संभवत: अभी तक दस हिंदी राज्यों के विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों की गैर-हिंदी भाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों से कोई तुलना नहीं की गयी है. फिलहाल एक अहिंदी भाषी राज्य केरल के एक नये विश्वविद्यालय श्रीशंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कालडी के हिंदी विभाग पर एक नजर डालने की आवश्यकता इसलिए है कि हम वहां की स्थिति, गतिविधियों को जान कर हिंदी के उच्चतर अध्ययन-अध्यापन, शोधकार्य आदि के संबंध में थोड़ी गंभीरता से सोचें.
विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियां राज्य सरकार और राज्यपाल-सह-कुलाधिपति की सहमति से होती है. विश्वविद्यालय का अकादमिक वातावरण कुलपति पर बहुत अंशों में निर्भर करता है. प्राध्यापकों की नियुक्तियां, पाठ्यक्रम, शोधकार्य, पुस्तकालय, राष्ट्रीय सेमिनार सब एक-दूसरे से जुड़े हैं. कई विश्वविद्यालयों में सन्नाटा और मुर्दनी है, तो कई में जीवंतता, सक्रियता और हलचल. 1993 में स्थापित कालडी विश्वविद्यालय में 1994 में हिंदी विभाग खुला. केएन पणिक्कर के कुलपति बनने के बाद विश्वविद्यालय ने जो गुणवत्ता कम समय में अर्जित की है, वह विस्मयकारी है. कुलपति आर रामचंद्र नायर के समय विश्वविद्यालय के पूरे केरल राज्य में आठ केंद्र खोले गये, जिससे उच्चतर शिक्षा सबको प्राप्त हो सके. इन सभी आठ क्षेत्रीय केंद्रों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन होता है.
देश में त्रिभाषा फॉर्मूला केरल में पूरी तरह लागू है. मलयालम और अंगरेजी के साथ हिंदी वहां दसवीं कक्षा तक अनिवार्य है. लगभग डेढ़ सौ सरकारी और तीन सौ निजी कॉलेजों में हिंदी की पढ़ाई होती है. दस से अधिक सरकारी कॉलेजों में हिंदी अध्यापकों की संख्या दस है. प्राय: प्रत्येक कॉलेज में हिंदी की प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध हैं.
कालडी के हिंदी विभाग में राष्ट्रीय ख्याति के अब तक पचास से अधिक हिंदी कवि, लेखक, कथाकार, आलोचक, संपादक आ चुके हैं. तीन वर्ष बाद विभाग का पाठ्यक्रम परिवर्तित होता है. हिंदी भाषा एवं साहित्य के गहन विस्तृत ज्ञान पर विशेष बल है. विश्वविद्यालय के सभी अठारह विभाग अंतर्विषयी अध्ययन एवं शोधकार्य से जुड़े हैं. केएन पणिक्कर ने विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को अर्वाचीन और समकालीन बनाने में अभिभावक की भूमिका अदा की है. विशेष फोकस स्वतंत्र भारत पर है. साहिल का सामाजिक संदर्भ कभी धूमिल नहीं हो सकता. पाठ्यक्रम को (सभी विभागों के) डिजाइन करने में कुलपति पणिक्कर की जितनी बड़ी भूमिका रही है, उतनी शायद ही किसी विश्वविद्यालय के कुलपति की रही हो. अध्यापकगण अगर पिछले दरवाजे से आये होते, तो विभाग इतना उन्नत नहीं होता. हिंदी विभाग के पास अपना कोई स्वतंत्र कार्यालय नहीं है, पर अध्यापकगण जिस समर्पण भाव से कार्यरत हैं, वह हिंदी भाषा के प्रति उनकी गहरी निष्ठा का प्रमाण है.
कालडी विवि संभवत: देश का अकेला विवि है, जहां एमए हिंदी के पाठ्यक्रम में प्राय: प्रत्येक विधा में नया रचनाकार एवं उसकी रचनाएं हैं. आधुनिक कविता में स्त्री, दलित, पारिस्थितिक और सांप्रदायिकता विरोध की कविताएं हैं. नयी कविता से आज तक की कविता. अज्ञेय से लेकर उमाशंकर चौधरी की कविताएं. सभी अध्यापकगण पारस्परिक सहमति के बाद रचनाओं का चयन करते हैं. संदर्भ ग्रंथ में नयी से नयी पुस्तकें हैं. उपन्यास में ‘गोदान’ ही नहीं, अनामिका का ‘दस द्वारे का पिंजरा’ भी है. चयनित पत्र के अंतर्गत कार्यालयी अनुवाद, स्त्रीपाठ, कालिदास का आधुनिक पाठ, समकालीन भारतीय साहित्य, पारिस्थितिक पाठ आदि हैं. एक पत्र में संस्कृत अनिवार्य है. संगीत, रंगमंच, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मलयालम, दर्शन आदि में से किसी एक का अध्ययन अन्य पत्र में अनिवार्य है. पाठ्यक्रम एक विस्तृत, निरभ्र, आकाश की तरह है. विशेष बल समकालीनता पर है. समकालीन भारत और समकालीन साहित्य. समकालीनता के प्रति ऐसा आग्रह देश के किसी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में नहीं है.
पीवी विजयन और उनके ए अरविंदाक्षन सहित यशस्वी छात्रों ने कोच्चि विवि से जो माहौल बनाया, वह पूरे केरल में फैल गया है. कालडी विवि के प्राध्यापकों का काम तो बहुत प्रेरणादायी है. समाज के विकास और निर्माण में कलाओं, साहित्य की जो भूमिका है, उसे गति देने का कार्य विश्वविद्यलाय के ऊपर है. राज्य की सरकारें इसे अनदेखा नहीं कर सकतीं. उत्तर भारत के हिंदी प्रोफेसर दक्षिण को सुनें, सबको नहीं, तो केरल को ही, कालडी को ही सही.
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com