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बिना काम के दाम की लालसा?

इस समय चुनावी माहौल के बीच बिहार में जिस प्रकार की राजनीति हो रही है, ऐसी राजनीति पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुई होगी. चुनावी घमासान के बीच नेता बातों के नायाब उदाहरण पेश कर रहे हैं. हर दल का नेता जनता को अपने जुमलों से लुभाने का प्रयास कर रहा है. राजनीतिक अनिश्चितता के […]

इस समय चुनावी माहौल के बीच बिहार में जिस प्रकार की राजनीति हो रही है, ऐसी राजनीति पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुई होगी. चुनावी घमासान के बीच नेता बातों के नायाब उदाहरण पेश कर रहे हैं. हर दल का नेता जनता को अपने जुमलों से लुभाने का प्रयास कर रहा है. राजनीतिक अनिश्चितता के बीच अनेकानेक वायदे किये जा रहे हैं.

कोई दल युवाओं को खुश करने का प्रयास कर रहा है, तो कोई किसानों को लुभाने में लगा है. इस बीच, बिहार की जनता किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में चुपचाप तमाशा देख रही है. वह राजनीतिक रैलियों में नेताओं के रेला को देख रही और यह भी देख रही है कि लोग कुर्सी को पाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं. लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर राजनेता काम के बिना ही लाभ पाने के लिए क्यों लालायित हैं? जनता को तो काम चाहिए.

-संघर्ष यादव गोलू, ई-मेल से

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