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न साफ हुए न सुंदर!
16 साल की दहलीज पर सबके सपने जैसे हमारे भी थे़ उस दिन सपनों का रेतीला किला एकाएक ढह गया, जब पता चला कि स्मार्ट होने के सारे ‘पैरामीटर्स’ हमारे खिलाफ हैं. यह शहर, राजघानी है एक सूबे की़ यहां से वहां तक सरकार भी अपनी है़ तो फिर ऐसा क्या हुआ कि हम स्मार्ट […]
16 साल की दहलीज पर सबके सपने जैसे हमारे भी थे़ उस दिन सपनों का रेतीला किला एकाएक ढह गया, जब पता चला कि स्मार्ट होने के सारे ‘पैरामीटर्स’ हमारे खिलाफ हैं.
यह शहर, राजघानी है एक सूबे की़ यहां से वहां तक सरकार भी अपनी है़ तो फिर ऐसा क्या हुआ कि हम स्मार्ट न हो सके़ ‘हैंगओवर’ दूर भी न हुआ था कि स्वच्छता मानकों पर हम 62वें पायदान पर खड़े नजर आये़
यह शहर सूबे के सारे नामचीन लोगों की कार्यस्थली है, जहां रोज नयी योजनाएं, नये जुमलों का जन्म होता है, ऐसा क्या हुआ जो 16 सालों में हम ‘न साफ हुए न सुंदर’. सवा सौ करोड़ देशवासी तय भी कर लें, तो यह संभव नहीं कि हम गंदगी ही न करें. नारा तो यह हो कि ‘साफ रहो और साफ रहने दो’. इससे पहले कि कचरा हमें कचरों में तबदील कर दे, हम कचरों का नामो–निशान मिटा दें.
एमके मिश्रा, रातू, रांची
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