प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में आगामी सप्ताहों में गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम के लागू होने की घोषणा की है. इस महत्वाकांक्षी योजना का उल्लेख वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट में था और पिछले महीने कैबिनेट ने इसे अनुमति प्रदान की थी. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने विगत शुक्रवार को योजना की रूप-रेखा के विवरण के साथ बैंकों को नीतिगत निर्देश भी जारी कर दिया है.
इसमें लोग सोने के आभूषणों और अन्य वस्तुओं, जैसे- सिक्के, साजो-सामान आदि को बैंक में जमा कर उस पर ब्याज अर्जित कर सकते हैं. ब्याज की दर के निर्धारण का अधिकार बैंकों को दिया गया है और अन्य नियम वही होंगे जो आम तौर पर अन्य जमा योजनाओं पर लागू होते हैं. इस योजना का उद्देश्य नागरिकों और विभिन्न संस्थाओं के पास पड़े 20 से 22 हजार टन सोने का उपयोग देश की अर्थव्यवस्था को तेजी देने में करने का है. प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा है कि यह विशाल स्वर्ण भंडार ‘मृत’ परिसंपत्ति है. कई वर्षों से अर्थशास्त्री और अर्थ विशेषज्ञ इस सोने को आर्थिक मुख्यधारा में लाने की जरूरत पर बल देते रहे हैं.
भारत दुनिया के सबसे बड़े स्वर्ण आयातक देशों में शामिल है. एक आकलन के मुताबिक इस साल 900 टन सोना आयात होने की उम्मीद है. इस वर्ष अगस्त-सितंबर में 233 टन सोना आयात हुआ है जो पिछले साल इन्हीं महीनों में हुए आयात से 240 फीसदी अधिक है. इसमें अधिकांश आभूषण बनाने के उद्देश्य से लाया गया है.
वर्ष 2013 में सोने के आयात के कारण देश के चालू खाते में 192 बिलियन डॉलर का भारी घाटा हुआ था जिस पर नियंत्रण के लिए सरकार को सोने पर आयात ड्यूटी बढ़ाकर 10 फीसदी करनी पड़ी थी. सोने की वैश्विक उपभोक्ता मांग में भारत का हिस्सा 25 फीसदी है. इस योजना से निवेश गारंटी के लिए आयातित सोने में भी कमी का अनुमान है. इस योजना से न सिर्फ सोना सुरक्षित रहेगा, बल्कि उस पर कमाई भी की जा सकेगी. उम्मीद है कि सोने के प्रति बेइंतहा लगाव रखनेवाला भारतीय समाज इस योजना के फायदों के प्रति जागरूक होकर इसे सफल बनाने में पूरा सहयोग करेगा. इस दिशा में सरकार और बैंकों को भी ब्याज दरों को आकर्षक बनाने और खाताधारकों को लुभाने के सकारात्मक प्रयास लगातार करने होंगे.