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देश में बनी रहे सामाजिक सहिष्णुता

इस समय देश की सामाजिक सौहार्दता और समरसता में कमी देखी जा रही है. लोग भाईचारे को भूल कर लड़ने-भिड़ने पर आमादा हैं. इसका श्रेय कट्टरपंथियों को दिया जाये, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. कुछ वर्ष पूर्व भी ऐसी आशंकाएं जाहिर की जा रही थीं, जो अब साक्षात देखने को मिल रहा है. भारत में […]

इस समय देश की सामाजिक सौहार्दता और समरसता में कमी देखी जा रही है. लोग भाईचारे को भूल कर लड़ने-भिड़ने पर आमादा हैं. इसका श्रेय कट्टरपंथियों को दिया जाये, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी. कुछ वर्ष पूर्व भी ऐसी आशंकाएं जाहिर की जा रही थीं, जो अब साक्षात देखने को मिल रहा है. भारत में लोकतंत्र के स्थान पर भीड़तंत्र हावी होता जा रहा है.
बिहार में चुनाव की घोषणा के पहले से ही देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, चुनाव के दौरान बिहार में जंगलराज की बात कही जा रही है, लेकिन उसमें और अब के जंगलराज में फर्क है.
राजनीतिक हलकों में बिहार के जिस जंगलराज की बात की जाती है, उसमें वहां के समाज में पिछड़े और उपेक्षित लोगों को राजनीतिक और सामाजिक तौर पर जागरूक करने का प्रयास किया गया, उन्हें उनके अधिकार के प्रति जागरूक किया गया और सामाजिक विषमता को दूर करने का प्रयास किया गया. उस समय बिहार के शोषक वर्ग को मुंहतोड़ जवाब दिया गया. ठीक इसके विपरीत इस समय देश में राजनीतिक में परिपक्व और सामाजिक तौर पर सशक्त लोगों को उकसाने का काम किया जा रहा है. इससे देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी गलत संदेश जा रहा है.
आज जरूरत इस बात की है कि भारत में सामाजिक समरसता और सहिष्णुता को बरकरार रखने के िलए सख्त से सख्त कदम उठाये जायें. इसके िलए यह भी जरूरी है िक देश और समाज के लोग आपसी एकजुटता िदखाते हुए आगे आयें. इसके साथ ही सरकार को कारगर कदम उठाने होंगे.
-बैजनाथ प्रसाद महतो, हुरलुंग, बोकारो

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