पिछले कई दशकों से हमारे देश के लोकतंत्र के चुने सदस्यों की अलोकतांत्रिक हरकतों का कच्च-चिट्ठा उजागर हो रहा है. इनमें राजनीति का अपराधीकरण, भ्रष्टाचार और दल-बदल की प्रवृत्ति मुख्य हैं.
हालांकि 2009 में लोकसभा का कुछ साफ -सुथरा दृश्य उभरा, क्योंकि जनता ने आपराधिक पृष्ठभूमि के कई नेताओं को नकार दिया था. फिर 14वीं लोकसभा के दौरान दर्जनभर नेताओं की पोल तब खुली थी, जब उन्हें विभिन्न उद्योग समूहों, व्यक्तियों और संगठनों से पैसे लेकर सवाल पूछने का दोषी पाया गया था.
वहीं, भारतीय लोकतंत्र में जातिवाद, भाई-भतीजावाद, सांप्रदायिकता, लालफीताशाही, सरकारी सेवा में लापरवाही, सार्वजनिक क्षेत्र में अनुशासनहीनता, निरक्षरता जैसी समस्याएं अब भी मौजूद हैं, फिर भी हम एक बड़े लोकतंत्र के नागरिक कहलाते हैं.
देवनाथ शास्त्री, चौथा, हजारीबाग