में जब आधार की शुरुआत हुई थी, तो जनता को बताया गया था कि यह भारत के निवासियों को एक पहचान देने की पहल है. यह भी कहा गया था कि आधार बिलकुल स्वैच्छिक है. प्रचार-प्रसार ऐसा हुआ कि लोगों को लगने लगा कि आधार संख्या पाकर वे कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे. लेकिन, पिछले आठ वर्षों ने इन दावों के खोखलेपन को उजागर कर दिया है.
एक प्रतिशत से कम ऐसे आधार संख्याधारी हैं, जिनका पहले से कोई अन्य पहचान पत्र नहीं था. नयी सुविधाओं से जुड़ना तो दूर की बात, आधार के चलते कई लोगों को अपने मौजूदा अधिकार ही नहीं मिल रहे हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कई बार यह आदेश दिया है कि आधार न होने के कारण किसी को कोई भी सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता, पर मार्च 2017 तक करीब 40 योजनाओं के लिए आधार अनिवार्य हो गया था. यह संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
सरकार का कहना है कि सुविधाओं को आधार से जोड़ कर फर्जी लाभार्थियों को हटाया जा सकता है, जिससे योजनाओं पर हो रहे खर्च को कम किया जा सकता है.
पर, राजस्थान में तो हजारों ऐसे बुजुर्गों, विधवाओं व विकलांगों को मृत घोषित करके पेंशन सूची से हटा दिया गया, जिनका बैंक खाता या आधार संख्या नहीं थी, या जिनकी आधार संख्या को उनकी अन्य जानकारी के साथ जोड़ने में कोई गलती हुई थी. आधार से जानकारी का जुड़ना सुविधा मिलने की कोई गारंटी नहीं देता. झारखंड में राशन कार्ड धारियों को प्वॉइंट ऑफ सेल मशीन पर अपना अंगूठा लगा कर अपनी पहचान प्रमाणित करनी होती है. कई लोगों के अंगूठे मशीन द्वारा नहीं पढ़े जाते.
बिजली या इंटरनेट के अभाव में यह मशीन काम नहीं करती. नियमानुसार, जिन लाभुकों को यह समस्या होती है, वे अपने मोबाइल पर वन टाइम पासवर्ड की मांग कर राशन उठा सकते हैं. परंतु, कई लाभुकों को इसके बारे में पता नहीं है. जिनके पास मोबाइल नहीं है, उनके लिए यह उपाय काम नहीं करता या राशन डीलर इस उपाय का फायदा उठा रहा है. अंगूठा पहचानने पर भी कभी-कभी मशीन के अनुसार कार्ड धारी अनाज का हकदार नहीं होता.
पात्र लाभार्थियों को सुविधाएं न मिलने से हुई वित्तीय बचत को भी सरकार अपनी उपलब्धि मान रही है. यह याद रखना जरूरी है कि आधार कई गंभीर गड़बड़ियों से कोई बचाव नहीं करता, जैसे जन वितरण प्रणाली में खराब गुणवत्ता का चावल देना, मध्याह्न भोजन में बच्चों को नियमित रूप से भोजन न देना या मातृत्व लाभ योजना में बिचौलिये द्वारा कुछ राशि रख लेना.
पिछले वर्ष तक आधार का बिना किसी कानूनी ढांचे के विस्तार हो रहा था. मार्च 2017 में केंद्र सरकार ने लोकसभा में आधार पर एक विधेयक को एक धन विधेयक के रूप में पेश किया, जिससे इसे राज्यसभा द्वारा पारित करने की आवश्यकता न पड़े, जहां भाजपा का बहुमत नहीं है. धन विधेयक केवल करों व सरकार की निधियों के खर्च से संबंधित होने चाहिए, जबकि आधार का दायरा इससे अधिक है.
अगर आधार वास्तव में इतना लाभदायक है, तो केंद्र सरकार ने कायदे से आधार के विधेयक पर राज्यसभा में विपक्षी दलों द्वारा चर्चा क्यों नहीं होने दी? आधार का कानून सरकार को व्यापक शक्तियां देता है. जैसे, सरकार निजी कंपनियों को आधार नंबर व उसके साथ जुड़ी जानकारी (जैसे कि लोगों के नाम, उम्र, लिंग, पता, आदि) बेच सकती है. सरकार अगर चाहे, तो लोगों के आधार नंबर रद्द भी कर सकती है. परंतु, इस कानून में जनता की शिकायतों के निवारण के लिए कोई सुदृढ़ प्रणाली नहीं है. जैसे, अगर किसी व्यक्ति को अपनी आधार संख्या से जुड़ी जानकारी में कोई बदलाव करवाना है, तो वह केवल इसके लिए आग्रह कर सकता है. यह सुधार एक अधिकार नहीं है.
सरकार आधार को लोगों के जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ रही है; बैंक खाता, मोबाइल फोन, रेल यात्रा, आदि. ऐसा करने से उसके पास लोगों की जानकारी का एक विशाल केंद्रीकृत भंडार बन रहा है, जिससे वह उनकी गतिविधियों पर निगरानी रख सकेगी- किसने कब क्या खरीदा, किसने किससे क्या बात की, कौन कहां से कहां गया. एक ऐसी सरकार, जो उससे सवाल पूछने या भिन्न राय रखनेवाले लोगों को परेशान करने, उन पर झूठे आरोप थोपने या उन्हें जेल में कैद करने में दो बार नहीं सोचती, उसके द्वारा आधार का दुरुपयोग एक वास्तविक भय है.
पिछले ही महीने, सरकार ने एक ऐसे पत्रकार पर प्राथमिकी दर्ज कर दी, जो यह बता रहा था कि एक ही बायोमेट्रिक (उंगलियों के निशान, आंख की पुतली आदि) से दो अलग आधार संख्याओं के लिए नामांकन संभव है. आधार न केवल सामाजिक सुरक्षा, अपने जीवन में तांक-झांक से बचने व असहमति के अधिकारों पर प्रहार है, बल्कि यह हमारी स्वतंत्रता व लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक भारी हमला भी है.