महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह वही भारत है, जहां महिलाओं की पूजा की जाती है. तीन साल पूर्व दिल्ली की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था. फिर कानून में परिवर्तन किया गया. चाहे कितने ही कानून बना दिये जाएं, तब तक कुछ नहीं हो सकता, जब तक अमल में लाने की इच्छाशक्ति ना हो.
यह देश भी गजब है, सर्टिफिकेट दिखा कर दोषी नाबालिग बन जाता है और देश का सेना प्रमुख सर्टिफिकेट की जन्मतिथि साबित नहीं कर पाता. खैर कानून सर्वोपरि है. आश्चर्य है कि इस मामले में किसी बुद्धिजीवियों ने अवाॅर्ड वापस नहीं किये. क्योंकि, अवार्ड तो तब वापस किये जाते हैं, जब यह राजनीति से प्रेरित हो. मेरी गुजारिश कि आप बुद्धिजीवी हैं. इसलिए राजनीति ना करते हुए कुछ ऐसा करें, जिससे लोगों में जागरूकता आये.
– कन्हाई, रांची