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प्रकाशोत्सव की सफलता
पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक आस्था को टिके रहने हेतु वैचारिक आधार की आवश्यकता होती है और विचार को सिर्फ सांकेतिकता से ऊपर उठने के लिए सांगठनिक सख्ती की. आप जिस चीज में यकीन करते हैं, उसके लिए काम करने का निश्चय न होने पर विचारों का अवमूल्यन केवल वाकपटुता में होकर रह […]
पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
आस्था को टिके रहने हेतु वैचारिक आधार की आवश्यकता होती है और विचार को सिर्फ सांकेतिकता से ऊपर उठने के लिए सांगठनिक सख्ती की. आप जिस चीज में यकीन करते हैं, उसके लिए काम करने का निश्चय न होने पर विचारों का अवमूल्यन केवल वाकपटुता में होकर रह जाता है और वाकपटुता चाहे कितनी भी सम्मोहक हो, अंततः उसकी असलियत सामने आ ही जाती है. वह टिक नहीं सकती, क्योंकि लोग शब्दों को परिणामों से, वायदों को नतीजों से तथा तेवरों को वैसे ठोस प्रयासों से तौला करते हैं, जिनकी निष्ठा मापी जा सके.
उक्त चिंतन गुरु गोबिंद सिंह की 350वीं वर्षगांठ पर पटना में हाल ही में संपन्न हुए प्रकाश उत्सव की पृष्ठभूमि में उपजा है. यहीं के पटना साहिब में 22 दिसंबर, 1666 के दिन सिखों के इस दसवें गुरु का जन्म हुआ था, जिसने नौ वर्ष की नाजुक उम्र में सिखों का नेतृत्व किया और जो एक ही साथ कवि, दार्शनिक, योद्धा तथा आध्यात्मिक ज्योतिपुंज था. गुरुजन्म के इस उत्सव के आयोजन हेतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार सरकार ने महीनों की ऐसी सतर्क तैयारी की कि 22 दिसंबर, 2016 से लेकर 7 जनवरी, 2017 तक पटना ‘लघु पंजाब’ बन उठा.
यह कार्य विराट से कुछ भी कम न था. विदेश के हजारों सिखों समेत भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालुओं का आगमन अपेक्षित था.सिलसिलेवार तथा बारीक योजना ही इस आयोजन को सफल बना सकती थी. टेंटों की तीन विशाल बस्तियां बसायी गयीं. खाद्य सामग्रियों और परिवहन की विस्तृत व्यवस्था हुई.
सैकड़ों सचल शौचालय स्थापित हुए, पानी-बिजली के इंतजाम किये गये, बिजली के नये खंभे लगा कर उन पर नये तार दौड़ाये गये. सड़कें चौड़ी की गयीं, एक नया फ्लाइओवर बना, सड़कों पर सौर ऊर्जा के सैकड़ों बल्ब लगा कर उन्हें रोशन किया गया. पूरे शहर को साफ-सुथरा कर निखारा गया, सुरक्षा के सख्त इंतजाम किये गये.
श्रद्धालुओं के लिए दिन-ब-दिन के कार्यक्रम तय हुए, दर्जनों पर्यटक सूचना केंद्र खुले. बिहार संग्रहालय में दसवें गुरु से संबद्ध ऐतिहासिक चित्र, सूक्ष्म चित्र, हुक्मनामे, सिक्के, किलों की तस्वीरें तथा दुर्लभ कलाकृतियां प्रदर्शित की गयीं.
यहां यह प्रदर्शनी 31 जनवरी तक खुली रहेगी और उसके बाद इसे बिहार के विभिन्न संग्रहालयों में घुमाया जायेगा. शहर की हृदयस्थली गांधी मैदान में पटना साहिब के गुरुद्वारे की विशाल अनुकृति खड़ी हुई. मुख्यमंत्री द्वारा दैनंदिन आधार पर इस सभी प्रबंधों का पर्यवेक्षण किया जाता. उत्सव की तैयारी का शायद ही कोई दिन ऐसा रहा, जब उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर कार्यों का निरीक्षण न किया अथवा योजना तथा तैयारी में अपना वक्त न दिया. श्रद्धालुओं को सर्दी से बचाने हेतु हीटरों की व्यवस्था जैसी बारीकियां उनकी निरंतर चौकस नजरों की नजीर बन गयीं.
नीतीश कुमार स्वयं सिख तो नहीं, पर उनके लिए केंद्रीय मुद्दा यह था कि भारत के शानदार बहुलवाद का रूपाकार तय करनेवाले बहुधार्मिक तानेबाने को सम्मान दिया जाये. पटना से सौ किमी की परिधि के अंदर भारत के लगभग सभी प्रमुख धर्मों के कुछ अत्यंत मुख्य स्थल विद्यमान हैं.
निकट ही बसी बिहारशरीफ की सूफी स्थली अहमियत में सिर्फ अजमेरशरीफ से पीछे है. वहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित जैनियों के पवित्र स्थलों में एक पावापुरी है, जहां महावीर ने परिनिर्वाण प्राप्त किया. बौद्धों के लिए सर्वाधिक श्रद्धास्पद बोधगया पावापुरी के सन्निकट ही है. और फिर बोधगया के पड़ोस में ही बसा गया पितरों को श्रद्धांजलि देने के इच्छुक हिंदुओं के लिए एक अपरिहार्य तीर्थस्थल है. इस तरह, भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का बिहार वह लघुरूप है, जिसका संरक्षण नीतीश कुमार के लिए आस्था की वस्तु है.
प्रकाश पर्व के सफल आयोजन के लिए पूरे विश्व से प्रशंसा उमड़ पड़ी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जम कर तारीफ की. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री को ‘असली सरदार’ कहा, तो प्रकाश सिंह बादल तथा अरविंद केजरीवाल के उद्गार भी अत्यंत उदार थे. महत्वपूर्ण बात यह थी कि सराहना के इन स्वरों ने दलों की दीवारें नहीं देखीं. इतनी ही सुखद उन लाखों तीर्थयात्रियों द्वारा व्यक्त भावनाएं भी थीं, जिनमें एक ने मानो सबकी बातें समेटते हुए कहा: ‘बिहारवाले, तुसी ग्रेट हो, तैनू दिलविच बैठ गये.’
और अंत में, प्रकाश पर्व विचार, आस्था तथा प्रशासन के बीच एक सघन संबंध का निदर्शन था.इस उत्सव के आयोजन में सिख धर्म के प्रति श्रद्धा तब तक प्रदर्शित नहीं की जा सकती थी, जब तक सिखों के इस अत्यंत महत्वपूर्ण मौके को सफल, संतोषप्रद और सुनियोजित बनाने के लिए उसे आवश्यक प्रयास का साथ नहीं मिलता. इस कोशिश को सामने की बड़ी तस्वीर से आगे आयोजन के सभी पहलुओं के सूक्ष्म विस्तार तक जाने के विजन की दरकार थी और गुरु गोबिंद सिंह महाराज जी के लिए बिहार में व्याप्त श्रद्धा ने योजना तथा तैयारी के घंटों के बाद अथक घंटों को उनके प्रति श्रद्धांजलि का स्वरूप दे डाला.
(अनुवाद : विजय नंदन)
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