चार घर छोड़ कर रहते हैं बंदे के पड़ोसी लल्लन जी. परचून की छोटी-मोटी दूकान है. दो बेटियां हो चुकी हैं, लेकिन बेटे की चाहत अभी बाकी है. खानदान को अपना चिराग चाहिए. उनकी पत्नी लल्ली की भी यही इच्छा है. दीया-बत्ती वाला कोई तो हो.
लेकिन अगर तीसरी बार बेटा न हुआ और ‘तीसरी’ आ गयी तो? इस यक्ष प्रश्न का समाधान भी खोज लिया है दोनों ने. लल्ली चौधरी पहलवान के खानदान से है, बिलकुल इकलौती. एक लल्ली को छोड़ कर पिछली कई पीढ़ियों से लड़के पैदा करने की ‘परंपरा’ है. इसीलिए लल्ली गर्भ धारण करते ही मायके आ गयी है. यहां का साया बेटा पैदा होने के अनुकूल है. लल्लन को भी परेशानी नहीं. दुकान बंद करते ही पहुंच जाते हैं ससुराल.
लल्लन-लल्ली सिर्फ ‘परंपरा’ पर निर्भर नहीं हैं. सुबह से रात देर तक कोई न कोई तंत्र-मंत्र जपते रहते हैं. हकीम, वैद्य, बाबा-सन्यासी, सिद्ध पुरुष सभी से निरंतर मंत्रणा भी चल रही है.
होली के होली नहानेवाले लल्लन पिछले महीने भर से रोज सुबह पांच बजे ठंडे पानी से नहा रहे हैं. साथ में ‘कारे कजरारे…’ का राग भी अलापते हैं. ठंडक दूर भागती है. नींद पड़ोसियों की खराब होती है. लेकिन कोई बुरा क्यों बने? पहलवान जी का दामाद है. और फिर सबको प्रयोजन का ज्ञान है. कोई ऐतराज करके बनते काम में रोड़ा क्यों अटकाये भला? कल को बेटा न होकर बेटी हो गयी, तो सारा ठीकरा उसके माथे ही फूटेगा न!
लल्लन ने सुबह-शाम आकाश की ओर मुंह उठा कर विचित्र मंत्रों का उच्चारण करते हुए चिंघाड़ा, अर्थात् ईश्वर से सीधा संपर्क. छत्तीस घंटे का प्रचंड यज्ञ किया. छत्तीस निरीह पशु-पक्षियों की बलि दी. छत्तीस भिखारियों और ब्राह्मणों को लंच-डिनर कराया. मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारा और गिरजा के चक्कर लगाये. दरगाहें भी न छोड़ीं. ऊंचे पर्वतों से मंगायी दुर्लभ जड़ी-बूटियों का सेवन किया. परंतु नियति के लिखे को कोई जुगाड़ आज तक बदल सका है क्या? तीसरी बार भी ‘तीसरी’ जन्मी.
पहलवान जी तो उछल पड़े. बिलकुल लल्ली समान. इसे कहते हैं कुदरत का करिश्मा. वह तो मिठाई बांटने निकल पड़े. लल्ली ने भी करिश्मा समझ तसल्ली कर ली कि जीरोक्स कॉपी आयी है.
लेकिन लल्लन जी इतनी जल्दी हार माननेवाले कहां थे? गहरे अवसाद में डूब गये. बंदे ने सांत्वना दी- समझो कि साक्षात ‘लक्ष्मी जी’ पधारी हैं.
अचानक बंदे को याद आता है, एक पुराने सीरियल का प्रोमो. उसमें बेटे के जन्मने की बड़ी शिद्दत से प्रतीक्षा कर रहे एक सज्जन को यह जान कर बहुत चिंता हुई थी कि बेटी हुई है. पिता, परिवार व समाज की तमाम उपेक्षाओं और बाधाओं का सामना करते हुए वह लड़की बड़ी होती है. अपने ज्ञान व साहस के बूते एक दिन एक रियल्टी शो की ‘हाट सीट’ पर जा बैठती है. दस करोड़ से बस एक कदम दूर. शो का एंकर पूछता है- दुनिया को कुछ कहना है? वह लड़की कैमरे की आंख में झांकते हुए पूरे यकीन के साथ बनावटी और बदसूरत उसूलों पर कटाक्ष करती है- बधाई हो, बेटी जन्मी है!
यह सुनते ही गहरे अवसाद में डूबे लल्लन जी उछल पड़े, जैसे उनके ज्ञान चक्षु खुल गये हों. वे मुस्कुराये- इसे कहते हैं एक बेआवाज झन्नाटेदार तमाचा.
वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
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