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निज सभ्यता को बचाना बेहद जरूरी
आज कल देखा जा रहा है कि हम अपनी सभ्यता को भूल कर विदेशी सभ्यता को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. हमारी वह पौराणिक सभ्यता जिसकी पूरी दुनिया में कद्र है, हम उसे छोड़ते जा रहे हैं. अक्सर यह देखा जाता है कि हमारी नयी पीढ़ी को अपनी सभ्यता का ज्ञान भी नहीं है. हमारी […]
आज कल देखा जा रहा है कि हम अपनी सभ्यता को भूल कर विदेशी सभ्यता को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. हमारी वह पौराणिक सभ्यता जिसकी पूरी दुनिया में कद्र है, हम उसे छोड़ते जा रहे हैं.
अक्सर यह देखा जाता है कि हमारी नयी पीढ़ी को अपनी सभ्यता का ज्ञान भी नहीं है. हमारी वह पुरानी संस्कृति जहां मां-बाप भगवान की तरह होते थे, जहां शिष्य अपने गुरु के कहने पर अपनी जान तक देने को तत्पर होते थे. जहां मां-बहनों को देवी के समान माना जाता था.
वहीं, आज स्थिति इसके विपरीत है. आज हम अपने बड़ों का लिहाज करना भूल गये हैं. हम देख रहे हैं कि युवा पीढ़ी ही अपनी संस्कृति को भूल कर विदेशी संस्कृति को अपना रही है. आज युवा बड़े-बुजुर्ग और गुरुओं का सम्मान करना भूल गये हैं. हमें संस्कृति को बचाने के लिए अपनी सभ्यता और संस्कृति से रू-ब-रू होना होगा.
– अनिकेत सौरव, हंसडीहा
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