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यह चेत जाने का है वक्त

बिहार के चुनाव में कई भविष्यवक्ताओं की पोल खुल गयी. इसमें भारतीय मीडिया के दावों की भी पोल खुली है. चुनावी परिणामों के सर्वेक्षणों पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं. इसमें एक्जिट पोल के नतीजे पेश करनेवाले संगठनों के आंकड़ों की भी दुर्गति हो गयी. खैर, चुनाव परिणाम से जिसकी जितनी दुर्गति होनी थी, […]

बिहार के चुनाव में कई भविष्यवक्ताओं की पोल खुल गयी. इसमें भारतीय मीडिया के दावों की भी पोल खुली है. चुनावी परिणामों के सर्वेक्षणों पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं. इसमें एक्जिट पोल के नतीजे पेश करनेवाले संगठनों के आंकड़ों की भी दुर्गति हो गयी.
खैर, चुनाव परिणाम से जिसकी जितनी दुर्गति होनी थी, वह तो हो गयी, लेकिन सबसे ज्यादा दुख तो उन लोगों को देख कर हो रहा है, जिन्होंने हवा का रुख देखते ही अपना रंग और गुणगान का तरीका भी बदल लिया. रंग बदलने की यह बात मीडिया घरानों के संदर्भ में की जा रही है.
जो मीडिया घराने कल तक बिहार के जिन नेताओं की कलई खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे, आज उनका रंग बदल गया. अब वे बिहार के उन्हीं नेताओं का गुणगान करने लगे हैं, कल तक जिनकी बखिया उधेड़ रहे थे. रंग अकेले मीडिया घराने के लोगों ने ही नहीं बदला है, बल्कि समर्थकों और आम लोगों के भी रंग बदल गये हैं.
-अंबिका दास, जमशेदपुर

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