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सीबीआइ पर सवाल
भारत में शायद यह पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि सीबीआइ ने बिना कोई मामला दर्ज किये या सूचना दिये, उनके दफ्तर की तलाशी ली है. बीते सितंबर में हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के आवास पर छापा पड़ा था, जो किसी मौजूदा मुख्यमंत्री के आवास पर सीबीआइ छापे की […]
भारत में शायद यह पहला मौका है जब किसी मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि सीबीआइ ने बिना कोई मामला दर्ज किये या सूचना दिये, उनके दफ्तर की तलाशी ली है. बीते सितंबर में हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के आवास पर छापा पड़ा था, जो किसी मौजूदा मुख्यमंत्री के आवास पर सीबीआइ छापे की पहली घटना बतायी गयी थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मानें, तो प्रधानमंत्री की शह पर सीबीआइ ने उनके दफ्तर पर छापेमारी की है. हालांकि, सीबीआइ का कहना है कि छापेमारी मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के कार्यालय और अन्य 14 जगहों पर की गयी है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा है कि इस कार्रवाई का संबध न तो मुख्यमंत्री से है और न ही उनके कार्यकाल से जुड़े किसी मामले से.
ब्यूरो की कार्रवाई के पक्ष में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि राजनीतिक नेतृत्व को छापेमारी की पूर्व सूचना देना कानूनन जरूरी नहीं है. लेकिन, इतना तो स्पष्ट है ही कि राजेंद्र कुमार मुख्यमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी हैं, उनका कार्यालय मुख्यमंत्री के कक्ष के बगल में है तथा उनके पास दिल्ली सरकार के कई संवेदनशील दस्तावेज भी हो सकते हैं, जिनका न तो इस जांच से कोई लेना-देना है और न ही उन्हें देखने का अधिकार ब्यूरो के पास है.
जाहिर है, तमाम पेचो-खम के बावजूद कहा जा सकता है कि प्रधान सचिव के दफ्तर पर छापेमारी और मुख्यमंत्री कार्यालय के परिक्षेत्र को सील करने की कार्रवाई का तरीका उचित नहीं था. केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच तनातनी कोई नयी बात नहीं है. बावजूद इसके, केजरीवाल सरकार से पहले की सरकार के मामले में चल रही जांच को ऐसे मोड़ पर लाकर सीबीआइ ने पेशेवराना समझदारी नहीं दिखायी है.
यह ठीक है कि देश में हर मसले को सियासी रंग देने की परिपाटी रही है, पर जांच एजेंसियों को भी व्यावहारिकता को ध्यान में रखना चाहिए. सीबीआइ भले एक स्वायत्त जांच एजेंसी है, पर वह प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन ही काम करती है. सीबीआइ के राजनीतिक दुरुपयोग के आरोप भी नये नहीं हैं. एक दिन पहले केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री भारत की संघीय व्यवस्था के अनुरूप केंद्र और राज्य के बीच बेहतर संबंध बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर रहे थे.
प्रधानमंत्री खुद भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों में बेहतर तालमेल की जरूरत को रेखांकित कर चुके हैं. इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि केंद्र और दिल्ली की सरकारें तल्ख बयानों से परहेज करते हुए मसले को समझदारी से सुलझा लेंगी. देश को ब्यूरो से भी पूरी साफगोई से स्पष्टीकरण की अपेक्षा है.
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