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पाक में हिंदू दलितों की दु:स्थिति

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा भारत में प्रतिदिन देश के किसी न किसी क्षेत्र में दलितों के प्रति अन्याय, अत्याचार, भेदभाव की घटनाएं अब समाचार नहीं बनतीं. लेकिन, उमड़ता-घुमड़ता आक्रोश विद्राेही स्वरों के रूप में कहीं-न-कहीं प्रकट होता है, रास्ता बनाता है, आशा के दीये भी जलाता है. बाबा साहेब आंबेडकर यदि वर्तमान युग के […]

तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
भारत में प्रतिदिन देश के किसी न किसी क्षेत्र में दलितों के प्रति अन्याय, अत्याचार, भेदभाव की घटनाएं अब समाचार नहीं बनतीं. लेकिन, उमड़ता-घुमड़ता आक्रोश विद्राेही स्वरों के रूप में कहीं-न-कहीं प्रकट होता है, रास्ता बनाता है, आशा के दीये भी जलाता है. बाबा साहेब आंबेडकर यदि वर्तमान युग के नव-देव के नाते प्रतिष्ठित हुए, तो अन्य अनेक संगठन अपने स्तर पर सामाजिक समरसता के लिए सक्रिय रहते हैं.
लेकिन, क्या हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान में हिंदू दलितों की स्थिति के बारे में कभी दिलचस्पी दिखाते हैं? भारत में एक अजीब सेकुलर वर्ग है, जिसे हर उस बात से घृणा है, जिसके साथ हिंदू शब्द जुड़ा हुआ होता है. इसलिए फिलिस्तीन के मुसलमान, सीरिया के शरणार्थी, अलेप्पो पर बमबारी, उनके लिए महत्वपूर्ण विषय तो रहते हैं, जिन पर चर्चा होती है, बहसें और झगड़े होते हैं, विश्वविद्यालयों के विश्व-दृष्टि वाले होनहार नेता उस पर सेमिनार करते हैं, लेकिन पाकिस्तान के हिंदुओं पर ही जब चर्चा नहीं होती, तो वहां रह रहे हिंदू दलितों के बारे में कौन सोचेगा?
पाकिस्तान में एक अंदाजे से देखें, (स्वयं पाकिस्तानी स्रोतों से) तो पांच से आठ लाख अनुसूचित जाति के लोग हैं. वे पहले लाहौर में रावी पार शाहदरा में रहते थे, लेकिन अब उनमें से ज्यादातर लोग ईसाई हो गये हैं और उन्हें अब मसीह कहा जाता है. अब हिंदू दलित कराची, मीरपुर खास जैसे इलाकों में घनीभूत हैं.
अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान मैं लाहौर में माल रोड पर सफाई कर रहे एक बाल्मीकि मसीह- पीटर से मिला था. हम शालामार बाग घूम कर माल रोड आये, तो उनको देख कर बात करने लगे.
यह पता लगते ही कि हम हिंदुस्तान से हैं, वह झाड़ू लगाना छोड़ बात करने लगा. बोला, हम जो भी रहे, चाहे ईसाई बनें या हिंदू रहे, पर हमारी हालत सुधरनेवाली नहीं है. उसने पाकिस्तानी नेताओं को जी भर कर गालियां दीं. मैंने पूछा- आपको डर नहीं लगता? वह बोला- अब इससे ज्यादा जहालत की जिंदगी और क्या देंगे. मुझे कोई डर नहीं.
कराची में क्लिफ्टन के पास एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो तनिक नीचे उतर कर गुफानुमा है. सागर तट पर एक प्राचीन अंतिम संसार मंदिर है, जहां अक्सर बाल्मीकि मिल जाते हैं. वहां आसपास सफाई करते, झाड़ू लगाते हिंदू दलित माताएं और बहनें दिख जाती हैं. उनमें से मैं एक बहन से बात करने गया, ताे वह रो पड़ीं. वहां वे बिंदी नहीं लगा सकतीं, मंगलसूत्र दिखाना खतरे को न्यौता देना है. शादी-ब्याह भी बस जो पुराने पंडित बचे हैं, किसी तरह बिना धूम-धड़ाके के करा देते हैं. पर, उनकी स्थिति सिर्फ यही नहीं है कि कट्टर तालिबान किस्म के तत्व उनको जीने नहीं देते. पाकिस्तान में जो तथाकथित बड़ी जाति के समृद्ध एवं तुलना में प्रभाावशाली हिंदू हैं, वे भी उनको बहुत तुच्छता एवं भेदभाव की दृष्टि से देखते हैं.
पाकिस्तान में प्राय: मध्यम वर्ग नहीं है- या तो बहुत गरीब वर्ग है या फिर उच्च मध्यम एवं अति धनी वर्ग है. सवर्ण हिंदू समृद्ध वर्ग में आते हैं. वहां आजादी के बाद सुधारवादी, सामाजिक समरसता के योद्धा-कार्यकर्ता, समाज में ऊंच-नीच के विरुद्ध बोलनेवाले, आधुनिक दृष्टि रखनेवाले साधु या आध्यात्मिक प्रवचनकार तो कभी जा ही नहीं पाये. वहां के हिंदू समाज के लिए सामाजिक सुधारों की घड़ी 14-15 अगस्त, 1947 को ठहर गयी, और तब से वहीं रुकी रही है. जब दलितों के लिए सबसे बड़ा सवाल अपनी जिंदगी बचाना बन जाये, तो फिर वे सवर्ण भेदभाव, जातिवादी अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत और अवकाश कहां से जुटा पायेंगे?
यह कैसी विडंबना है कि जिस समाज में चारों ओर इसलामी आतंकियों की खूंखार निगाहों से स्वयं को बचाने के लिए जाति-वर्ण-वर्ग की तमाम दीवारें तोड़ कर अद्भुत एकता का दर्शन होना चाहिए था और तुलना में बेहतर, समृद्ध जीवन जीनेवाले सवर्ण हिंदुओं को अपने ही हिंदू दलित भाई-बहनों के विकास और संरक्षण के लिए आगे आना चाहिए था, उसी समाज में बद्धमूल जातिगत भेदभाव बना रहा.
पाकिस्तानी हिंदू दलित धन्य है और हिंदू धर्म के प्रति उनकी निष्ठा वस्तुत: वंदनीय और पूजनीय है कि दोनों ओर से भीषण आहत होने के बावजूद उन्होंने हिंदू धर्म नहीं छोड़ा. क्या यह संभव है कि भारत से अनूसचित जाति के प्रभावशाली नेता पाकिस्तान जाकर वहां के दलित हिंदुओं से संपर्क करें, उन्हें हिम्मत बंधायें तथा उनमें समरसता का आंबेडकर मंत्र फैलायें.

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