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नफरत की राजनीति

एक मशहूर कहावत है कि आपकी स्वतंत्रता वहां खत्म हो जाती है, जहां से दूसरे की नाक शुरू होती है. यानी स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आप किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन कुछ भी बोल कर समाज में नफरत फैलाने की आजादी तो नहीं है. फिर […]

एक मशहूर कहावत है कि आपकी स्वतंत्रता वहां खत्म हो जाती है, जहां से दूसरे की नाक शुरू होती है. यानी स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आप किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन कुछ भी बोल कर समाज में नफरत फैलाने की आजादी तो नहीं है. फिर क्यों इन दिनों नफरत फैलानेवाले बयानों की सुनामी आयी हुई है?
विडंबना देखिए, संविधान कहता है कि कोई दोषी है या नहीं, यह तय करने का हक सिर्फ अदालत को है, पर मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआइएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने बिहार में चुनावी सभा में प्रधानमंत्री को दंगों के लिए दोषी ठहराया, उन्हें दरिंदा, शैतान और जालिम तक कह दिया. क्या यह प्रधानमंत्री के साथ-साथ देश का और जनता के जनादेश का अनादर नहीं है? उधर, उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस खाने का आरोप लगा कर एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डालने जैसे जघन्य अपराध को केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने दुर्घटना करार दिया. फिर भाजपा सांसद साक्षी महाराज का बयान आया कि गाय हमारी माता है और गोहत्या के खिलाफ हम मरने-मारने के लिए तैयार हैं.
एक अन्य फायरब्रांड नेता साध्वी प्राची ने आग में घी डालते हुए कहा कि ‘गाय का मांस खानेवाले का यही हश्र होना चाहिए’. इसका जवाब देते हुए सपा नेता एवं देवबंद नगरपालिका अध्यक्ष माविया अली ने कहा कि ‘अगर कोई प्राची की हत्या करता है, तो वह भी जायज है.’ प्रदेश के मंत्री आजम खान की हिमाकत देखिए, महाशय ने चुनौती दे दी कि हिम्मत है तो बीफ बेचनेवाले होटलों को बाबरी मसजिद की तरह तोड़ दो. इतना ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र को चिट्ठी लिख कर दादरी में एक धर्म के लोगों के खिलाफ अन्याय की शिकायत करने की धमकी दी, आरोप लगाया कि हिंदुस्तान में सीरिया जैसे हालात पैदा करने की कोशिश हो रही है, जबकि राज्य में कानून-व्यवस्था बहाल रखने की जिम्मेवारी उन्हीं की सरकार की है.
उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि सीरिया में गृह युद्ध के जो हालात हैं, जिसमें लाखों बेगुनाहों को दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी है, वह समाज में वैमनस्य फैलानेवाले नेताओं के चलते ही है. क्या देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के प्रयास में जुटे नेताओं की जगह जेल में नहीं होनी चाहिए? अब प्रधानमंत्री से देश उम्मीद कर रहा है कि वे चुप्पी तोड़ कर देश को आश्वस्त करेंगे कि नफरत फैलानेवालों से कानून सख्ती से निपटेगा.

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