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दुर्भाग्यपूर्ण चुनावी घटनाएं

रविवार को विभिन्न राज्यों में हुए लोकसभा और विधानसभाओं के उपचुनाव के दौरान जो घटनाएं हुईं, वह लोकतंत्र और चुनावी प्रबंधन के लिए बेहद चिंताजनक हैं. श्रीनगर में जहां सिर्फ सात फीसदी के आसपास मत पड़ सके, वहीं हिंसा में आठ लोग मारे गये, 200 नागरिक और 100 से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हुए. अनंतनाग सीट […]

रविवार को विभिन्न राज्यों में हुए लोकसभा और विधानसभाओं के उपचुनाव के दौरान जो घटनाएं हुईं, वह लोकतंत्र और चुनावी प्रबंधन के लिए बेहद चिंताजनक हैं. श्रीनगर में जहां सिर्फ सात फीसदी के आसपास मत पड़ सके, वहीं हिंसा में आठ लोग मारे गये, 200 नागरिक और 100 से अधिक सुरक्षाकर्मी घायल हुए.
अनंतनाग सीट पर दुबारा चुनाव की मांग खुद पीडीपी ने की है जिसकी जम्मू-कश्मीर में सरकार है. चेन्नई के आरके नगर विधानसभा का चुनाव सत्तारुढ़ दल के नेताओं के द्वारा बड़े पैमाने पर अपनाये गये अनैतिक और भ्रष्ट तरीकों के कारण रद्द कर देना पड़ा. कुछ जगहों पर मतदान का प्रतिशत कम रहा, तो कुछ जगहों पर मार-पीट और धांधली की वारदातें भी हुईं. राजस्थान में एक केंद्र पर मतदाताओं ने वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की शिकायत भी की है.
देश के चुनावी इतिहास में ऐसी बातें नयी नहीं हैं, पर बीते सालों में चुनावी प्रक्रिया बेहतर होने के बावजूद ये घटनाएं यही इंगित करती हैं कि चुनाव को साफ-सुथरा बनाने तथा मतदाताओं को जागरुक करने की दिशा में निर्वाचन आयोग, सरकारों और राजनीतिक दलों को अभी बहुत कुछ करना बाकी है. इस कोशिश में नागरिकों को भी योगदान करना होगा. श्रीनगर के इतिहास में कभी इतना कम मतदान नहीं हुआ. रविवार की हिंसा ने राज्य और केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है. अनंतनाग में पुनर्मतदान की मांग करनेवाली पीडीपी और सूबे की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को भी आत्ममंथन की जरूरत है.
पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बल तैनात करने और प्रतिरोध के माहौल से नरमी से निपटने में हुई चूक चिंताजनक है. मौजूदा हालात बेहतर हों, इसकी जवाबदेही सरकारों पर है. आयोग और प्रशासन मतदाताओं में भरोसा नहीं बहाल कर सका कि वे सुरक्षित वातावरण में अपने मताधिकार का प्रयोग करें. अलगाववादियों ने भी अपने निहित स्वार्थ साधने के लिए इस मौके का फायदा उठाया. पर अन्य जगहों में तो हालात सामान्य थे, फिर वहां कम वोटिंग होने, हिंसा होने तथा भ्रष्ट तरीकों से मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिशों की जवाबदेही किनकी है?
यह एक अवसर है, जब हम जरूरी चुनाव सुधारों को लागू करने के लिए दबाव बनायें. लोकतंत्र में सरकारों और राजनीतिक दलों का अहम स्थान है. उन्हें यह समझना होगा कि चुनावी जीत-हार के समीकरणों से लोकतंत्र का भविष्य कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. चंद नेताओं के स्वार्थी रवैये के हाथों इस देश के आनेवाले कल को बंधक बना कर नहीं रखा जा सकता है.

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