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संतुलित समाधान जरूरी
न्यायाधीशों की नियुक्ति के मसले पर सरकार और सर्वो्च न्यायालय के बीच खींचतान जारी है. संविधान दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में तो प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर के साथ भावी चीफ जस्टिस जगजीत सिह खेहर दोनों ही सरकार की भूमिका को लेकर खासे मुखर दिखे. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और अटॉर्नी जनरल मुकुल […]
न्यायाधीशों की नियुक्ति के मसले पर सरकार और सर्वो्च न्यायालय के बीच खींचतान जारी है. संविधान दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में तो प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर के साथ भावी चीफ जस्टिस जगजीत सिह खेहर दोनों ही सरकार की भूमिका को लेकर खासे मुखर दिखे. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी न्यापालिका की सीमा का हवाला दे डाला. न्यायपालिका को लग रहा है कि उसकी सक्रियता समय की मांग है और सरकार उसकी इस सक्रियता को अवरुद्ध करने की कोशिश कर रही है, जबकि सरकार की चिंता यह है कि न्यायपालिका सक्रिय भूमिका निर्वाह के उत्साह में विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दाखिल हो रही है.
एक-दूसरे की समझ और दलीलों के बीच कोई विवेकपूर्ण निर्णय की स्थिति तो क्या बनेगी, आपसी टकराव जरूर बढ़ता जा रहा है. और, इस टकराव की अभिव्यक्ति सार्वजनिक तौर पर भी आये दिन हो रही है. इसलिए, प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद के सामने यह कहते हैं कि सरकार के असहयोग के कारण न्यायाधीशीशों के अभाव में कोर्टरूम खाली पड़े हैं, तो वे भी कहीं-न-कहीं इस विवाद की एकपक्षीय व्याख्या ही कर रहे होते हैं.
ठीक उसी तरह जैसे कानून मंत्री न्यायपालिका से सीधे टकराव न लेने का विवेक तो जरूर दिखाते हैं, पर न्याय में देरी की वजहों में जाने के बजाय यह कहकर अपनी सरकार का पीठ थपथपाना ज्यादा मुनासिब समझते हैं कि इस साल 120 जजों की नियुक्तियां की गई हैं, जो 2013 में हुई 121 नियुक्तियों के बाद सबसे अधिक है. इस बीच न्यायपालिका का यह दावा कि वह लोगों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है, और सरकार की तरफ से यह नसीहत कि सबको अपनी लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना चाहिए, निकट भविष्य में विवाद के निपटारे के बजाय उसके और तूल पकड़ने की आशंका को जन्म देता है.
बेहतर तो यह होता है कि जिस संविधान का गुणगान समय-समय पर सरकार और सर्वोच्च न्यायालय दोनों करते रहते हैं, उसी संविधान के तहत व्यक्त इस भावना का सम्मान दोनों पक्षों को भी करना चाहिए कि देश में न्याय और कानून प्रशासन की आदर्श स्थिति तब तक नहीं कायम हो सकती, जब तक सरकार या न्यायपालिका में से किसी भी पक्ष की तरफ से महज अपने मुताबिक चीजें तय करने की कोशिश की जायेगी. उम्मीद है कि इस तनातनी का नकारात्मक असर पड़ने से पहले सरकार और अदालत अपने रवैये में नरमी लाते हुए विवादों का हल निकाल लेंगे.
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