झारखंड में स्थापना दिवस पखवारा मनाया जा रहा है. सभी प्रखंडों में जनता दरबार लगाया जा रहा है. जिला मुख्यालयों में आयोजित कार्यक्रमों में मंत्री शिरकत कर रहे हैं. लेकिन, सवाल है कि क्या इनमें जन-भागीदारी दिख रही है? इन कार्यक्रमों को लेकर लोगों में कितना उत्साह है? ऐसे आयोजनों की सार्थकता तभी होगी, जब इनके प्रति जनता में उत्साह देखने को मिले. लोगों का सरकार व सरकारी तंत्र पर से भरोसा उठता जा रहा है.
इसे बहाल करने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है. संताल परगना में स्थापना दिवस कार्यक्रमों में कुछेक सरकारी अधिकारी व आयोजन से जुड़े लोगों के अलावा दूसरे लोग शिरकत नहीं कर रहे हैं. यह सरकार से जनता का मोहभंग नहीं तो और क्या है? राज्य गठन के 13 सालों बाद जनता यह जानती है कि ऐसे आयोजन क्यों किये जाते हैं? यदि सिर्फ दिखावे या औपचारिकता के लिए स्थापना दिवस समारोह आयोजित होता है, तो क्या इसमें पैसे की बरबादी नहीं है? सरकार को पहले जनता का भरोसा जीतना होगा. इसके लिए विकास व रोजगार के रास्ते खोलने होंगे.
तभी ऐसे आयोजन सरकारी न होकर जनता के होंगे. भ्रष्टाचार रोकने के लिए जनता से आगे आने की अपील करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कहना है कि भ्रष्टाचारियों को मार भगायें. सवाल उठता है कि सरकार भ्रष्टाचार रोकने के प्रति कितनी संजीदा है. यदि सरकार खुद के स्तर पर भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए मशीनरी तैयार नहीं करती है, तो जन-शिकायतों का समाधान भला कैसे होगा?
विकास योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए जन-भागीदारी जरूरी है. विकास का पैसा सही तरीके से खर्च हो, इसकी निगरानी जनता और जन-संगठनों को करनी होगी. राज्य गठन के 13 साल बीत जाने के बाद भी गरीबों, किसानों और भूमिहीन आदिवासियों के लिए पर्याप्त योजनाएं और सुविधाएं मुहैया नहीं करायी जा सकी हैं, यह चिंताजनक है. जनता दरबार में आनेवाली शिकायतों को लेकर विभागीय स्तर पर आकलन किया जाना चाहिए कि किस विभाग की कार्यशैली ज्यादा जनोन्मुखी है. सरकार की कार्यकुशलता मापने का बेहतर पैमाना जन-शिकायतें और उन पर सरकारी प्रतिक्रिया ही है.