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पानी पर पहरा

देश के 13 राज्यों में जलस्तर घटने, जलाशयों के सूखने और पेयजल संकट की खबरें बीते कई महीनों से सुर्खियां बन रही हैं. अब मध्य प्रदेश के बैतूल में भारी जलसंकट के बीच कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रशासन ने धारा 144 लगाते हुए सभी प्रकार के निजी एवं सरकारी निर्माण कार्यों पर रोक लगा […]

देश के 13 राज्यों में जलस्तर घटने, जलाशयों के सूखने और पेयजल संकट की खबरें बीते कई महीनों से सुर्खियां बन रही हैं. अब मध्य प्रदेश के बैतूल में भारी जलसंकट के बीच कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रशासन ने धारा 144 लगाते हुए सभी प्रकार के निजी एवं सरकारी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है. जल संकट की गंभीरता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 10 दिन पहले सिर्फ 26.816 अरब घन मीटर पानी बचा था, जो इनकी कुल संग्रहण क्षमता का महज 17 फीसदी है. यह इन जलाशयों में पानी का बीते 10 सालों का सबसे निचला स्तर है.

औद्योगिक संस्था एसोचैम के आकलन के मुताबिक मई के शुरू तक ही देश में सूखे से करीब साढ़े छह लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका था. यह अभूतपूर्व संकट न तो अचानक आया है और न ही इसके लिए सिर्फ प्रकृति पर दोष मढ़ना सही होगा. हमें स्वीकार करना होगा कि पानी के समुचित उपयोग और कमजोर मॉनसून से निपटने के लिए सरकार और समाज के स्तर पर पर्याप्त प्रयास नहीं किये गये हैं. खेती और उद्योगों में उत्पादन बढ़ाने के लिए पानी के अंधाधुंध दोहन को प्रोत्साहित किया जाता रहा है. जल जैसी अनमोल संपदा को खर्च करने में लोग, समाज और सरकार का रवैया निराशाजनक ही रहा है.

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बावजूद सरकारी सक्रियता उत्साहवर्द्धक नहीं है और सूखे की स्थिति से बाहर आने के लिए सभी मॉनसून के इंतजार में हैं. अदालती फैसले के बाद सूखे का सामना करने के लिए कुछ दिन पहले पहली बार एक राष्ट्रीय नीति बनाने की औपचारिकता पूरी तो कर ली गयी है, पर उस पर कारगर अमल अभी बाकी है. सिंचाई सहित पानी के विभिन्न उपयोगों के संबंध में भी ठोस नीतिगत पहलों की जरूरत है.

सरकार के साथ-साथ समाज को भी जल संरक्षण और सदुपयोग की जिम्मेवारी लेनी होगी. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो अच्छे मॉनसून के बावजूद पानी की किल्लत बनी रहेगी और भविष्य में हालात और भयावह होते जायेंगे. कुछ अध्ययनों के मुताबिक भारत में 2020 से 2049 के बीच निरंतर सूखे की आशंका है, जो कहीं अधिक गंभीर होगी. हमें मिल कर सोचना होगा कि क्या हम इससे निपटने के लिए तैयार हैं.

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