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धर्म के नाम पर न हो लड़ाई

कुछ समय से आदिवासी समुदाय में ईसाइयों और गैर ईसाइयों के बीच लाल पाड़ साड़ी को लेकर एक विचित्र स्थिति पैदा हो गयी है. यह आदिवासी समुदाय में व्याप्त अज्ञानता मात्र है. यह एक ही परिवार के दो भाइयों के बीच झगड़े के सिवा और कुछ नहीं है. दुर्भाग्य की बात यह है कि इस […]

कुछ समय से आदिवासी समुदाय में ईसाइयों और गैर ईसाइयों के बीच लाल पाड़ साड़ी को लेकर एक विचित्र स्थिति पैदा हो गयी है. यह आदिवासी समुदाय में व्याप्त अज्ञानता मात्र है. यह एक ही परिवार के दो भाइयों के बीच झगड़े के सिवा और कुछ नहीं है.

दुर्भाग्य की बात यह है कि इस बिना मुद्दे की लड़ाई से नेतागण लाभान्वित हो रहे हैं. आज से पचास साल पहले तक लाल पाड़ साड़ी का नामोनिशान नहीं था.

21वीं सदी में मिल से बुनी लाल पाड़ साड़ी कब और कैसे आदिवासी संस्कृति का अंग बन गयी, कोई नहीं जानता. लाल पाड़ साड़ी हमारी संस्कृति का अंग है ही नहीं, क्योंकि हमारे पूर्वज इसे पहनते ही नहीं थे. इस साड़ी को लेकर जो समाज में बवाल मचा है, वह सिर्फ आदिवासी भाइयों को आपस में लड़ाने के सिवा और कुछ नहीं है.

(सन्या ख्रीस्तो, मांडर, रांची)

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