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सरकारी राजस्व का सदुपयोग हो

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री पांच सौ तथा हजार रुपये के नोट बंद करके सरकार ने साहसिक कदम उठाया है. आज देश में बड़े पैमाने पर नकद में धंधा हो रहा है, जिससे टैक्स से बचा जा रहा है. मुझे कभी-कभी हजारों पन्ने फोटोकाॅपी कराने पड़ते हैं. मेरे फोटोकाॅपियर मित्र इसकी रसीद नहीं देते हैं, चूंकि […]

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री

पांच सौ तथा हजार रुपये के नोट बंद करके सरकार ने साहसिक कदम उठाया है. आज देश में बड़े पैमाने पर नकद में धंधा हो रहा है, जिससे टैक्स से बचा जा रहा है. मुझे कभी-कभी हजारों पन्ने फोटोकाॅपी कराने पड़ते हैं. मेरे फोटोकाॅपियर मित्र इसकी रसीद नहीं देते हैं, चूंकि वे कागज को नकद में खरीदते हैं.

इस कागज को बनानेवाली फैक्ट्री और बेचनेवाले दुकानदार भी टैक्स नहीं देते हैं. फोटोकाॅपियर मित्र को भी इससे हुई आय पर टैक्स नहीं देना होता है. यदि फोटोकाॅपी का पेमेंट मैं डेबिट कार्ड से करूं, तो यह बिक्री फोटोकाॅपियर के खाते में दिखेगी. इस बिक्री के लिए उन्हें कागज की खरीद भी खाते में दिखानी होगी. क्रमशः दुकानदार एवं फैक्ट्री को भी इस बिक्री को खाते में दिखाना होगा और उस पर टैक्स देना होगा. आज देश का एक वर्ग टैक्स की चोरी कर रहा है, जबकि दूसरा वर्ग टैक्स के बोझ से दबता जा रहा है. इसलिए सरकार के नोटबंदी के कदम का स्वागत किया जाना चाहिए. आनेवाले समय में इन दोनो वर्गों के बीच सामाजिक न्याय स्थापित होगा.

पिछले साठ वर्षों से सरकारों ने ऐसी नीतियां बनायी हैं, जिनसे गरीबी बढ़े. जैसे बड़ी कपड़ा मिलों को प्रोत्साहन देकर जुलाहे के रोजगार को समाप्त कर दिया गया है. स्वरोजगारियों को गरीब बनाने के बाद उनकी गरीबी मिटाने के लिए सरकारी कर्मचारियों की फौज खड़ी की गयी है. जनता भ्रम में रहती है कि उसके बच्चे को मुफ्त शिक्षा मिल रही है, जबकि बच्चे को घटिया शिक्षा देकर आजीवन गरीब बनाये रखा जाता है. गांधीजी ने कहा था कि नंगे को कपड़े नहीं, बल्कि स्वरोजगार दीजिये. परंतु कल्याणकारी कर्मचारियों के सरदारों को यह नागवार लगता है.

नोटबंदी को सार्थक दिशा देने के लिए सरकारी खर्चों का वर्गीकरण ऐसा हो कि सच्चे व झूठे खर्चों का स्पष्ट भेद हो जाये. जरूरी यह है कि सरकारी कर्मचारियों को पोसने के बजाय जनता को पोसा जाये. पिछली एनडीए सरकार के कार्यकाल में विजय केलकर की अध्यक्षता में वित्तीय घाटा नियत्रिंत करने के संबंध में एक कमेटी बनायी गयी थी, जिसने सुझाव दिया था कि सरकारी खर्चों को सार्वजनिक एवं निजी सेवाओं में वर्गीकृत किया जाना चाहिए.

सार्वजनिक सेवाओं को व्यक्ति बाजार से नहीं खरीद सकता है. उन्हें केवल सरकार ही मुहैया करा सकती है, जैसे-नहर, सड़क, बिजली, कानून, न्याय, रक्षा, मुद्रा, दवाओं का छिड़काव, पाठ्यक्रम, परीक्षा लेना, प्रमाणपत्र जारी करना इत्यादि. ये ऐसे मद हैं, जिनका कार्यान्वयन सरकार ही कर सकती है, व्यक्ति विशेष नहीं कर सकता है.

इस प्रकार की सार्वजनिक सुविधाओं पर सरकारी खर्च का सुप्रभाव प्रमाणित है. केएन रेड्डी ने एक अध्ययन में पाया था कि स्वास्थ मंत्रालय द्वारा जन शिक्षा, रिसर्च, लेबोरेटरी, संक्रामक रोगों से बचाव इत्यादि सार्वजनिक सुविधाओं पर किये गये खर्च से जन स्वास्थ में ज्यादा लाभ हुआ है.

इसके विपरीत सरकारी अस्पतालों में उपचार पर किये गये खर्च का जन स्वास्थ पर प्रभाव न्यून रहा. ये निजी खर्च थे. इस अंतर का कारण यह रहा कि लेबोरेटरी, रिसर्च आदि सेवाओं की उपलब्ध्ता से जनता की स्वयं स्वस्थ रहने की इच्छा गहरी होती है, जबकि मुफ्त उपचार उपलब्ध होने से जनता स्वयं अपने स्वास्थ के प्रति लापरवाह हो जाती है, जैसे मुफ्त में पाचक उपलब्ध हो तो व्यक्ति बासी भोजन खाने में परहेज नहीं करता है.

नोटबंदी को सुदिशा देने के लिए सरकारी खर्चों को ‘सार्वजनिक सुविधाओं’ और ‘निजी सुविधाओं’ के वर्गांे में बांटना चाहिए, जैसा केलकर ने सुझाव दिया था. सरकार की पहली जिम्मेवारी उन सुविधाओं को उपलब्ध कराना है, जिन्हें जनता स्वयं हासिल नहीं कर सकती है.

हमें प्रतिदिन बताया जा रहा है कि बुनियादी संरचना में अमुक हजार करोड़ रुपये निवेश की जरूरत है. यदि सरकार इस निवेश को अंजाम दे दे, तो रोजगार स्वयं ही उत्पन्न हो जायेंगे. यदि मलेरिया के लिए तालाब का छिड़काव हो गया, तो ग्रामीणों का स्वास्थ ठीक हो जायेगा, तो सरकारी डॉक्टरों की नियुक्ति का आधार ही नहीं रह जायेगा. यदि परीक्षा व्यवस्था ठीक हो गयी, तो न पढ़ानेवाले सरकारी टीचरों का भंडाफोड़ हो जायेगा.

यूपीए सरकार के कर्णधार सी रंगराजन, मनमोहन सिंह और माेनटेक अहलूवालिया सभी मूल रूप से सरकारी नौकर रहे थे. अपने कुनबे का हित उनकी सर्वाेच्च प्राथमिकता थी. इस दुराग्रह को पूरा करने के लिए नुस्खा निकाला था कि तालाब का छिड़काव एवं परीक्षा में सुधार कम करो और सरकारी डॉक्टरों एवं टीचरों की नियुक्ति अधिक करो.

गांव में सड़क और सिंचाई कमजोर बनाये रखो, जिससे वे रोजगार न कर सकें. फिर उनकी गरीबी दूर करने के लिए सरकारी शिक्षकों और स्वास्थ कर्मियों की फौज खड़ी कर लो और रोजगार गारंटी के कमीशन वसूलने का रास्ता खोल दो.

सरकार के सामने सरकारी खर्चों की गुणवत्ता सुधारना असल चुनौती है. यदि सरकारी राजस्व की बरबादी होती रही, तो नोटबंदी से जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा और पूरा आॅपरेशन जनता के लिए अभिशाप बन जायेगा.

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