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जब पटेल गांधीजी पर चिल्लाये..

।। राजेंद्र तिवारी।।(कारपोरेट संपादक प्रभात खबर)बंटवारे और आजादी के समय हुए सांप्रदायिक दंगों से गांधीजी मानिसक रूप से बहुत परेशान थे. उन्होंने हर वह कोशिश की, जिससे दोनों समुदायों के बीच सद्भावना उपजे. उनकी परेशानी और व्यथा का कारण था, उनके प्रयासों का इच्छित परिणाम न मिलना. देश और दिल्ली की स्थिति जानने के लिए […]

।। राजेंद्र तिवारी।।
(कारपोरेट संपादक प्रभात खबर)
बंटवारे और आजादी के समय हुए सांप्रदायिक दंगों से गांधीजी मानिसक रूप से बहुत परेशान थे. उन्होंने हर वह कोशिश की, जिससे दोनों समुदायों के बीच सद्भावना उपजे. उनकी परेशानी और व्यथा का कारण था, उनके प्रयासों का इच्छित परिणाम न मिलना. देश और दिल्ली की स्थिति जानने के लिए गांधीजी अक्सर जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल व मौलाना आजाद को तलब करते थे.

मौलाना आजाद ने अपनी किताब ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ में लिखा है कि गांधीजी की हताशा तब और बढ़ गयी, जब उनको अहसास हुआ कि जो घटनाएं हो रही हैं, उनको लेकर हम तीनों के बीच एकराय नहीं है. यह सच्चाई थी कि सरदार पटेल और जवाहरलाल तथा मौलाना के रवैये में अंतर था. मौलाना आजाद ने माना है कि इसकी वजह से स्थानीय प्रशासन दो गुटों में बंट गया था. इसमें बड़ा गुट सरदार पटेल को खुश रखने में लगा हुआ था और उन्हीं का आदेश मानता था और छोटा गुट जवाहरलाल के आदेशों पर चलता था.

वह अपनी किताब में लिखते हैं कि सरदार पटेल गृहमंत्री थे और दिल्ली का प्रशासन सीधे उन्हीं के तहत काम करता था. जब दिल्ली में हत्या व आगजनी की घटनाएं बढ़ने लगीं, गांधीजी ने सरदार पटेल को बुलाया और पूछा कि इसको रोकने के लिए वे क्या कर रहे हैं. सरदार पटेल ने कहा कि घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है और घबराने की कोई बात नहीं है.मौलाना आजाद ने उस समय की एक मीटिंग का विवरण लिखा, जिसमें गांधीजी के यहां ये तीनों (जवाहरलाल, सरदार पटेल और मौलाना आजाद) मौजूद थे. वह लिखते हैं कि जवाहरलाल ने बड़े व्यथित स्वर में कहा कि मैं दिल्ली में ऐसी स्थिति बरदाश्त नहीं कर सकता जिसमें मुसलिम नागरिक कुत्ते-बिल्लियों की तरह मारे जा रहे हों. मैं शर्मिदा महसूस कर रहा हूं कि मैं असहाय हूं और नागरिकों को बचा नहीं पा रहा हूं. वह बोल रहे थे कि मेरा जमीर मुङो चैन से बैठने नहीं देगा, मैं इन घटनाओं को लेकर देशवासियों को क्या जवाब दूंगा? जवाहरलाल ने ये बातें बार-बार कहीं.

इस पर सरदार पटेल की प्रतिक्रि या चौंकानेवाली थी. सरदार पटेल ने शांत स्वर में गांधीजी से कहा कि जवाहरलाल की बातें उनकी समझ में नहीं आ रहीं. हो सकता है कि इक्का-दुक्का घटनाएं हो रही हों, लेकिन सरकार मुसलमानों की जान-माल की सुरक्षा के हरसंभव इंतजाम कर रही है और इससे ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता. उन्होंने इस बात पर आपत्ति जतायी कि जवाहरलाल प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी ही सरकार की आलोचना करें. मौलाना आजाद ने आगे लिखा कि जवाहरलाल की बोलती ही कुछ क्षणों के लिए बंद हो गयी. फिर उन्होंने हताशा के साथ गांधीजी की ओर देखा और कहा कि सरदार पटेल के इस दृष्टिकोण और रवैये पर मेरे पास कुछ भी कहने को नहीं है.

इस किताब में मौलाना आजाद ने लिखा है- गांधीजी ने कहा कि मैंने दिल्ली के मुसलमानों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा है. और यह तब हो रहा है जब गांधीजी के अपने सरदार पटेल गृहमंत्री थे जिन पर राजधानी में कानून-व्यवस्था की सीधी जिम्मेदारी थी. पटेल न सिर्फ इस जिम्मेदारी के निर्वहन में विफल रहे, बल्कि इस बारे हर शिकायत को उन्होंने बहुत हल्के ढंग से लिया. गांधीजी उनके इस रवैये से परेशान होकर एक दिन बोले कि अब मेरे सामने अपना अंतिम अस्त्र इस्तेमाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है और उन्होंने 12 जनवरी 1948 को उपवास शुरू कर दिया. एक तरह से गांधी जी का यह उपवास सरदार पटेल के रवैये के खिलाफ ही था और सरदार पटेल इसे जानते थे.

उपवास के पहले दिन शाम को जवाहरलाल, सरदार पटेल और मौलाना आजाद गांधीजी के साथ बैठे हुए थे. सरदार पटेल को अगले दिन मुंबई जाना था. उन्होंने गांधीजी से बहुत औपचारिक तरीके से बात की और शिकायती लहजे में कहा कि आपके अनशन का कोई औचित्य नहीं. आपका यह अनशन मेरे पर लगे आरोपों को ही पुख्ता करेगा. सरदार ने बहुत तीखे लहजे में कहा कि गांधीजी तो ऐसे काम कर रहे हैं जैसे सरदार पटेल ही मुसलमानों की हत्या के लिए जिम्मेदार हों.

गांधीजी ने बहुत शांत आवाज में जवाब दिया कि मैं चीन में नहीं, दिल्ली में ही हूं. न तो मेरी आंखें फूटी हैं और न मैं बहरा हुआ हूं. यदि तुम चाहते हो कि मैंने जो अपनी आंखों से देखा है और कानों से सुना है, उस पर विश्वास न करूं और तुम मुङो बताओ कि मुसलमानों की शिकायतें बेबुनियाद हैं, तो निश्चित तौर पर न मैं तुम्हें और न तुम मुङो राजी कर सकते हो. हिंदू व सिख मेरे भाई हैं वे मेरे शरीर का हिस्सा हैं. और यदि आज वे अंधे हो गये हैं तो मैं उन्हें दोष नहीं दूंगा. लेकिन मैं अपने को कष्ट देकर चीजें ठीक करने की कोशिश करूंगा और मुङो भरोसा है कि मेरे उपवास से लोगों की आंखें खुलेंगी. इस पर सरदार पटेल गुस्सा हो गये और कड़े शब्दों में गांधीजी को जवाब दिया. जवाहरलाल व मैं पूरी तरह झटका खा गये और चुप न रह सके.

मैंने विरोध करते हुए कहा कि कि वल्लभभाई, तुम्हें अहसास नहीं होगा, लेकिन हम लोगों को अहसास हो रहा है कि आपका रवैया गांधीजी के प्रति कितना अपनामानजनक है और आप उन्हें कितनी चोट पहुंचा रहे हैं. इस पर बिना कुछ बोले सरदार पटेल उठे और ऐसा लगा जैसे वे जा रहे हों. मैंने उन्हें रोका और कहा कि उनको अपना बंबई का कार्यक्रम स्थगित कर देना चाहिए और दिल्ली में ही रहना चाहिए. कोई नहीं जानता कि स्थितियां कौन सा मोड़ अख्तियार कर लें, इसलिए उन्हें गांधीजी के उपवास के दौरान कहीं नहीं जाना चाहिए. जवाब में पटेल चिल्लाये- मेरे रहने का कोई मतलब है क्या? गांधीजी पूरी दुनिया के सामने हिंदुओं का नाम बदनाम करने को प्रतिबद्ध हैं. यदि उनका यह रवैया है तो मेरे लिए उनका कोई मतलब नहीं हैं. मैं अपना कार्यक्र म नहीं बदल सकता और मैं कल जरूर बंबई जाऊंगा.

आश्चर्यजनक बात यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल गांधीजी की ही देन थे. असहयोग आंदोलन से पहले सरदार पटेल गुजरात के अनेक वकीलों में से एक थे और सार्वजनिक जीवन में उनकी कोई रुचि नहीं थी. जब गांधीजी अहमदाबाद रहने के लिए पहुंचे, उन्होंने पटेल का चयन किया और उनको खड़ा किया. पटेल गांधीजी के तहेदिल से समर्थक बन गये. मौलाना आजाद ने लिखा है कि गांधीजी ने ही उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य बनवाया और फिर सन 1931 में कांग्रेस का अध्यक्ष. गांधीजी इसलिए भी बहुत व्यथित थे कि सरदार पटेल अब उनकी मान्यताओं और सिद्धांतों को धता बता रहे थे.

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