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गीता क्या रोशनी की किरण बनेगी?

प्रमोद जोशी वरिष्ठ पत्रकार पिछले साल केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से विदेश नीति से जुड़े मामलों में उन्हें सफलता मिली है, पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों में सुधार होने के बजाय तल्खी बढ़ी है. भारत-पाक दोनों देशों में एक-दूसरे के प्रति कड़वाहट है. दोनों तरफ का मीडिया इसमें तड़का लगाता […]

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार
पिछले साल केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद से विदेश नीति से जुड़े मामलों में उन्हें सफलता मिली है, पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों में सुधार होने के बजाय तल्खी बढ़ी है. भारत-पाक दोनों देशों में एक-दूसरे के प्रति कड़वाहट है. दोनों तरफ का मीडिया इसमें तड़का लगाता है. ऐसा कोई दिन नहीं, जब नकारात्मक खबर न होती हो. इधर भारत से भटक कर पाकिस्तान चली गयी गीता की कहानी से कुछ सकारात्मक पहलू सामने आये हैं. लेकिन पाकिस्तान के उर्दू मीडिया में इसके नकारात्मक पहलू को ज्यादा जगह मिली है.
पाकिस्तान में खबर सुर्खियों में है कि उनके ईधी फाउंडेशन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दी गयी एक करोड़ की धनराशि ठुकरा दी. ईधी फाउंडेशन ने गीता को अपने यहां रखा था. उसके स्थापक अब्दुल सत्तार ईधी ने प्रधानमंत्री को उनकी सहृदयता के लिए धन्यवाद देते हुए वित्तीय सहायता अस्वीकार कर दी. साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि हम किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं लेते. इस खबर को पाकिस्तान में राष्ट्रवादी स्वाभिमान के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जबकि ईधी फाउंडेशन ने ऐसा नहीं कहा.
इसी 26 अक्तूबर को भारत लौटी गीता की कहानी हमारे मीडिया की सुर्खियों में भी रही. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के लाइव प्रसारित कार्यक्रम में एक पत्रकार ने पूछा कि क्या इस प्रसंग के आधार पर माना जाये कि दोनों देश बातचीत फिर से शुरू करेंगे. इस पर विदेश मंत्री ने कहा कि इस मौके पर यह सवाल प्रासंगिक नहीं है. अलबत्ता गीता के दिल्ली आने पर पाकिस्तान उच्चायोग के अधिकारी मंजूर मेमन ने पत्रकारों से कहा कि गीता का भारत लौटना यह दर्शाता है कि भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकते हैं.
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की कहानी कितने नाटकीय तरीके से करवट बदलती है, इसे पिछले दो या तीन महीने के घटनाक्रम से देखा जा सकता है. पिछली 10 जुलाई को रूस के ऊफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के दौरान भारत और पाकिस्तान की ओर से संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ कि दोनों देश बातचीत का एक क्रमबद्ध दौर शुरू करेंगे. इसकी शुरुआत दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की दिल्ली में बैठक से होगी. संयुक्त वक्तव्य की शब्दावली में कश्मीर शब्द नहीं था. इसमें कहा गया था कि यह वार्ता आतंकवाद पर केंद्रित होगी. पाकिस्तानी जनमत कश्मीर से कम कुछ नहीं चाहता. ऊफा का बयान जारी होने के बाद 13 जुलाई को सरताज अजीज ने बयान दिया कि कश्मीर को शामिल किये बिना कोई बात संभव नहीं है. आखिरकार वार्ता नहीं हुई. इसके बहाने एक-दूसरे को लानत-मलामत जरूर भेजी गयी.
ऐसे में लगता नहीं कि दोनों देशों के बीच कुछ भी सकारात्मक है.राजनीतिक स्तर पर बदमगजी के बावजूद सांस्कृतिक स्तर पर संपर्क बने हुए हैं. कलाकारों का आना-जाना लगा रहता है. इधर सबसे बड़ा बदलाव सांस्कृतिक स्तर पर ही आया. जिस गीता की वापसी हुई है, उसकी जैसी कहानी पर बनी फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ को सरहद के दोनों ओर पसंद किया गया. पर उसके फौरन बाद आयी फिल्म ‘फैंटम’ को लेकर पाकिस्तान में जबर्दस्त हंगामा हुआ और उसे वहां रिलीज होने नहीं दिया गया.
महीनों से नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी चल रही है. साल 2003 में हुए एक समझौते के बाद से सरहद पर गोलीबारी बंद थी. हालात बेहतर हो रहे थे और ऐसा लगता था कि भारत और पाकिस्तान के बीच स्थायी शांति का समझौता हो जायेगा. ऐसे में 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हमला हुआ, जिसने स्थायी शांति की जगह स्थायी अशांति का माहौल तैयार कर दिया. सबसे बड़ा खतरा एटमी हथियारों के इस्तेमाल को लेकर है.
पाकिस्तान की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि हमने टैक्टिकल (यानी छोटे) बम तैयार कर लिये हैं. यदि भारतीय सेना परंपरागत लड़ाई में विजय पाती नजर आयेगी, तो हम इनका इस्तेमाल करेंगे. पाक अधिकृत कश्मीर के कैंपों में इन दिनों गतिविधियां तेज हैं. गुरदासपुर में हुए हमले के बाद इस आशय की जानकारियां सामने आयी हैं कि किसी ट्रेन को उड़ाने या मुंबई हमले जैसी किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की कोशिश की जा रही है. इस बार ऐसी कोई घटना हुई, तो आश्चर्य नहीं कि भारतीय सेना कोई बड़ी कार्रवाई करे. इसी अंदेशे के मद्देनजर पिछले हफ्ते नवाज शरीफ को अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने यहां बुलाया.
नवाज शरीफ की अमेरिका यात्रा के दौरान बराक ओबामा ने साफ कहा कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों में भेद न करे. शरीफ और ओबामा के बीच मुलाकात के बाद जारी हुए संयुक्त बयान में लश्कर-ए-तैयबा और उसके सहयोगी गुटों के विरुद्ध कदम उठाने के इस्लामाबाद के संकल्प की बात की गयी. उधर खबर यह है कि पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने लश्कर के प्रमुख हाफिज सईद की सुरक्षा को बढ़ा दिया है. सरकार का कहना है कि एक विदेशी खुफिया एजेंसी ने हाफिज सईद की हत्या की योजना बनायी है. उनका इशारा भारत की ओर है. यानी अमेरिका जाकर नवाज शरीफ कुछ भी कह आये हों, लेकिन असलियत कुछ और है.
पाकिस्तान में नागरिक और सैनिक प्रतिष्ठान के बीच फर्क साफ नजर आने लगा है. साल 2013 में जब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने विदेश और रक्षा विभाग अपने पास रखे थे और वरिष्ठ राजनयिक सरताज अजीज को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया था. अब उनकी जगह एक रिटायर्ड जनरल नासर खान जंजुआ को सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है. विदेश नीति और रक्षा नीति दोनों पर सेना का दबदबा है.
जनरल जंजुआ की नियुक्ति से यह बात जाहिर भी हुई है. सवाल है कि क्या हम नवाज शरीफ पर यकीन कर सकते हैं? तब क्यों नहीं अमेरिका सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ से बात करता है? शायद अब उनसे ही बात होगी. मोदी सरकार को भी पाकिस्तानी पहेली का हल जल्दी निकालना होगा, क्योंकि खराब होते रिश्ते इस इलाके की खुशहाली पर पूर्ण विराम लगा सकते हैं. गीता क्या इस अंधियारे में रोशनी की किरण बनेगी?

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