पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
यूरोप का पहला देश है स्वीडन, जहां सन् 1661 में पहली बार बैंक नोट जारी किया गया था. उसी स्वीडन ने 2030 तक संपूर्ण रूप से करेंसी नोट मुक्त करने का संकल्प किया है. स्टाॅकहोम रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर निकलस अरविंदसन ने 2013 में एक अध्ययन के जरिये अनुमान लगाया था कि स्वीडन 2030 तक ‘मुद्रामुक्त समाज‘ घोषित हो जायेगा. अरसे से स्वीडन की बसों, मेट्रो में कैश नहीं लिये जाते. सब्जी बेचनेवाले, खोमचे वाले तक स्वाइप मशीन से पेमेंट लेते हैं. स्वीडन में नोट छपना कम हो गया है. स्वीडन के सेंट्रल बैंक ने 2015 में बताया था कि छह साल में वहां की करेंसी ‘स्वीडिश क्रोना’ 106 अरब से घटा कर 80 अरब क्रोना मुद्रित की गयी है.
स्वीडन की जनसंख्या अभी एक करोड़ भी नहीं है. रिक्शा, तांगा स्वीडन में चलता नहीं है. इसलिए कार्ड से पेमेंट की व्यवस्था लागू कराने में सरकार को आसानी हो रही है. स्वीडन में बैंक डकैती, सड़कों पर छीना-झपटी में काफी कमी दिखती है, मगर इलेक्ट्रॉनिक फ्राॅड में जबरदस्त तेजी आयी है.
स्वीडिश न्याय मंत्रालय ने जो दस वर्षों के आंकड़े दिये, उसमें एक लाख चालीस हजार इलेक्ट्रॉनिक फ्राॅड के मामले दर्ज किये गये. जिनके पैसे साइबर अपराधियों ने लूटे, उन्हें वापस दिलाने में वहां की सरकार असहाय साबित हो रही है. स्वीडन में 59 फीसदी लोग कार्ड से पेमेंट कर रहे हैं. इतने ही लोग फ्रांस में, उससे अधिक 61 फीसदी सिंगापुर में, 60 फीसदी नीदरलैंड में, 57 फीसदी कनाडा में, बेल्जियम में 56, और ब्रिटेन में 52 फीसदी लोग कार्ड से भुगतान कर रहे हैं. ये वे देश हैं, जिनकी आबादी साठ लाख से सात करोड़ तक है.
डॉलर के जरिये दुनिया की अर्थव्यवस्था नियंत्रित करनेवाले अमेरिका में 45 फीसदी लोग कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं. अमेरिका का प्रतिद्वंद्वी रूस मात्र चार फीसदी ‘कार्ड मनी’ का इस्तेमाल करता है. दुनिया की सबसे अधिक आबादी और मजबूत अर्थव्यवस्था वाले चीन में 10 फीसदी लोग ही कार्ड से भुगतान कर रहे हैं. जापान में 14 फीसदी लोग कार्ड से पेमेंट कर रहे हैं.
आठ से चार फीसदी कार्ड से पेमेंट करनेवाले देशों में यूएइ, ताइवान, इटली, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड, रूस और मैक्सिको शामिल है. दो फीसदी कार्ड से भुगतान ग्रीस, कोलंबिया, भारत, केन्या, थाइलैंड के लोग कर रहे हैं. एक फीसदी डेबिट, क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करनेवाले देशों में मलयेशिया, सऊदी अरब, पेरू व मिस्र का नाम आता है.
वाशिंगटन डीसी स्थित फेडरल रिजर्व ने अनुमान लगाया है कि 2016 के आखिर तक कैशलेस लेन-देन 616.9 अरब डॉलर तक पहुंच जायेगा. 2010 में यह 60 अरब डॉलर था. यह कार्ड करेंसी का श्वेत पक्ष है. अब थोड़ी चर्चा उस स्याह पक्ष की हो जाये. जो अमेरिका अपराध नियंत्रण में सबसे हाइटेक होने का दावा करता है, उसी अमेरिका में सिर्फ 2014 में तीन करोड़ 18 लाख लोगों के कार्ड से जालसाजों ने पैसे निकाल लिये. अमेरिका में क्रेडिट, डेबिट कार्ड फ्राॅड तीन गुना बढ़े हैं, यह वहां की सरकार स्वीकार करती है. साइबर गिरहकटों ने 2014 में सोलह अरब डॉलर उड़ा लिये, और ओबामा सरकार देखती रह गयी.
एसीआइ वर्ल्डवाइड और आइसे ग्रुप ने जून 2014 में जानकारी दी कि यूएइ में सबसे अधिक कार्ड के जरिये फ्राॅड कर लोगों के पैसे निकाले गये.
इस कड़ी में चीन, भारत और अमेरिका उन देशों में से हैं, जहां पर आर्थिक अपराधियों ने बैंक खातों, एटीएम से पैसे उड़ाये, और इन देशों की सरकारें उनमें से शायद ही कुछ को पकड़ पायीं. साइबर अपराध के जमीनी सच को जानते हुए भी वित्त मंत्री अरुण जेटली की जिद है कि देश की जनता को सौ फीसदी पेमेंट कार्ड से करना चाहिए. आप बस, रिक्शे, ऑटो, टैक्सी, या तांगे से चलें, मगर पेमेंट कार्ड से करें. ढाबे से लेकर सब्जी मंडी, रेहड़ी वालों, चाय बगानों, खेत, दिहाड़ी मजदूरों, ट्रक ड्राइवरों, सुलभ शौचालय, श्मशान तक आप कार्ड के जरिये भुगतान करें. मगर, पार्टी दफ्तरों, मंदिरों में दान कार्ड से नहीं, कैश में दें. क्या कमाल की परिकल्पना है.
बिना संसद को भरोसे में लिये कार्ड करेंसी और ऑनलाइन व्यापार करनेवालों के लिए पिछला दरवाजा खोल दिया गया. एसोचैम-प्रिंसवाटरहाउस कूपर स्टडी बताती है कि 17 अरब डॉलर का ऑनलाइन व्यापार 2020 तक सौ अरब डॉलर पार कर जायेगा. इस तरह के व्यापार के लिए ‘कार्ड करेंसी’ चीनी, अमेरिकी, दक्षिण कोरिया, जापान, यूरोपीय देशों और सिंगापुर की कंपनियां बना रही हैं. चीन की कंपनी अलीबाबा का भारत के कैशलेस व्यापार में ‘पेटीएम’ के जरिये कदम रखना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. अलीबाबा की प्रतिस्पर्धी पेइचिंग स्थित डीएच गेटडॉट कॉम, ‘अलीपे’, ‘शुन्वेई कैपिटल’, अमेरिका की फोरेक्स, सिलिकॉन वैली का ‘शॉप क्लू’ जैसी कंपनियां भारत में कैशलेस कार्ड के व्यापार में जिस तरह दिलचस्पी दिखा रही हैं, उससे इस देश की करेंसी व्यवस्था की दिशा बदल जायेगी! जनता तो मूक दर्शक है, उसे जिधर चाहिए हांक दीजिये!