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भारत की क्यों नहीं मानता मूडीज?

प्रमोद जोशी वरिष्ठ पत्रकार मोदी सरकार के ढाई साल पिछलेमहीने पूरे हो गये. अब ढाई साल बचे हैं. सन् 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लौटाने की कोशिशें चल रहीं हैं. यूपीए सरकार मनरेगा, शिक्षा के अधिकार और खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रमों के सहारे दस साल चल […]

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
मोदी सरकार के ढाई साल पिछलेमहीने पूरे हो गये. अब ढाई साल बचे हैं. सन् 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लौटाने की कोशिशें चल रहीं हैं. यूपीए सरकार मनरेगा, शिक्षा के अधिकार और खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रमों के सहारे दस साल चल गयी, पर भ्रष्टाचार के आरोप उसे ले डूबे. मोदी सरकार ‘विकास’ के नाम पर सत्ता में आयी है. अब उसका मध्यांतर है. पूछा जा सकता है कि विकास की स्थिति क्या है?
पिछले ढाई साल में सरकार की उपलब्धियों के रूप में ‘स्वच्छ भारत’ और ‘बेटी बचाओ’ जैसे कार्यक्रमों को विकास नहीं कहा जा सकता. ‘मेक इन इंडिया’ के परिणाम आने में कुछ समय लगेगा. इनमें से ज्यादातर योजनाएं रक्षा उद्योगों से जुड़ी हैं. स्मार्ट सिटी जैसे कार्यक्रम भविष्योन्मुखी हैं, पर वे लोगों के रोजगार की गारंटी नहीं देते. हमें हर साल डेढ़ करोड़ लोगों को नये रोजगार देने हैं. कैसे देंगे?
अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पूंजी निवेश बड़ी समस्या है. भारत सरकार ने राजमार्ग निर्माण और रेलवे पर निवेश के साथ काम शुरू किया है. हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में अप्रैल, 2000 से सितंबर, 2016 तक 300 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) आया है. औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में देश में 21.62 अरब डॉलर का एफडीआइ आया है.
औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े अभी उत्साहवर्धक नहीं हैं. अक्तूबर की आइआइपी ग्रोथ ने काफी निराश किया है, जो नकारात्मक (-1.9 फीसदी) हो गयी. सितंबर में वह 0.7 फीसदी थी.
साल दर साल आधार पर अप्रैल-अक्तूबर में आइआइपी ग्रोथ 4.8 फीसदी से घट कर -0.3 फीसदी हो गयी. ऊपर से नवंबर में हुई नोटबंदी इसमें और गिरावट लायेगी.
मोदी सरकार देश के भीतर और बाहर अपनी छवि को लेकर संवेदनशील है. वह रेटिंग एजेंसियों से बेहतर रेटिंग की मांग कर रही है, ताकि विदेशी निवेश बढ़े. सरकार ने अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज से बाकायदा लॉबीइंग की. पर मूडीज ने रेटिंग नहीं बढ़ायी. उसने भारत पर चढ़े विदेशी कर्ज और बैंकों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए अपग्रेड से इनकार कर दिया है.
साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी ने निवेश बढ़ाने, मुद्रास्फीति की दर को नीचे रखने और चालू खाते व राजस्व घाटे को कम करने के लिए कदम उठाये हैं. लेकिन, दुनिया की तीन बड़ी वैश्विक रेटिंग एजेंसियां अपग्रेड करने को तैयार नहीं हैं. ये तीन एजेंसियां हैं स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, मूडीज और फिच. ये तीनों अमेरिका की हैं.
सन् 2008 के वैश्विक वित्तीय क्रैश का अनुमान ये एजेंसियां नहीं लगा पायी थीं. इसके लिए इनकी काफी आलोचना हुई थी. अलबत्ता वैश्विक वित्तीय बाजार इनकी साख पर चलता है. ब्रिक्स देशों द्वारा स्थापित नव विकास बैंक एनडीबी के अध्यक्ष केवी कामथ ने कहा था कि ब्रिक्स समूह की मदद से एक नयी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी खड़ी करने की बहुत जरूरत है, क्योंकि मौजूदा तीन बड़ी रेटिंग एजेंसियां जो पद्धतियां अपनाती हैं, वे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि में अड़चन बन रही हैं.
बहरहाल भारत सरकार के मनुहार के बावजूद किसी ने भी हमारी रेटिंग को अपग्रेड नहीं किया. अक्तूबर के महीने में सरकार और मूडीज के बीच खतो-किताबत हुई. सरकार ने कहा कि भारत के कर्ज में लगातार कमी हो रही है. आप देश के विकास को नजरंदाज कर रहे हैं. मूडीज ने कहा कि स्थिति उतनी अच्छी नहीं है, जितनी सरकार बता रही है. उसके अनुसार देश के बैंकों के 136 अरब डॉलर कर्ज के रूप में डूबे हुए हैं.
पिछले दो साल से भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी वह अब सबसे आगे आ गया है. पर, ये एजेंसियां अभी आश्वस्त नहीं हैं. भारत का सकल राजस्व जीडीपी का 21 फीसदी है, जो मूडीज के बीएए-रेटेड देशों के औसत राजस्व 27.1 फीसदी से कम है. भारत की रेटिंग बीएए3 है. इस रेटिंग के कारण भारत को बॉन्ड निवेशकों का लाभ नहीं मिल पाता है. यदि इससे एक ऊपर की रेटिंग मिले, तो उसे पूंजी प्राप्त करने में आसानी हो.
सितंबर में मूडीज के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की थी. उसके उनके सूत्रों ने मीडिया को बताया था कि भारत का रेटिंग अपग्रेड फिलहाल एक-दो साल बाद ही होगा. स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की भी यही राय है. भारत सरकार ने जापान और पुर्तगाल का उदाहरण दिया, जिन पर उनकी अर्थव्यवस्था का दोगुना उधार है. उनकी रेटिंग्स भारत से बेहतर हैं. सन् 2004-05 में भारत पर कर्ज जीडीपी का 79.5 फीसदी था, जो अब 66.7 फीसदी हो चुका है.
भारत सरकार का यह भी कहना है कि ये देश विकास की जिस अवस्था में हैं, भारत अभी उस पर नहीं है, फिर भी हमारे लिए ये मानक अपनाये जा रहे हैं, जबकि हमने अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाया है. मूडीज ने पिछला अपग्रेड 2004 में किया था, तब आर्थिक संवृद्धि और विदेशी मुद्रा भंडार को आधार बनाया गया था. आज दोनों की स्थिति बेहतर है.
हाल में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने कहा था कि भारत सरकार आर्थिक सुधारों में तेजी लाये और कर्ज को जीडीपी के 60 फीसदी के नीचे ले आये, तो संभावनाएं बन सकती हैं. इस संस्था ने देश में जीएसटी लागू होने की प्रक्रिया को सकारात्मक माना है. वह चाहती है कि देश में व्यापारिक माहौल बने, श्रमिकों से जुड़े कानूनों में सुधार हो और ऊर्जा सेक्टर में सुधार लाये जायें.
फिलहाल देखना यह है कि नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था पर कैसे प्रभाव होंगे. क्या कर राजस्व बढ़ेगा, जिसकी आशा की जा रही है? देश में लगभग सवा करोड़ लोग ही आयकर देते हैं, जबकि अनुमानत: इसके दोगुने लोगों को आयकर देना चाहिए. आधे इसके दायरे से बाहर हैं.
इस साल बेहतर मॉनसून का प्रभाव भी अगले कुछ महीनों में स्पष्ट होगा. इस साल अनुमानित राजस्व संग्रह का लक्ष्य पूरा हुआ या नहीं, यह भी इस साल की बजट से पहले की आर्थिक समीक्षा से स्पष्ट होगा. उससे यह भी पता लगेगा कि राजकोषीय घाटे में कितनी कमी आयी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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