।। चंचल।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)
यह लो एक खबर. मोहब्बत के जुर्म में जेल. तुम से एक बात कहा है कि जब भी अखबार बांचो, सलीके से. लंठई मत किया कर. इ टीवी ना है, अखबार है समझे? और उमर दर्जी समझ गया कि अखबार लिखना ही सलीका नहीं रखता, उसका पढ़ना भी सलीका मांगता है. चुनांचे उसने चिखुरी की डांट पर ‘जनाब’ कह कर फर्सी सलाम मारा. चिखुरी ने उमर से कहा- चल मोटी-मोटी बता.
मोटी-मोटी? शहर में मोटी रहें भले ही, लेकिन उन्हें छपने की छूट नहीं है. हम अहमदाबाद रह के आये हैं. लोग पहले खा-पी के मोटी होती हैं, फिर दुबला होने के लिए सड़क-दर-सड़क घूमती हैं. उमर अभी बहुत कुछ बोलता, लेकिन चुप हो जाना पड़ा क्योंकि अखबार का पहला पन्ना कोलई दूबे के हाथ में है- बुड़बक हो, उसे मार्निग वॉक कहते हैं.
कयूम को मौका चाहिए होता है- इस्वाक में क्या होता है? कयूम सवाल नहीं पूछते, सवाल की गांठ खोजते हैं. सो कोलई को विस्तार में जाना ही पड़ा.- पुरुष और महिला अल सुबह पार्क में जाते हैं. बंद कमरे का मशीनवाला हवा बाहर छोड़ते हैं और पेड़-पौधों की खुश्बूदार हवा अंदर खींचते हुए तेज रफ्तार से चलते हैं. महिलाएं आगे रहती हैं पुरुष पीछे. ऐसा क्यों? लखन कहार का सवाल टेढ़ा था. चिखुरी पलटे- इसलिए कि पुरुष बत्तमीज होता है. कोलई चौंके- ये लो. ताबक तोड़ दो खबरें.
सुना जाओ अभी चाय पक रही है.
पक नहीं रही है, दूध ही फट गया. आसरे ने ऐलान किया और बर्तन को फिर से धोने लगा. लाल्साहेब की आंख गोल हुई- कमाल है इस जमाने में भी दूध फटने लगा? देखते-देखते जमाना खराब हुआ है. लाल्साहेब चालू हो गये- अभी कल की बात है. दूध फटने न पाये इसके लिए कितनी साफ सफाई रखनी पड़ती थी, एक के घर में घी बनता था तो पूरा गांव जान जाता था. अब तो न कोई महक न स्वाद. सब कुछ नकली. लखन ने एक अलग का किस्सा सुनाया. ‘पप्पू क भौजी बैगन खरीद कर ले गयी थी. एक बैगन बचा कर रख दी थी कि सुबह आलू मिला के चोखा बनायेंगे, लेकिन सुबह क्या देखती है कि बैगन फूल के लौकी हो गया है. पूरे गांव में कोहराम. पता चला आजकल सब्जियों को भी इन्फेक्सन दिया जाता है.
इन्फेक्सन नहीं इंजेक्सन कहो.
एकै मतलब हुआ.
लेकिन इ भी तो पता चले कि पप्पुआ क भौजी बैगन रखे कहां रही? एक साथ कई ठहाके लगे. लेकिन सबसे देर तक हंसते हैं कयूम मियां और उनके हंसने का तरीका कत्तई अलग है. वे थोड़े-थोड़े देर के अंतराल पर फिस्स. फिस्स करते रहेंगे.
खबर तो सुनो, कोलई ने जोर का हांका मारा. और लोगों के कान उधर हो गये. एक साथ दो खबर. दोनों का मामला एक है..
मामला मत सुनाइए, खबर पढ़िए..तहलका के संपादक पर बलात्कार का आरोप.
यह तहलका क्या है भाई? मद्दू ने कहा- तहलका? यह हंगामा से मिलता-जुलता है. उसके कोइ संपादक हैं तरुण तेजपाल उन्होंने..
किसके साथ किया?
उसका नाम नहीं है.
दूसरा?
एक साहब है अमित शाह उन्होंने एक लड़की की जासूसी कराई वो भी अपने साहेब के लिए.
पूरा दिन खराब हो गया. कहते हुए चिखुरी ने मद्दू को उकसाया- आपै बताओ भाई, तुम भी अखबार से हो. का लगते हो अखबार के? मद्दू इस सवाल के लिए तैयार नहीं थे. झिझकते हुए बोले- संबाददाता. हुआ यूं कि ये जो साहब हैं तरुण जी अपने किसी महिला पत्रकार से जबरदस्ती करने लगे और लगे ‘लिफ्ट’ मांगने. बस बात खुल गयी लिफ्ट की वजह से. अब पुलिस तरुण को गोवा ले जा रही है, क्योंकि लिफ्ट वहीं गोवा में ही पड़ी है. और दूसरी?
दूसरी खबर और भी नाजुक है. गुजरात के कलेट्टर थे प्रदीप शर्मा. इसलिए उन्हें गुजरात की सरकार ने गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया. ताकी लोगों को पता तो चले कि जब इतने ऊंचे ओहदेदार को जेल में डाला जा सकता है, तो बाकी किसकी औकात? कभी सुना कि वहां कोई कुछ बोला हो? कोई सवाल उठा हो? इसे कहते हैं तर्ज-ए-हुकूमत. इसे ही कहते हैं ‘गुजरात मॉडल’. इस मॉडल में हर कोई चौकन्ना रहता है. कोई किसी से बात नहीं करता. बात करनी है, तो पहले जेल जाओ, जमानत कराओ, बाहर निकलो, बात करो. फिर नयी धारा में जेल जाओ. इसी नुस्खे को पूरे देश में लगाने का इंतजाम किया जा रहा है.