मौसम के बदलते रुख ने झारखंड सरकार की सेहत पर खासा असर डाल दिया है. मौसम की मार से केवल मंत्री समुदाय ही हलकान नहीं है, सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इस बेरुखी को बखूबी ङोल रहे हैं. दरअसल झारखंड मुक्ति मोरचा के युवराज, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भले ही सत्ता का सेहरा बांध इठला रहें हों, पर शर्त और समझौतों की बुनियाद पर टिकी हेमंत सोरेन सरकार की नींव हिलनी शुरू हो गयी है.
स्वार्थ का घूंट पी रही गंठबंधन की यह सरकार अभी सही से चार कदम चली भी नहीं थी कि रास्ते में मोड़ आने शुरू हो गये हैं और हालात ने जिस तरह से रु ख मोड़ लिया है, परिस्थितियां सरकार के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी. पहले मंत्रियों के विभाग के बंटवारे को लेकर किचकिच और अब नया बखेड़ा सूबे में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर खड़ा हो गया है. इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए इस गंठबंधन के घटक दल के एक नेता खुद अपने ही घर के बीच आंगन में दीवार खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं.
इनके बयान समझौते की गांठ और ढीली कर रहे हैं. पहले मनचाहे मंत्री पद के लिए मान- मनौव्वल, तो अब अपनी ही सरकार से असंतुष्टि जाहिर करता उनका मनमाना बयान. मुख्यमंत्री पर भड़ास, जेएमएम प्रमुख पर निशाना और गंठबंधन पर सवाल, इस बात को साफ इंगित करता है कि बयान-बहादुरों के ऐसे बयान सरकार की सेहत के लिए सही नहीं हैं. अगर इसका इलाज जल्द नहीं किया गया तो शायद परिणाम सरकार के पक्ष में न हो. सियासत की पगडंडी पर स्टेपनी के सहारे सफर तय करने का अथक प्रयास और असंतुष्ट सहयोगियों का रह-रह कर हुंकार हेमंत सोरेन के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है. ऐसे में यह कहना लाजिमी है, छोटी-सी उमर में लग गया रोग..
नवनीत कुमार सिंह, रांची